Tuesday 31 January 2017

เค•เคฅा เคธाเค—เคฐ : เคตเคธंเคค เคชंเคšเคฎी


                  *वसंत पंचमी या श्रीपंचमी*

यह एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मना.या जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।

कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का विशेष महत्व है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं।संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। 

   
                     वसंत पंचमी की कथा

वसंत पंचमी मां सरस्वती के आविर्भाव व विजय का दिन है।  

वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवताओं को कुंभकर्ण से बचाया था। देवी वरदान प्राप्त करने के लिए राक्षसराज कुंभकर्ण ने करीब दस हजार वर्षों तक तपस्या की।

जब ब्रह्मा प्रसन्न हुए और वरदान के लिए आए तो सभी देव विचलित हो उठे। सभी ने कहा कि यह राक्षस योनि में है और वरदान प्राप्त होने के बाद उन्मत्त व संहारक हो जाएगा।

वरदान मांगते समय सरस्वती कुंभकर्ण की जिह्वा पर विराजमान
हो गईं और कुंभकर्ण यह वर मांग बैठा कि 'स्वप्न वर्षाव्यनेकानि देव देव ममाप्सिनम', यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है  ।

सरस्वती माँ ने अपने चातुर्य से सभी को संहार से बचा लिया ।

Monday 30 January 2017

Story Time : เค•ाเคฎเคจा เค•ा เคฌंเคงเคจ

Story Time 😊

                  कामना का बंधन
                 
बहुत समय पहले की बात है| किसी शहर में एक ब्यापारी रहता था| उस ब्यापारी ने कहीं से सुन लिया कि राजा परीक्षित को भगवद्कथा सुनने से ही ज्ञान प्राप्त हो गया था| ब्यापारी ने सोचा कि सिर्फ कथा सुन ने से ही मनुष्य ज्ञानवान हो जाता है तो में भी कथा सुनूंगा और ज्ञानवान बन जाऊंगा| कथा सुनाने के लिए एक पंडित जी बुलाए गए| पंडित जी से आग्रह किया कि वे व्यापारी को कथा सुनाएं| पंडित जी ने भी सोचा कि मोटी आसामी फंस रही है| इसे कथा सुनाकर एक बड़ी रकम दक्षिणा के रूप में मिल सकती है| पंडित जी कथा सुनाने को तयार हो गए| अगले दिन से पंडित जी ने कथा सुनानी आरम्भ की और ब्यापारी कथा सुनता रहा| यह क्रम एक महीने तक चलता रहा| फिर एक दिन ब्यापारी ने पंडित जी से कहा "पंडित जी आप की ये कथाएँ सुन कर मुझ में कोई बदलाव नहीं आया, और ना ही मुझे राजा परीक्षित की तरह ज्ञान प्राप्त हुआ|"

पंडित जी ने झल्लाते हुए ब्यापारी से कहा "आप ने अभी तक दक्षिणा तोदी ही नहीं है, जिस से आप को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई|" इस परब्यापारी ने कहा जबतक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती तबतक वहदक्षिणा नहीं देगा| इस बात पर दोनों में बहस होने लगी| दोनों ही अपनीअपनी बात पर अड़े थे| पंडित जी कहते थे कि दक्षिणा मिलेगी तो ज्ञानमिलेगा और ब्यापारी कहता था ज्ञान मिलेगा तो दक्षिणा मिलेगी| तभीवहां से एक संत महात्मा का गुजरना हुआ| दोनों ने एक दूसरे को दोष देतेहुए उन संत महात्मा से न्याय की गुहार लगाई| महात्मा ज्ञानी पुरुष थे| उन्हों ने दोनों के हाथ पांव बंधवा दिए और दोनों से कहा कि अब एकदोसरे का बंधन खोलने का प्रयास करो| बहुत प्रयास करने के बाद भीदोनों एक दूसरे को मुक्त कराने में असफल रहे| तब महात्मा जी बोले "पंडित जी ने खुद को लोभ के बंधन में और ब्यापारी ने खुद को ज्ञानकि कामना के बंधन से बांध लिया था| जो खुद बंधा हो वह दूसरे के बंधनको कैसे खोल सकता है| आपस में एकात्म हुए बिना आध्यात्मिक उद्देश्यकि पूर्ति नहीं हो सकती है| 

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เค–ाเคจे เคชीเคจे เค•ो เคฌंเคฆเคฐी เคกंเคกे เค–ाเคจे เค•ो เคฐीเค›

                            पंचतंत्र

       खाने पीने को बंदरी डंडे खाने को रीछ

किसी शहर में एक मदारी रहता था| मदारी के पास एक बंदरी और एक रीछ थे| मदारी सारा दिन बंदरी और रीछ को नचाकर लोगों का मनोरंजन करता था, उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और बंदरी और रीछ का पेट पलता था| एकबार मदारी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा| मदारी बंदरी और रीछ को घर में छोड़ गया|

बाहर जाते समय मदारी अपने लिए एक बर्तन में दही ज़माने को रख गया| मदारी के जाने के बाद कुछ देर में बंदरी को भूख लग गई| रीछ तो बेचारा चुपचाप सो गया| बंदरी ने चुपचाप मदारी का जमाया हुआ दही खालिया और थोडा सा दही सोए पड़े रीछ के मुंह पर लगा दिया|

जब मदारी वापस आया तो उसने रोटी खाने के लिए दही देखा तो दही वाला बर्तन खाली था|

उसने देखा कि रीछ के मुंह पर दही लगा हुआ था|

मदारी ने आव देखा ना ताव देखा डंडा लेकर रीछ को पीटडाला | बंदरी चुपचाप बैठ कर तमासा देख रही थी| रीछ बेचारे को मुफ्त में मार पड़ गई| खा पी बंदरी गयी|

तभी से यह कहावत बनी है कि खाने पीने को बंदरी डंडे खाने को रीछ।

Saturday 28 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคธंเค—เคค เค•ा เค…เคธเคฐ

                        पंचतंत्र

                   संगत का असर

बहुत समय पहले की बात है| एक गांव में एक बहेलिया रहा करता था| वह जंगल से चिड़ियों को पकड़ कर लता था और कसबे में जाकर उन्हें बेच  दिया करता था| उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और अपने परिवार का पेट पालता था| एक दिन वह जंगल में घूम रहा  था| उसे एक पेड़ के कोटर में तोते के दो बच्चे खेलते हुए दिखाई दिए| उसने तोते के उन बच्चों को पकड़ लिया और अगले दिन नगर में बेच दिया| एक बच्चा एक चोर ने खरीद लिया और एक बच्चा किसी सज्जन आदमी ने खरीद लिया| तोते के बच्चे धीरे धीरे बड़े हो गए| उन्होंने बोलना भी सीख लिया| एक दिन नगर में बादशाह घूमने आया, जैसे ही बादशाह चोर के घर के पास आया तो तोता जोर जोर से बोलने लगा:- "शिकार आया है लूट लो बच के ना जाने पाए"| बादशाह आगे बढ़ गया उसे आगे उस सज्जन का घर मिल गया, जैसे ही तोते ने बादशाह को देखा तो बोल पड़ा:- नमस्ते जी, आप का स्वागत है, आप थक गए होंगे बैठिए चाय पानी पी कर जाना| बादशाह दोनों की बात सुन कर हैरान थे कुछ समझ में नहीं आ रहा था| आगे जाने पर राजा को वही बहेलिया मिल गया| बादशाह ने बहेलिया को बुलाकर पूछा कि दोनों तोते एक समान हैं पर दोनों की भाषा में इतना फरक क्यों है| बहेलिये ने बताया कि यह सब संगत का असर है| एक तोते का मालिक चोर है जो उसके घर में होता है वह तोते ने सीख लिया है, और दूसरे तोते का मालिक एक सज्जन आदमी है, जो उसके  घर में होता है वह उसके तोते ने सीख लिया है| संगत का असर सब पर पड़ता है चाहे वह आदमी हो या पंछी|

सीख :- हमें हमेशा अच्छी संगत में ही रहना चाहिए|

Friday 27 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคฆोเคธ्เคคी เค•ी เคชเคฐเค–

                         पंचतंत्र

                    दोस्ती की परख

एक जंगल था । गाय, घोड़ा, गधा और बकरी वहाँ चरने आते थे । उन चारों में मित्रता हो गई । वे चरते-चरते आपस में कहानियाँ कहा करते थे । पेड़ के नीचे एक खरगोश का घर था । एक दिन उसने उन चारों की मित्रता देखी ।

खरगोश पास जाकर कहने लगा - "तुम लोग मुझे भी मित्र बना लो ।"

उन्होंने कहा - "अच्छा ।"

तब खरगोश बहुत प्रसन्न हुआ । खरगोश हर रोज़ उनके पास आकर बैठ जाता । कहानियाँ सुनकर वह भी मन बहलाया करता था ।

एक दिन खरगोश उनके पास बैठा कहानियाँ सुन रहा था । अचानक शिकारी कुत्तों की आवाज़ सुनाई दी । खरगोश ने गाय से कहा -

"तुम मुझे पीठ पर बिठा लो । जब शिकारी कुत्ते आएँ तो उन्हें सींगों से मारकर भगा देना ।"

गाय ने कहा - "मेरा तो अब घर जाने का समय हो गया है ।"तब खरगोश घोड़े के पास गया ।

कहने लगा - "बड़े भाई ! तुम मुझे पीठ पर बिठा लो और शिकारी कुत्तोँ से बचाओ । तुम तो एक दुलत्ती मारोगे तो कुत्ते भाग जाएँगे ।"

घोड़े ने कहा - "मुझे बैठना नहीं आता । मैं तो खड़े-खड़े ही सोता हूँ । मेरी पीठ पर कैसे चढ़ोगे ? मेरे पाँव भी दुख रहे हैं । इन पर नई नाल चढ़ी हैं । मैं दुलत्ती कैसे मारूँगा ? तुम कोई और उपाय करो ।

तब खरगोश ने गधे के पास जाकर कहा - "मित्र गधे ! तुम मुझे शिकारी कुत्तों से बचा लो । मुझे पीठ पर बिठा लो । जब कुत्ते आएँ तो दुलत्ती झाड़कर उन्हें भगा देना ।"

गधे ने कहा - "मैं घर जा रहा हूँ । समय हो गया है । अगर मैं समय पर न लौटा, तो कुम्हार डंडे मार-मार कर मेरा कचूमर निकाल देगा ।"तब खरगोश बकरी की तरफ़ चला ।

बकरी ने दूर से ही कहा - "छोटे भैया ! इधर मत आना । मुझे शिकारी कुत्तों से बहुत डर लगता है । कहीं तुम्हारे साथ मैं भी न मारी जाऊँ ।"इतने में कुत्ते पास आ गए । खरगोश सिर पर पाँव रखकर भागा । कुत्ते इतनी तेज़ दौड़ न सके । खरगोश झाड़ी में जाकर छिप गया ।

वह मन में कहने लगा - "हमेशा अपने पर ही भरोसा करना चाहिए ।"

सीख :- दोस्ती की परख मुसीबत मे ही होती है। 

Thursday 26 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคฒाเคฒเคš เคฌुเคฐी เคฌเคฒा เคนै


 
                      पंचतंत्र
 
              लालच बुरी बला है

किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था। एक बार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था।

उसको देखकर वह ब्राह्मण विचार करने लगा कि हो-न-हो, यही मेरे क्षेत्र का देवता है। मैंने कभी इसकी पूजा नहीं की। अतः मैं आज अवश्य इसकी पूजा करूंगा। यह विचार मन में आते ही वह उठा और कहीं से जाकर दूध मांग लाया।

उसे उसने एक मिट्टी के बरतन में रखा और बिल के समीप जाकर बोला,

“हे क्षेत्रपाल! आज तक मुझे आपके विषय में मालूम नहीं था, इसलिए मैं किसी प्रकार की पूजा-अर्चना नहीं कर पाया। आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए।”

इस प्रकार प्रार्थना करके उसने उस दूध को वहीं पर रख दिया और फिर अपने घर को लौट गया। दूसरे दिन प्रातःकाल जब वह अपने खेत पर आया तो सर्वप्रथम उसी स्थान पर गया। वहां उसने देखा कि जिस बरतन में उसने दूध रखा था उसमें एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई है।

उसने उस मुद्रा को उठाकर रख लिया। उस दिन भी उसने उसी प्रकार सर्प की पूजा की और उसके लिए दूध रखकर चला गया। अगले दिन प्रातःकाल उसको फिर एक स्वर्णमुद्रा मिली।इस प्रकार अब नित्य वह पूजा करता और अगले दिन उसको एक स्वर्णमुद्रा मिल जाया करती थी।

कुछ दिनों बाद उसको किसी कार्य से अन्य ग्राम में जाना पड़ा। उसने अपने पुत्र को उस स्थान पर दूध रखने का निर्देश दिया। तदानुसार उस दिन उसका पुत्र गया और वहां दूध रख आया। दूसरे दिन जब वह पुनः दूध रखने के लिए गया तो देखा कि वहां स्वर्णमुद्रा रखी हुई है।

उसने उस मुद्रा को उठा लिया और वह मन ही मन सोचने लगा कि निश्चित ही इस बिल के अंदर स्वर्णमुद्राओं का भण्डार है। मन में यह विचार आते ही उसने निश्चय किया कि बिल को खोदकर सारी मुद्राएं ले ली जाएं। सर्प का भय था। किन्तु जब दूध पीने के लिए सर्प बाहर निकला तो उसने उसके सिर पर लाठी का प्रहार किया।

इससे सर्प तो मरा नहीं पर इस प्रहार से क्रोधित होकर उसने ब्राह्मण-पुत्र को अपने विषभरे दांतों से काटा लिया जिजसे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई।

सीख : लालच का फल कभी मीठा नहीं होता है।

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคšเคคुเคฐाเคˆ เคธे เค•เค िเคจ เค•ाเคฎ เคญी เคธंเคญเคต

                                पंचतंत्र

               चतुराई से कठिन काम भी संभव

एक जंगल में महाचतुरक नामक सियार रहता था। एक दिन जंगल में उसने एक मरा हुआ हाथी देखा। उसकी बांछे खिल गईं। उसने हाथी के मृत शरीर पर दांत गड़ाया पर चमड़ी मोटी होने की वजह से, वह हाथी को चीरने में नाकाम रहा।

वह कुछ उपाय सोच ही रहा था कि उसे सिंह आता हुआ दिखाई दिया। आगे बढ़कर उसने सिंह का स्वागत किया और हाथ जोड़कर कहा,

“स्वामी आपके लिए ही मैंने इस हाथी को मारकर रखा है, आप इस हाथी का मांस खाकर मुझ पर उपकार कीजिए।” सिंह ने कहा, “मैं तो किसी के हाथों मारे गए जीव को खाता नहीं हूं, इसे तुम ही खाओ।”

सियार मन ही मन खुश तो हुआ पर उसकी हाथी की चमड़ी को चीरने की समस्या अब भी हल न हुई थी।थोड़ी देर में उस तरफ एक बाघ आ निकला। बाघ ने मरे हाथी को देखकर अपने होंठ पर जीभ फिराई। सियार ने उसकी मंशा भांपते हुए कहा,

“मामा आप इस मृत्यु के मुंह में कैसे आ गए? सिंह ने इसे मारा है और मुझे इसकी रखवाली करने को कह गया है। एक बार किसी बाघ ने उनके शिकार को जूठा कर दिया था तब से आज तक वे बाघ जाति से नफरत करने लगे हैं। आज तो हाथी को खाने वाले बाघ को वह जरुर मार गिराएंगे।”

यह सुनते ही बाघ वहां से भाग खड़ा हुआ। पर तभी एक चीता आता हुआ दिखाई दिया। सियार ने सोचा चीते के दांत तेज होते हैं। कुछ ऐसा करूं कि यह हाथी की चमड़ी भी फाड़ दे और मांस भी न खाए। उसने चीते से कहा,

“प्रिय भांजे, इधर कैसे निकले? कुछ भूखे भी दिखाई पड़ रहे हो।”

सिंह ने इसकी रखवाली मुझे सौंपी है, पर तुम इसमें से कुछ मांस खा सकते हो। मैं जैसे ही सिंह को आता हुआ देखूंगा, तुम्हें सूचना दे दूंगा, तुम सरपट भाग जाना”।

पहले तो चीते ने डर से मांस खाने से मना कर दिया, पर सियार के विश्वास दिलाने पर राजी हो गया।चीते ने पलभर में हाथी की चमड़ी फाड़ दी।

जैसे ही उसने मांस खाना शुरू किया कि दूसरी तरफ देखते हुए सियार ने घबराकर कहा,

“भागो सिंह आ रहा है”।

इतना सुनना था कि चीता सरपट भाग खड़ा हुआ। सियार बहुत खुश हुआ। उसने कई दिनों तक उस विशाल जानवर का मांस खाया।सिर्फ अपनी सूझ-बूझ से छोटे से सियार ने अपनी समस्या का हल निकाल लिया।

सीख : बुद्धि के प्रयोग से कठिन से कठिन काम भी संभव हो जाता है।

Wednesday 25 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เค†เคตाเคœ เคจे เค–ोเคฒा เคญेเคฆ

                       पंचतंत्र

                 आवाज ने खोला भेद

किसी नगर में एक धोबी रहता था। अच्छा चारा न मिलने के कारण उसका गधा बहुत कमजोर हो गया था। एक दिन धोबी को जंगल में बाघ की एक खाल मिल गई। उसने सोचा कि रात में इस खाल को ओढ़ाकर मैं गधे को खेतों में छोड़ दिया करुँगा।

गाँववाले इसे बाघ समझेंगे और डर से इसके पास नहीं आएँगे।

खेतों में चरकर यह खूब मोटा-ताजा हो जाएगा। एक रात गधा बाघ की खाल ओढ़े खेत में चर रहा था।

तभी उसने दूर से किसी गधी का रेंकना सुना। उसकी आवाज सुनकर गधा प्रसन्न हो उठा और मौज में आकर स्वयं भी रेंकने लगा।

गधे की आवाज सुनते ही खेतों के रखवालों ने उसे घर लिया और पीट-पीटकर जान से मार डाला।

सीख : अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए। कभी-कभी यह खतरनाक भी साबित होता है।

Tuesday 24 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคฌเค•เคฐा เค”เคฐ เคฌ्เคฐाเคน्เคฎเคฃ

                            पंचतंत्र

                     बकरा और ब्राह्मण

किसी गांव में सम्भुदयाल नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह अपने यजमान से एक बकरा लेकर अपने घर जा रहा था। रास्ता लंबा और सुनसान था। आगे जाने पर रास्ते में उसे तीन ठग मिले। ब्राह्मण के कंधे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हथियाने की योजना बनाई।

एक ने ब्राह्मण को रोककर कहा,

“पंडित जी यह आप अपने कंधे पर क्या उठा कर ले जा रहे हैं। यह क्या अनर्थ कर रहे हैं? ब्राह्मण होकर कुत्ते को कंधों पर बैठा कर ले जा रहे हैं।”

ब्राह्मण ने उसे झिड़कते हुए कहा, “अंधा हो गया है क्या? दिखाई नहीं देता यह बकरा है।”

पहले ठग ने फिर कहा, “खैर मेरा काम आपको बताना था। अगर आपको कुत्ता ही अपने कंधों पर ले जाना है तो मुझे क्या? आप जानें और आपका काम।”

थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। उसने ब्राह्मण को रोका और कहा, “पंडित जी क्या आपको पता नहीं कि उच्चकुल के लोगों को अपने कंधों पर कुत्ता नहीं लादना चाहिए।”

पंडित उसे भी झिड़क कर आगे बढ़ गया। आगे जाने पर उसे तीसरा ठग मिला।

उसने भी ब्राह्मण से उसके कंधे पर कुत्ता ले जाने का कारण पूछा। इस बार ब्राह्मण को विश्वास हो गया कि उसने बकरा नहीं बल्कि कुत्ते को अपने कंधे पर बैठा रखा है।

थोड़ी दूर जाकर, उसने बकरे को कंधे से उतार दिया और आगे बढ़ गया। इधर तीनों ठग ने उस बकरे को मार कर खूब दावत उड़ाई।

इसीलिए कहते हैं कि किसी झूठ को बार-बार बोलने से वह सच की तरह लगने लगता है।

अतः अपने दिमाग से काम लें और अपने आप पर विश्वास करें।

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคœैเคธे เค•ो เคคैเคธा

 Story Time ๐Ÿ˜Š

                             เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ

                           เคœैเคธे เค•ो เคคैเคธा

เค•िเคธी เคจเค—เคฐ เคฎें เคเค• เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•ा เคชुเคค्เคฐ เคฐเคนเคคा เคฅा। เคฆुเคฐ्เคญाเค—्เคฏ เคธे เค‰เคธเค•ी เคธाเคฐी เคธंเคชเคค्เคคि เคธเคฎाเคช्เคค เคนो เค—เคˆ। เค‡เคธเคฒिเค เค‰เคธเคจे เคธोเคšा เค•ि เค•िเคธी เคฆूเคธเคฐे เคฆेเคถ เคฎें เคœाเค•เคฐ เคต्เคฏाเคชाเคฐ เค•िเคฏा เคœाเค। เค‰เคธเค•े เคชाเคธ เคเค• เคญाเคฐी เค”เคฐ เคฎूเคฒ्เคฏเคตाเคจ เคคเคฐाเคœू เคฅा। เค‰เคธเค•ा เคตเคœเคจ เคฌीเคธ เค•िเคฒो เคฅा। เค‰เคธเคจे เค…เคชเคจे เคคเคฐाเคœू เค•ो เคเค• เคธेเค  เค•े เคชाเคธ เคงเคฐोเคนเคฐ เคฐเค– เคฆिเคฏा เค”เคฐ เคต्เคฏाเคชाเคฐ เค•เคฐเคจे เคฆूเคธเคฐे เคฆेเคถ เคšเคฒा เค—เคฏा।

เค•เคˆ เคฆेเคถों เคฎें เค˜ूเคฎเค•เคฐ เค‰เคธเคจे เคต्เคฏाเคชाเคฐ เค•िเคฏा เค”เคฐ เค–ूเคฌ เคงเคจ เค•เคฎाเค•เคฐ เคตเคน เค˜เคฐ เคตाเคชเคธ เคฒौเคŸा। เคเค• เคฆिเคจ เค‰เคธเคจे เคธेเค  เคธे เค…เคชเคจा เคคเคฐाเคœू เคฎाँเค—ा। เคธेเค  เคฌेเคˆเคฎाเคจी เคชเคฐ เค‰เคคเคฐ เค—เคฏा। เคตเคน เคฌोเคฒा,

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‘เคธेเค  เคœी, เคœเคฌ เคšूเคนे เคคเคฐाเคœू เค•ो เค–ा เค—เค เคคो เค†เคช เค•เคฐ เคญी เค•्เคฏा เค•เคฐ เคธเค•เคคे เคนैं! เคฎैं เคจเคฆी เคฎें เคธ्เคจाเคจ เค•เคฐเคจे เคœा เคฐเคนा เคนूँ। เคฏเคฆि เค†เคช เค…เคชเคจे เคชुเคค्เคฐ เค•ो เคฎेเคฐे เคธाเคฅ เคจเคฆी เคคเค• เคญेเคœ เคฆें เคคो เคฌเคก़ी เค•ृเคชा เคนोเค—ी।’

เคธेเค  เคฎเคจ-เคนी-เคฎเคจ เคญเคฏเคญीเคค เคฅा เค•ि เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•ा เคชुเคค्เคฐ เค‰เคธ เคชเคฐ เคšोเคฐी เค•ा เค†เคฐोเคช เคจ เคฒเค—ा เคฆे। เค‰เคธเคจे เค†เคธाเคจी เคธे เคฌाเคค เคฌเคจเคคे เคจ เคฆेเค–ी เคคो เค…เคชเคจे เคชुเคค्เคฐ เค•ो เค‰เคธเค•े เคธाเคฅ เคญेเคœ เคฆिเคฏा।เคธ्เคจाเคจ เค•เคฐเคจे เค•े เคฌाเคฆ เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•े เคชुเคค्เคฐ เคจे เคฒเคก़เค•े เค•ो เคเค• เค—ुเคซ़ा เคฎें เค›िเคชा เคฆिเคฏा। เค‰เคธเคจे เค—ुเคซा เค•ा เคฆ्เคตाเคฐ เคšเคŸ्เคŸाเคจ เคธे เคฌंเคฆ เค•เคฐ เคฆिเคฏा เค”เคฐ เค…เค•ेเคฒा เคนी เคธेเค  เค•े เคชाเคธ เคฒौเคŸ เค†เคฏा।

เคธेเค  เคจे เคชूเค›ा, ‘เคฎेเคฐा เคฌेเคŸा เค•เคนाँ เคฐเคน เค—เคฏा?’ เค‡เคธ เคชเคฐ เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•े เคชुเคค्เคฐ เคจे เค‰เคค्เคคเคฐ เคฆिเคฏा,

‘เคœเคฌ เคนเคฎ เคจเคฆी เค•िเคจाเคฐे เคฌैเค े เคฅे เคคो เคเค• เคฌเคก़ा เคธा เคฌाเคœ เค†เคฏा เค”เคฐ เคเคชเคŸ्เคŸा เคฎाเคฐเค•เคฐ เค†เคชเค•े เคชुเคค्เคฐ เค•ो เค‰เค ाเค•เคฐ เคฒे เค—เคฏा।’ เคธेเค  เค•्เคฐोเคง เคธे เคญเคฐ เค—เคฏा।

เค‰เคธเคจे เคถोเคฐ เคฎเคšाเคคे เคนुเค เค•เคนा-‘เคคुเคฎ เคूเค े เค”เคฐ เคฎเค•्เค•ाเคฐ เคนो। เค•ोเคˆ เคฌाเคœ เค‡เคคเคจे เคฌเคก़े เคฒเคก़เค•े เค•ो เค‰เค ाเค•เคฐ เค•ैเคธे เคฒे เคœा เคธเค•เคคा เคนै? เคคुเคฎ เคฎेเคฐे เคชुเคค्เคฐ เค•ो เคตाเคชเคธ เคฒे เค†เค“ เคจเคนीं เคคो เคฎैं เคฐाเคœा เคธे เคคुเคฎ्เคนाเคฐी เคถिเค•ाเคฏเคค เค•เคฐुँเค—ा’

เคต्เคฏाเคชाเคฐी เคชुเคค्เคฐ เคจे เค•เคนा, ‘เค†เคช เค ीเค• เค•เคนเคคे เคนैं।’ เคฆोเคจों เคจ्เคฏाเคฏ เคชाเคจे เค•े เคฒिเค เคฐाเคœเคฆเคฐเคฌाเคฐ เคฎें เคชเคนुँเคšे।

เคธेเค  เคจे เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•े เคชुเคค्เคฐ เคชเคฐ เค…เคชเคจे เคชुเคค्เคฐ เค•े เค…เคชเคนเคฐเคฃ เค•ा เค†เคฐोเคช เคฒเค—ाเคฏा। เคจ्เคฏाเคฏाเคงीเคถ เคจे เค•เคนा, ‘เคคुเคฎ เคธेเค  เค•े เคฌेเคŸे เค•ो เคตाเคชเคธ เค•เคฐ เคฆो।’

เค‡เคธ เคชเคฐ เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•े เคชुเคค्เคฐ เคจे เค•เคนा เค•ि ‘เคฎैं เคจเคฆी เค•े เคคเคŸ เคชเคฐ เคฌैเค ा เคนुเค† เคฅा เค•ि เคเค• เคฌเคก़ा-เคธा เคฌाเคœ เคเคชเคŸा เค”เคฐ เคธेเค  เค•े เคฒเคก़เค•े เค•ो เคชंเคœों เคฎें เคฆเคฌाเค•เคฐ เค‰เคก़ เค—เคฏा। เคฎैं เค‰เคธे เค•เคนाँ เคธे เคตाเคชเคธ เค•เคฐ เคฆूँ?’

เคจ्เคฏाเคฏाเคงीเคถ เคจे เค•เคนा, ‘เคคुเคฎ เคूเค  เคฌोเคฒเคคे เคนो। เคเค• เคฌाเคœ เคชเค•्เคทी เค‡เคคเคจे เคฌเคก़े เคฒเคก़เค•े เค•ो เค•ैเคธे เค‰เค ाเค•เคฐ เคฒे เคœा เคธเค•เคคा เคนै?’

เค‡เคธ เคชเคฐ เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•े เคชुเคค्เคฐ เคจे เค•เคนा, ‘เคฏเคฆि เคฌीเคธ เค•िเคฒो เคญाเคฐ เค•ी เคฎेเคฐी เคฒोเคนे เค•ी เคคเคฐाเคœू เค•ो เคธाเคงाเคฐเคฃ เคšूเคนे เค–ाเค•เคฐ เคชเคšा เคธเค•เคคे เคนैं เคคो เคฌाเคœ เคชเค•्เคทी เคญी เคธेเค  เค•े เคฒเคก़เค•े เค•ो เค‰เค ाเค•เคฐ เคฒे เคœा เคธเค•เคคा เคนै।’

เคจ्เคฏाเคฏाเคงीเคถ เคจे เคธेเค  เคธे เคชूเค›ा, ‘เคฏเคน เคธเคฌ เค•्เคฏा เคฎाเคฎเคฒा เคนै?’

เค…ंเคคเคคः เคธेเค  เคจे เคธ्เคตเคฏं เคธाเคฐी เคฌाเคค เคฐाเคœเคฆเคฐเคฌाเคฐ เคฎें เค‰เค—เคฒ เคฆी। เคจ्เคฏाเคฏाเคงीเคถ เคจे เคต्เคฏाเคชाเคฐी เค•े เคชुเคค्เคฐ เค•ो เค‰เคธเค•ा เคคเคฐाเคœू เคฆिเคฒเคตा เคฆिเคฏा เค”เคฐ เคธेเค  เค•ा เคชुเคค्เคฐ เค‰เคธे เคตाเคชเคธ เคฎिเคฒ เค—เคฏा।

เคธीเค– : เคšाเคฒाเค• เคฒोเค—ों เคธे เคนोเคถिเคฏाเคฐी เคธे เคจिเคชเคŸเคจा เคšाเคนिเคฏे ।

Monday 23 January 2017

Story Time : เคเค• เค•เคนाเคจी (เคถ्เคฐी เคถเคฐเคฆ เคœोเคถी )

  Story Time ๐Ÿ˜Š                
                              เคเค• เค•เคนाเคจी

                           (เคถ्เคฐी เคถเคฐเคฆ เคœोเคถी)


เคเค• เคธเคœ्เคœเคจ เคฌเคจाเคฐเคธ เคชเคนुुँเคšे। เคธ्เคŸेเคถเคจ เคชเคฐ เค‰เคคเคฐे เคนी เคฅे เค•ि เคเค• เคฒเคก़เค•ा เคฆौเคก़เคคा เค†เคฏा, ‘‘เคฎाเคฎाเคœी! เคฎाเคฎाเคœी !’’- เคฒเคก़เค•े เคจे เคฒเคชเค• เค•เคฐ เคšเคฐเคฃ เค›ूเค। เคตे เคชเคนเคšाเคจे เคจเคนीं।

เคฌोเคฒे-‘‘เคคुเคฎ เค•ौเคจ?’’
‘‘เคฎैं เคฎुเคจ्เคจा। เค†เคช เคชเคนเคšाเคจे เคจเคนीं เคฎुเคे?’’
‘‘เคฎुเคจ्เคจा?’’ เคตे เคธोเคšเคจे เคฒเค—े।
‘‘เคนां, เคฎुเคจ्เคจा। เคญूเคฒ เค—เค เค†เคช เคฎाเคฎाเคœी!
เค–ैเคฐ, เค•ोเคˆ เคฌाเคค เคจเคนीं, เค‡เคคเคจे เคธाเคฒ เคญी เคคो เคนो เค—เค। เคฎैं เค†เคœเค•เคฒ เคฏเคนीं เคนूं।’’ ‘‘เค…เคš्เค›ा।’’ ‘‘เคนाँ।’’ 
เคฎाเคฎाเคœी เค…เคชเคจे เคญाเคจเคœे เค•े เคธाเคฅ เคฌเคจाเคฐเคธ เค˜ूเคฎเคจे เคฒเค—े। เคšเคฒो, เค•ोเคˆ เคธाเคฅ เคคो เคฎिเคฒा। เค•เคญी เค‡เคธ เคฎंเคฆिเคฐ, เค•เคญी เค‰เคธ เคฎंเคฆिเคฐ। เคซिเคฐ เคชเคนुंเคšे เค—ंเค—ाเค˜ाเคŸ। เคฌोเคฒे เค•ि "เคธोเคš เคฐเคนा เคนूँ, เคจเคนा เคฒूँ!"
‘‘เคœเคฐूเคฐ เคจเคนाเค‡เค เคฎाเคฎाเคœी! เคฌเคจाเคฐเคธ เค†เค เคนैं เค”เคฐ เคจเคนाเคँเค—े เคจเคนीं, เคฏเคน เค•ैเคธे เคนो เคธเค•เคคा เคนै?’’   

เคฎाเคฎाเคœी เคจे เค—ँเค—ा เคฎें เคกुเคฌเค•ी เคฒเค—ाเคˆ। เคนเคฐ-เคนเคฐ เค—ँเค—े!
เคฌाเคนเคฐ เคจिเค•เคฒे เคคो เคธाเคฎाเคจ เค—ाเคฏเคฌ, เค•เคชเคก़े เค—ाเคฏเคฌ! 
เคฒเคก़เค•ा… เคฎुเคจ्เคจा เคญी เค—ाเคฏเคฌ!
‘‘เคฎुเคจ्เคจा… เค เคฎुเคจ्เคจा!’’
เคฎเค—เคฐ เคฎुเคจ्เคจा เคตเคนाँ เคนो เคคो เคฎिเคฒे। เคตे เคคौเคฒिเคฏा เคฒเคชेเคŸ เค•เคฐ เค–เคก़े เคนैं।
‘‘เค•्เคฏों เคญाเคˆ เคธाเคนเคฌ, เค†เคชเคจे เคฎुเคจ्เคจा เค•ो เคฆेเค–ा เคนै?’’
‘‘เค•ौเคจ เคฎुเคจ्เคจा?’’
‘‘เคตเคนी เคœिเคธเค•े เคนเคฎ เคฎाเคฎा เคนैं।’’ เคฒोเค— เคฌोเคฒे, ‘‘เคฎैं เคธเคฎเคा เคจเคนीं।’’
‘‘เค…เคฐे, เคนเคฎ เคœिเคธเค•े เคฎाเคฎा เคนैं เคตो เคฎुเคจ्เคจा।’’
เคตे เคคौเคฒिเคฏा เคฒเคชेเคŸे เคฏเคนाँ เคธे เคตเคนाँ เคฆौเคก़เคคे เคฐเคนे। เคฎुเคจ्เคจा เคจเคนीं เคฎिเคฒा।
เค ीเค• เค‰เคธी เคช्เคฐเค•ाเคฐ…
เคญाเคฐเคคीเคฏ เคจाเค—เคฐिเค• เค”เคฐ เคญाเคฐเคคीเคฏ เคตोเคŸเคฐ เค•े เคจाเคคे เคนเคฎाเคฐी เคฏเคนी เคธ्เคฅिเคคि เคนै! เคšुเคจाเคต เค•े เคฎौเคธเคฎ เคฎें เค•ोเคˆ เค†เคคा เคนै เค”เคฐ เคนเคฎाเคฐे เคšเคฐเคฃों เคฎें เค—िเคฐ เคœाเคคा เคนै।
"เคฎुเคे เคจเคนीं เคชเคนเคšाเคจा!
เคฎैं เคšुเคจाเคต เค•ा เค‰เคฎ्เคฎीเคฆเคตाเคฐ। เคนोเคจे เคตाเคฒा เคเคฎ.เคชी. MLA. เคฎुเคे เคจเคนीं เคชเคนเคšाเคจा…?"
เค†เคช เคช्เคฐเคœाเคคंเคค्เคฐ เค•ी เค—ँเค—ा เคฎें เคกुเคฌเค•ी เคฒเค—ाเคคे เคนैं। เคฌाเคนเคฐ เคจिเค•เคฒเคจे เคชเคฐ เค†เคช เคฆेเค–เคคे เคนैं เค•ि เคตเคน เคถเค–्เคธ เคœो เค•เคฒ เค†เคชเค•े เคšเคฐเคฃ เค›ूเคคा เคฅा, เค†เคชเค•ा เคตोเคŸ เคฒेเค•เคฐ เค—ाเคฏเคฌ เคนो เค—เคฏा। เคตोเคŸों เค•ी เคชूเคฐी เคชेเคŸी เคฒेเค•เคฐ เคญाเค— เค—เคฏा। เคธเคฎเคธ्เคฏाเค“ं เค•े เค˜ाเคŸ เคชเคฐ เคนเคฎ เคคौเคฒिเคฏा เคฒเคชेเคŸे เค–เคก़े เคนैं।
เคธเคฌเคธे เคชूเค› เคฐเคนे เคนैं- "เค•्เคฏों เคธाเคนเคฌ, เคตเคน เค•เคนीं เค†เคชเค•ो เคจเคœ़เคฐ เค†เคฏा? 
เค…เคฐे เคตเคนी, เคœिเคธเค•े เคนเคฎ เคตोเคŸเคฐ เคนैं। เคตเคนी, เคœिเคธเค•े เคนเคฎ เคฎाเคฎा เคนैं।" เคชाँँเคš เคธाเคฒ เค‡เคธी เคคเคฐเคน เคคौเคฒिเคฏा เคฒเคชेเคŸे, เค˜ाเคŸ เคชเคฐ เค–เคก़े เคฌीเคค เคœाเคคे เคนैं। เค†เค—ाเคฎी เคšुเคจाเคตी เคธ्เคŸेเคถเคจ เคชเคฐ เคญांเคœे เค†เคชเค•ा เค‡ंเคคเคœाเคฐ เคฎे….

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคคीเคจ เคธाเคงु

                            पंचतंत्र

                           तीन साधु

ज्ञान की खोज में एक बार तीन साधु हिमालय पर जा पहुंचे। वहां पहुंचकर तीनों साधुओं को बहुत भूख लगी। देखा तो उनके पास तो मात्र दो ही रोटियां थी। उन तीनों ने तय किया कि वो भूखे ही सो जाएंगे। ईश्वर जिसके सपने में आकर रोटी खाने का संकेत देंगे वो ही ये रोटियां खाएगा। ऐसा कहकर तीनों साधु सो गए।

आधी रात को तीनों साधु उठे और एक-दूसरे को अपना-अपना सपना सुनाने लगे। पहले साधु ने कहा-

मैं सपने में एक अनजानी जगह पहुंचा वहां बहुत शांति थी और वहां मुझे ईश्वर मिले। और उन्होंने मुझे कहा कि तुमने जीवन में सदा त्याग ही किया है। इसलिए ये रोटियां तुम्हें ही खानी चाहिए।

दूसरे साधु ने कहा कि-

मैंने सपने में देखा कि भूतकाल में तपस्या करने के कारण में महात्मा बन गया हूं और मेरी मुलाकात ईश्वर से होती है और वे मुझे कहते हैं कि लंबे समय तक कठोर तप करने के कारण रोटियों पर सबसे पहला हक तुम्हारा है, तुम्हारे मित्रों का नहीं।

अब तीसरे साधु की बारी थी उसने कहा

मैंने सपने में कुछ नहीं देखा। क्योंकी मैने वो रोटियां खा ली हैं। यह सुनकर दोनों साधु क्रोधित हो गए।

उन्होंने तीसरे साधु से पूछा-

यह निर्णय लेने से पहले तुमने हमें क्यों नहीं उठाया? तब तीसरे साधु ने कहा कैसे उठाता?

तुम दोनों तो ईश्वर से बातें कर रहे थे। लेकिन ईश्वर ने मुझे उठाया और भूखे मरने से बचा लिया।

सीख :- जीवन-मरण का प्रश्न हो तो कोई किसी का मित्र नहीं होता व्यक्ति वही काम करता है जिससे उसका जीवन बच सके।

Sunday 22 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เค•ाเคฌिเคฒ เคนाเคฅी

               
                             पंचतंत्र

                         काबिल हाथी

बहुत समय पहले की बात है| किसी जंगल में एक हाथी रहता था| उस हाथी का कोई दोस्त नहीं था|

एक दिन  उसे जंगल के बीच में पेड़ पर एक बन्दर दिखा| हाथी ने बन्दर से कहा "बन्दर भाई मेरा कोई दोस्त नहीं है क्या आप मेरे साथ दोस्ती करोगे|" बन्दर ने कहा "आप बहुत बड़े हैं मैं बहुत छोटा  हूँ और आप मेरी तरह डाल पर उछल कूद भी नहीं सकते, इसलिये आप की और मेरी दोस्ती नहीं हो सकती है|

अगले दिन हाथी को नेक खरगोश मिला हाथी ने खरगोश को भी दोस्त बनने के लिए कहा । का पर खरगोश ने कहा आप बहुत बड़े हो और मैं बहुत छोटा हूँ आप मेरे बाड़े में भी नहीं आसकते इसलिए हमारी दोस्ती नहीं हो सकती है|

फिर हाथी तालाब के किनारे गया वहां उसे एक मेढक मिला| हाथी ने मेढक से कहा की मेढक भाई क्या मुझ से दोस्ती करोगे| मेढक ने कहा जरा अपना शारीर तो देखो कितना बड़ा है और में कितना छोटा हूँ इस लिए हमारी दोस्ती संभव नहीं है|

अगले दिन हाथी को एक गीदड़ मिल गया हाथी ने उस से भी दोस्ती करने के लिए कहा पर गीदड़ ने भी दोस्ती करने से मना कर दिया|

हाथी को बहुत बुरा लगा उसे लगा मेरा  यह बड़ा शरीर मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है । इसलिये मुझ से कोई दोस्ती नहीं करना चाहता ।

शाम को हाथी ने देखा की जंगल के सभी जानवर भाग कर जा रहे हैं| हाथी ने उनको रोक कर जानना चाहा| गीदड़ ने बताया की जंगल का राजा  शेर सब को मार कर खा जाना चाहता है| इसलिए  सभी जानवर  अपनी जान बचने के लिए भाग रहे है|

हाथी ने शेर से कहा तुम इस तरह सभी जानवरों के पीछे क्यों पड़े हो सभी जानवरों को एक साथ ही मारके खा लोगे क्या |

शेर ने हाथी से कहा यह मेरी मर्जी तुम रोकनेवाले कौन होते हो | 

हाथी को सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने जोर से एक लात शेर को मार दी| शेर छटक कर दूर जा गिरा | उसे बहुत सारी चोट भी लग गई और दर्द के मारे शेर वहां से भाग गया| 

जब हाथी ने यह बात सभी जानवरों को बताई तो सभी जानवर बहुत खुश हो गए और सभी ने हाथी को अपना दोस्त बना लिया | इसी लिए कहते हैं 
की आप किसी के काम के होंगे तो सभी आप से मित्रता करेंगे |

सीख : - काबिल को सभी पूछते हैं ।