Wednesday 15 February 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคฎुเคฐ्เค—े เค•ी เคนोเคถिเคฏाเคฐी

                      पंचतंत्र

               मुर्गे की होशियारी

एक जंगल में बहुत सारे पशु पक्षी रहते थे|  एक बार एक कुत्ते और एक मुर्गे के बीच काफी प्रेम बढ़ गया| दोनों एक दूसरे की सहायता करते रहते थे|  एक दिन दोनों साथ मिल कर जंगल के बीच घूमने गए| घूमते घूमते उन्हें रात हो गयी|  रात बिताने के लिए मुर्गा एक वृक्ष की शाख पर चढ़ गया और कुत्ता उसी वृक्ष के निचे लेट गया|

           धीरे धीरे  भोर होने को आयी|  मुर्गे का स्वभाव है कि वह भोर के समय जोर की आवाज में बांग देता है| मुर्गे की बांग देने की आवाज सुन कर एक सियार ने मन ही मन सोचा आज कोई न कोई उपाय कर के इस मुर्गे को मार कर इसका  मांस खा जाऊगा|  ऐसा निश्चय कर के धूर्त सियार वृक्ष के पास जाकर मुर्गे को संबोधित करते हुए बोला-भाई तुम कितने भले हो; तुम्हारी आवाज कितनी मीठी है, सब का कितना उपकार करते हो| मैं तुम्हारी आवाज सुनकर बहुत प्रशन्न हो कर आया हूँ|  वृक्ष से नीचे उतर आओ, हम दोनों मिल कर थोडा आमोद प्रमोद करेंगे|

          मुर्गे को सियार की चालाकी समझ में आगई| सियार की चालाकी को समझ कर मुर्गे ने  उसकी धूर्तता का मजा चखाने की सोची और कहा-भाई सियार! तुम वृक्ष के निचे आकर  थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, में उतर रहा हूँ| यह सुन कर सियार ने सोचा, मेरा उपाय काम कर गया है| वह आनंदपूर्वक उस पेड़ के नीचे आगया, वहां कुत्ता पहले ही उसके इंतजार में बैठा हुआ था| जैसे ही सियार वृक्ष के नीचे आया कुत्ते ने उसपर आक्रमण कर दिया और अपने पंजे और दांतों से प्रहार कर के उसे मार डाला|

सीख :- जो दूसरों के लिए गढ्ढा खोदता है स्वयं ही गढ्ढे में गिर जाता है| 

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