Thursday 31 August 2017

Story Time : เคถंเค–เคฐाเคœ เค•ी เค‡เคนเคฒीเคฒा เค”เคฐ เค—ाँเคต เคตाเคฒों เค•ी เคถ्เคฐเคฆ्เคงा   

Story Time ๐Ÿ˜Š                

                     เคถंเค–เคฐाเคœ เค•ी เค‡เคนเคฒीเคฒा
                   เค”เคฐ เค—ाँเคต เคตाเคฒों เค•ी เคถ्เคฐเคฆ्เคงा
   

เคเค• เคฅे เคชंเคกिเคค เคœी! เคจाเคฎ เคฅा เคธเคœ्เคœเคจเคช्เคฐเคธाเคฆ, เคธเคœ्เคœเคจ เค”เคฐ เคธเคฆाเคšाเคฐी เคญी เคฅे เค”เคฐ เคˆเคถ्เคตเคฐ-เคญเค•्เคค เคญी เค•िเคจ्เคคु เคงเคฐ्เคฎ เค•ा เค•ोเคˆ เคตिเคœ्เคžाเคจ เคธเคฎ्เคฎเคค เคธ्เคตเคฐूเคช เคญी เคนै, เคฏเคน เคตे เคจ เคœाเคจเคคे เคฅे।

เคช्เคฐเคคिเคฆिเคจ เคช्เคฐाเคคःเค•ाเคฒ เคชूเคœा เคธเคฎाเคช्เคค เค•เคฐเค•े เคชंเคกिเคค เคœी เคถंเค– เคฌเคœाเคคे। เคตเคน เค†เคตाเคœ เคธुเคจเคคे เคนी เคชเคก़ौเคธ เค•ा เค—เคงा เค•िเคธी เค—ोเคค्เคฐ-เคฌเคจ्เคงु เค•ी เค†เคตाเคœ เคธเคฎเคเค•เคฐ เคธ्เคตเคฏं เคญी เคฐेंเค• เค‰เค เคคा। เคชंเคกिเคค เคœी เคช्เคฐเคธเคจ्เคจ เคนो เค‰เค เคคे เค•ि เคฏเคน เค•ोเคˆ เคชूเคฐ्เคต เคœเคจ्เคฎ เค•ा เคฎเคนाเคจ เคคเคชเคธ्เคตी เค”เคฐ เคญเค•्เคค เคฅा। เคเค• เคฆिเคจ เค—เคงा เคจเคนीं เคšिเคฒ्เคฒाเคฏा, เคชंเคกिเคค เคœी เคจे เคชเคคा เคฒเค—ाเคฏा। เคฎाเคฒूเคฎ เคนुเค† เค•ि เค—เคงा เคฎเคฐ เค—เคฏा। เค—เคงे เค•े เคธเคฎ्เคฎाเคจ เคฎें เค‰เคจ्เคนोंเคจे เค…เคชเคจा เคธिเคฐ เค˜ुเคŸाเคฏा เค”เคฐ เคตिเคงिเคตเคค เคคเคฐ्เคชเคฃ เค•िเคฏा। เคถाเคฎ เค•ो เคตे เคฌเคจिเคฏे เค•ी เคฆुเค•ाเคจ เค•ुเค› เคธौเคฆा เคฒेเคจे เค—เคฏे। เคฌเคจिเคฏे เค•ो เคถเค• เคนुเค†- เคฎเคนाเคฐाเคœ! เค†เคœ เคฏเคน เคธिเคฐ เค˜ुเคŸเคฎुเคจ्เคก เค•ैเคธा?” “เค…เคฐे เคญाเคˆ เคถंเค–เคฐाเคœ เค•ी เค‡เคนเคฒीเคฒा เคธเคฎाเคช्เคค เคนो เค—เคˆ เคนै।”

เคฌเคจिเคฏा เคชंเคกिเคค เค•ा เคฏเคœเคฎाเคจ เคฅा, เค‰เคธเคจे เคญी เค…เคชเคจा เคธเคฐ เค˜ुเคŸा เคฒिเคฏा। เคฌाเคค เคœเคนाँ เคคเค• เคซैเคฒเคคी เค—เคˆ, เคฒोเค— เค…เคชเคจे เคธिเคฐ เค˜ुเคŸाเคคे เค—เคฏे। เค›ूเคค เคฌเคก़ी เค–เคฐाเคฌ เคนोเคคी เคนै। เคเค• เคธिเคชाเคนी เคฌเคจिเคฏे เค•े เคฏเคนाँ เค†เคฏा เค‰เคธเคจे เคคเคฎाเคฎ เค—ाँเคต เคตाเคฒों เค•ो เคธเคฐ เคฎुเคก़ाเคฏे เคฆेเค–ा- เคชเคคा เคšเคฒा เคถंเค–เคฐाเคœ เคœी เคฎเคนाเคฐाเคœ เคจเคนीं เคฐเคนे, เคคो เค‰เคธเคจे เคญी เคธिเคฐ เค˜ुเคŸाเคฏा। เคงीเคฐे-เคงीเคฐे เคธाเคฐी เคซौเคœ เคธिเคฐ-เคธเคชाเคŸ เคนो เค—เคˆ।

เค…เคซเคธเคฐों เค•ो เคฌเคก़ी เคนैเคฐाเคจी เคนुเคˆ। เค‰เคจ्เคนोंเคจे เคชूเค›ा- เคญाเคˆ เคฌाเคค เค•्เคฏा เคนुเคˆ। เคชเคคा เคฒเค—ाเคคे-เคฒเค—ाเคคे เคชंเคกिเคค เคœी เค•े เคฌเคฏाเคจ เคคเค• เคชเคนुँเคšे เค”เคฐ เคœเคฌ เคฎाเคฒूเคฎ เคนुเค† เค•ि เคถंเค–เคฐाเคœ เค•ोเคˆ เค—เคงा เคฅा, เคคो เคฎाเคฐे เคถเคฐ्เคฎ เค•े เคธเคฌเค•े เคšेเคนเคฐे เคुเค• เค—เคฏे।

เคเค• เค…เคซเคธเคฐ เคจे เคธैเคจिเค•ों เคธे เค•เคนा- ‘‘เคเคธे เค…เคจेเค• เค…เคจ्เคง-เคตिเคถ्เคตाเคธ เคธเคฎाเคœ เคฎें เค•ेเคตเคฒ เค‡เคธเคฒिเคฏे เคซैเคฒे เคนैं เค•ि เค‰เคจเค•े เคฎूเคฒ เค•ा เคชเคคा เคจเคนीं เคนै। เคงเคฐ्เคฎ เคชเคฐเคฎ्เคชเคฐाเคตाเคฆी เคจเคนीं, เคธเคค्เคฏ เค•ी เคช्เคฐเคคिเคท्เค ा เค•े เคฒिเคฏे เคนै, เคตเคน เคธुเคงाเคฐ เค”เคฐ เคธเคฎเคจ्เคตเคฏ เค•ा เคฎाเคฐ्เค— เคนै।

Wednesday 30 August 2017

เคฒोเค•เค•เคฅा : เคถेเค–เคšिเคฒ्เคฒी เค•ी เคฒंเคฌी เคฆाเฅी

Story Time 😊

                   भारत की लोककथाएँ

                शेखचिल्ली की लंबी दाढ़ी

शेखजी मूर्ख थे लेक़िन पुस्तकें पढने का उन्हें बड़ा शौक था । एक दिन शेखजी कोई पुस्तक पढ़ रहे थे । तभी उनकी निगाह एक जगह लिखे कुछ अक्षरों पर पड़ी । लिखा था - ‘लम्बी दाढ़ी वाले मूर्ख होते हैं ।‘ यह वाक्य पढ़ते ही शेखजी का हाथ तुरंत अपनी दाढ़ी पर गया ।

पूरी एक फुट लम्बी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए शेखजी ने सोचा - ‘तब तो लोग हमें भी मूर्ख समझते होंगे ।‘ बस, यह बात दिमाग में आता ही फ़ौरन लगे कैंची ढूँढने । पूरा घर छान मारा , लेकिन कैंची नहीं मिली । अचानक उनकी नज़र आले में जल रहे दीपक पर पड़ी । शेखजी ने फ़ौरन दीपक उठाया और एक हाथ से दाढ़ी पकड़कर सोचा - ‘जहाँ तक हाथ है वहां तक की दाढ़ी फूंक देते हैं, बाकी कल हज्जाम से मुंडवा लेंगे ।

 शेखजी ने फ़ौरन दीपक की लौ दाढ़ी में लगा दी । अगले ही पल उनकी दाढ़ी धूं-धूं कर जलने लगी । चेहरे और छाती पर तपिश लगी तो शेखजी ने दीपक एक और फेंका और लगे चीख पुकार मचने और जब चेहरा भी झुलसने लगा तो भागकर गए और बाल्टी में गर्दन तक सर डाल दिया । तब कहीं जाकर उन्हें राहत मिली, फिर सोचने लगे - ‘बिलकुल सच बात लिखी है, सचमुच लम्बी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं ।

Tuesday 29 August 2017

เคฒोเค• เค•เคฅा : เคถेเค–เคšिเคฒ्เคฒी เค•ा เค–เคค เคญाเคˆเคœाเคจ เค•े เคจाเคฎ

                   भारत की लोककथाएँ

          शेखचिल्ली का खत भाईजान के नाम

आप सभी ने मियाँ शेख चिल्ली का नाम सुना होगा। वही शेख चिल्ली जो अकल के पीछे लाठी लिए घूमते थे।

हुआ यूँ कि किसी ने शेख चिल्ली को उनके भाई के बीमार होने की खबर दी ।  शेख चिल्ली के भाई दूर किसी शहर में बसते थे। तो उनकी खैरियत जानने के लिए शेख ने उन्हें खत लिखा।

उस जमाने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्‍ठियाँ गाँव के नाई के जरिये भिजवाया करते थे या कोई और नौकर चिट्‍ठी लेकर जाता था। लेकिन उ‍न दिनों नाई उन्हें बीमार मिला। फसल कटाई का मौसम होने से कोई नौकर या मजदूर भी खाली नहीं था अत: मियाँ जी ने तय किया कि वह खुद ही चिट्‍ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्‍ठी लेकर घर से निकल पड़े। दोपहर तक वह अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्‍ठी पकड़ाकर लौटने लगे।

 उनके भाई ने हैरानी से पूछा - अरे! चिल्ली भाई! यह खत कैसा है? और तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है? भाई ने यह कहते हुए चिल्ली को गले से लगाना चाहा। पीछे हटते हुए चिल्ली बोले - भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्‍ठी लिखी थी। चिट्‍ठी ले जाने को नाई नहीं मिला तो उसकी बजाय मुझे ही चिट्‍ठी देने आना पड़ा। भाई ने कहा - जब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहरो। शेख चिल्ली ने मुँह बनाते हुए कहा - आप भी अजीब इंसान हैं। समझते नहीं। यह समझिए कि मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज निभा रहा हूँ। मुझे आना होता तो मैं चिट्‍ठी क्यों लिखता?

Monday 28 August 2017

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ : เคนเคจुเคฎाเคจเคœी เค•ो เค•्เคฏों เคช्เคฐिเคฏ เคนै เคธिंเคงुเคฐ

                     पौराणिक कथाएँ

           हनुमानजी को क्यों प्रिय है सिंधुर

रामचरित मानस के अनुसार जब राम जी लक्ष्मण और सीता सहित अयोध्या लौट आए तो एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही हैं। हनुमान जी ने उत्सुक हो माता सीता से पूछा यह क्या है जो आप मांग में सजा रही हैं। माता सीता ने कहा यह सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर है। इसे मांग में सजाने से मुझे राम जी का स्नेह प्राप्त होता है और उनकी आयु लंबी होती है। यह सुन कर हनुमान जी से रहा न गया ओर उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया तथा मन ही मन विचार करने लगे इससे तो मेरे प्रभु श्रीराम की आयु ओर लम्बी हो जाएगी ओर वह मुझे अति स्नेह भी करेंगे। सिंदूर लगे हनुमान जी प्रभु राम जी की सभा में चले गए।

राम जी ने जब हनुमान को इस रुप में देखा तो हैरान रह गए। राम जी ने हनुमान से पूरे शरीर में सिंदूर लेपन करने का कारण पूछा तो हनुमान जी ने साफ-साफ कह दिया कि इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा। हनुमान जी की इस बात को सुनकर राम जी भाव विभोर हो गए और हनुमान जी को गले से लगा लिया। उस समय से ही हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है और सिंदूर अर्पित करने वाले पर हनुमान जी प्रसन्न रहते हैं।

Wednesday 23 August 2017

เค•เคฅा เคธाเค—เคฐ : เคนเคฒเค›เค  เคต्เคฐเคคเค•เคฅा

Story Time ๐Ÿ˜Š

                         เคนเคฒเค›เค  เคต्เคฐเคคเค•เคฅा

                         (เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ)

เคฎเคนाเคญाเคฐเคค เคฎें เค…เคญिเคฎเคจ्เคฏु เค•ी เคฎृเคค्เคฏु เค•े เคฌाเคฆ เคเค• เค”เคฐ เค‡เคคเคจा เคนी เคฌเฅœा เคชाเคช เค…เคถ्เคตเคค्เคฅाเคฎा เคจे เคชाँเคš เคชाเคฃ्เคกเคตों เค”เคฐ เคฆ्เคฐौเคชเคฆी เค•े เคชाँเคš เคชुเคค्เคฐों เค•ो เคฎाเคฐเค•เคฐ เค•िเคฏा । เค…เคถ्เคตเคค्เคฅाเคฎा เค•े เคฌ्เคฐเคน्เคฎाเคธ्เคค्เคฐ เค•ा เค…เคธเคฐ เค…เคญिเคฎเคจ्เคฏु เค•ी เคชเคค्เคจी เค‰เคค्เคคเคฐा เค•े เค—เคฐ्เคญ เคชเคฐ เคญी เคชเฅœा । เค‰เคค्เคคเคฐा เค•ा เค—เคฐ्เคญ เคฆुเค—्เคง เคนोเคจे เคฒเค—ा । เคชाँเคกเคตों เคจे เคตंเคถ เค•ी เคฐเค•्เคทा เคนेเคคु เคถ्เคฐीเค•ृเคท्เคฃ เค•ी เคธเคฒाเคน เคฎांเค—ी।

เคถ्เคฐीเค•ृเคท्เคฃ เคจे เค‰เคชाเคฏ เคฌเคคाเคคे เคนुเค เค•เคนा । เคญाเคฆ्เคฐ เคฎाเคธ เค•े เค•ृเคท्เคฃ เคชเค•्เคท เคทเคท्เค ी เค•ो เคฎेเคฐे  เคฌเคก़े เคญाเคˆ เคฌเคฒเคฐाเคฎ เคœी เค•ा เคœเคจ्เคฎ เคนुเค† เคฅा। เคตเคน เคธเคฎ्เคชूเคฐ्เคฃ เคงाเคฐा เค•े เค—เคฐ्เคญ เค•े เคฐเค•्เคทเค• เคนैं । เคตเคนी เค‡เคธ เค—เคฐ्เคญ เค•ी เคญी เคฐเค•्เคทा เค•เคฐेंเค—े । เค‰เคค्เคคเคฐा เค‰เคจเค•े เคœเคจ्เคฎเคฆिเคตเคธ เคชเคฐ เค‰เคจเค•ी เคตिเคงि เคตिเคงाเคจ เคธे เคชूเคœा เค•เคฐे เคเคตं เค‰เคจเคธे เค…เคชเคจे เค—เคฐ्เคญ เค•ी เคฐเค•्เคทा เค•เคฐเคจे เค•ा เคตเคฐเคฆाเคจ เคฎांเค— เคฒे । เค‰เคค्เคคเคฐा เคจे เคตैเคธा เคนी เค•िเคฏा ।

เคญाเคฆ्เคฐ เคฎाเคธ เค•े เค•ृเคท्เคฃ เคชเค•्เคท เคทเคท्เค ी เค•ो เคถेเคทเคจाเค— เค•े เค…เคตเคคाเคฐ เคญเค—เคตाเคจ เคฌเคฒเคฐाเคฎ เค•ा เคต्เคฐเคค เค•िเคฏा เค”เคฐ เคนเคฒเคงเคฐ เคธे เค…เคชเคจे เค—เคฐ्เคญ เค•ी เคฐเค•्เคทा เค•ा เคตเคฐเคฆाเคจ เคฒे เคฒिเคฏा । เคคเคฆुเคชเคฐाเคจ्เคค เค‰เคค्เคคเคฐा เค•ो เคชเคฐीเค•्เคทिเคค เคจाเคฎเค• เคชुเคค्เคฐ เค•ी เคช्เคฐाเคช्เคคि เคนुเคˆ ।

เคคเคญी เคธे เคฏเคน เคต्เคฐเคค เคฌเคฒเคฐाเคฎ เคœी เค•े เคœเคจ्เคฎ เค•े เค‰เคชเคฒเค•्เคท्เคฏ เคฎें เคญी เคฎเคจाเคฏा เคœाเคคा เคนै। เคฌเคฒเคฐाเคฎ เคœी เค•ा เคฎुเค–्เคฏ เคถเคธ्เคค्เคฐ เคนเคฒ เคนै เค‡เคธเคฒिเคฏे เค‡เคธ เคต्เคฐเคค เค•ो เคนเคฒเคทเคท्เค ी เค•เคนเคคे เคนैं। เค‡เคธ เคต्เคฐเคค เคฎें เคนเคฒ เคธे เคœुเคคे เคนुเค เค…เคจाเคœ เคต เคธเคฌ्เคœिเคฏों เค•ा เคธेเคตเคจ เคจเคนीं เค•िเคฏा เคœाเคคा เคนै। เค‡เคธเคฒिเค เคฎเคนिเคฒाเคँ เค‡เคธ เคฆिเคจ เคคाเคฒाเคฌ เคฎें เค‰เค—े เคชเคธเคนी/เคคिเคจ्เคจी เค•ा เคšाเคตเคฒ/เคชเคšเคนเคฐ เค•े เคšाเคตเคฒ เค–ाเค•เคฐ เคต्เคฐเคค เคฐเค–เคคी เคนैं। เค‡เคธ เคต्เคฐเคค เคฎें เค—ाเคฏ เค•ा เคฆूเคง เคต เคฆเคนी เค‡เคธ्เคคेเคฎाเคฒ เคฎें เคจเคนीं เคฒाเคฏा เคœाเคคा เคนै เค‡เคธ เคฆिเคจ เคฎเคนिเคฒाเคं เคญैंเคธ เค•ा เคฆूเคง ,เค˜ी เคต เคฆเคนी เค‡เคธ्เคคेเคฎाเคฒ เค•เคฐเคคी เคนै|
เคญाเคฆ्เคฐ เค•ृเคท्เคฃ เคชเค•्เคท เค•ी เคทเคท्เค ी เคคिเคฅि เค•ो เคนเคฒ เคทเคท्เค ी เคฏा เคนเคฐ เค›เค  เคต्เคฐเคค เค”เคฐ เคชूเคœเคจ เค•िเคฏा เคœाเคคा เคนै।

เค‡เคธ เคฆिเคจ เคงเคฐเคคी เค•े เค…ंเคฆเคฐ เคฐเคนเคจे เคตाเคฒे เคธเคญी เคœीเคตों เค•ी เคชूเคœा เค•ी เคœाเคคी เคนै, เค•्เคฏों เค•ि เคตเคน เคœीเคต เคชृเคฅ्เคตी เค•े เค—เคฐ्เคญ เคฎें เค›ुเคชे เค‰เคจ เคฒाเค–ों เคตीเคœों เค•ा เคฐเค•्เคทเคฃ เค•เคฐเคคे เคนैं เคœो เคญเคตिเคท्เคฏ เคฎें เคซเคฒ เคฆेंเค—े। 

เคœिเคธ เคช्เคฐเค•ाเคฐ เคนเคฒเคงเคฐ, เคงเคฐा เค•े เค‡เคท्เคŸ เคฐूเคช เคฎें เค‰เคธเค•े เค—เคฐ्เคญ เคธंเคธाเคฐ เค•ी เคฐเค•्เคทा เค•เคฐเคคे เคนैं । เคตैเคธे เคนी เค‡เคธ เคต्เคฐเคค เค•ो เค•เคฐเคจे เคธे เคตเคน เคนเคฎाเคฐे เคญी เค—เคฐ्เคญ เคฎें เค›ूเคชे เคธंเคธाเคฐ เค•ी เคฐเค•्เคทा เค•เคฐेंเค—े।

เคฌोเคฒो เคนเคฒเคงเคฐ เคฎเคนाเคฐाเคœ เค•ी เคœเคฏ เคฌोเคฒो เคถेเคทाเคตเคคाเคฐ เค•ी เคœเคฏ ।

เค•เคฅा เคธाเค—เคฐ : เคนเคฐिเคคाเคฒिเค•ा เคต्เคฐเคค เค•เคฅा

Story Time ๐Ÿ˜Š

                     เคนเคฐिเคคाเคฒिเค•ा เคต्เคฐเคค เค•เคฅा

                             เค•เคฅा เคธाเค—เคฐ

เคนเคฐिเคคाเคฒिเค•ा เคฆो เคถเคฌ्เคฆों เคธे เคฌเคจा เคนै, เคนเคฐिเคค เค”เคฐ เคคाเคฒिเค•ा। เคนเคฐिเคค เค•ा เค…เคฐ्เคฅ เคนै เคนเคฐเคฃ เค•เคฐเคจा เค”เคฐ เคคाเคฒिเค•ा เค…เคฐ्เคฅाเคค เคธเค–ी। เคฏเคน เคชเคฐ्เคต เคญाเคฆ्เคฐเคชเคฆ เค•ी เคถुเค•्เคฒ เคคृเคคीเคฏा เค•ो เคฎเคจाเคฏा เคœाเคคा เคนै, เคœिเคธ เค•ाเคฐเคฃ เค‡เคธे เคคीเคœ เค•เคนเคคे เคนै। เค‡เคธ เคต्เคฐเคค เค•ो เคนเคฐिเคคाเคฒिเค•ा เค‡เคธเคฒिเค เค•เคนा เคœाเคคा เคนै, เค•्เคฏोเค•ि เคชाเคฐ्เคตเคคी เค•ी เคธเค–ी (เคฎिเคค्เคฐ) เค‰เคจ्เคนें เคชिเคคा เค•े เค˜เคฐ เคธे เคนเคฐเคฃ เค•เคฐ เคœंเค—เคฒ เคฎें เคฒे เค—เคˆ เคฅी।

เคฒिंเค— เคชुเคฐाเคฃ เค•ी เคเค• เค•เคฅा เค•े เค…เคจुเคธाเคฐ เคฎाँ เคชाเคฐ्เคตเคคी เคจे เค…เคชเคจे เคชूเคฐ्เคต เคœเคจ्เคฎ เคฎें เคญเค—เคตाเคจ เคถंเค•เคฐ เค•ो เคชเคคि เคฐूเคช เคฎें เคช्เคฐाเคช्เคค เค•เคฐเคจे เค•े เคฒिเค เคนिเคฎाเคฒเคฏ เคชเคฐ เค—ँเค—ा เค•े เคคเคŸ เคชเคฐ เค…เคชเคจी เคฌाเคฒ्เคฏाเคตเคธ्เคฅा เคฎें เค…เคงोเคฎुเค–ी เคนोเค•เคฐ เค˜ोเคฐ เคคเคช เค•िเคฏा। เค‡เคธ เคฆौเคฐाเคจ เค‰เคจ्เคนोंเคจे เค…เคจ्เคจ เค•ा เคธेเคตเคจ เคจเคนीं เค•िเคฏा। เค•เคˆ เคตเคฐ्เคทों เคคเค• เค‰เคจ्เคนोंเคจे เค•ेเคตเคฒ เคนเคตा เคชीเค•เคฐ เคนी เคต्เคฏเคคीเคค เค•िเคฏा।। เคฎाเคคा เคชाเคฐ्เคตเคคी เค•ी เคฏเคน เคธ्เคฅिเคคि เคฆेเค–เค•เคฐ เค‰เคจเค•े เคชिเคคा เค…เคค्เคฏंเคค เคฆुเค–ी เคฅे।

เค‡เคธी เคฆौเคฐाเคจ เคเค• เคฆिเคจ เคฎเคนเคฐ्เคทि เคจाเคฐเคฆ เคญเค—เคตाเคจ เคตिเคท्เคฃु เค•ी เค“เคฐ เคธे เคชाเคฐ्เคตเคคी เคœी เค•े เคตिเคตाเคน เค•ा เคช्เคฐเคธ्เคคाเคต เคฒेเค•เคฐ เคฎाँ เคชाเคฐ्เคตเคคी เค•े เคชिเคคा เค•े เคชाเคธ เคชเคนुँเคšे, เคœिเคธे เค‰เคจ्เคนोंเคจे เคธเคนเคฐ्เคท เคนी เคธ्เคตीเค•ाเคฐ เค•เคฐ เคฒिเคฏा। เคชिเคคा เคจे เคœเคฌ เคฎाँ เคชाเคฐ्เคตเคคी เค•ो เค‰เคจเค•े เคตिเคตाเคน เค•ी เคฌाเคค เคฌเคคเคฒाเคˆ เคคो เคตเคน เคฌเคนुเคค เคฆुเค–ी เคนो เค—เคˆ เค”เคฐ เคœोเคฐ-เคœोเคฐ เคธे เคตिเคฒाเคช เค•เคฐเคจे เคฒเค—ी। เคซिเคฐ เคเค• เคธเค–ी เค•े เคชूเค›เคจे เคชเคฐ เคฎाเคคा เคจे เค‰เคธे เคฌเคคाเคฏा เค•ि เคตเคน เคฏเคน เค•เค ोเคฐ เคต्เคฐเคค เคญเค—เคตाเคจ เคถिเคต เค•ो เคชเคคि เคฐूเคช เคฎें เคช्เคฐाเคช्เคค เค•เคฐเคจे เค•े เคฒिเค เค•เคฐ เคฐเคนी เคนैं เคœเคฌเค•ि เค‰เคจเค•े เคชिเคคा เค‰เคจเค•ा เคตिเคตाเคน เคตिเคท्เคฃु เคธे เค•เคฐाเคจा เคšाเคนเคคे เคนैं। เคคเคฌ เคธเคนेเคฒी เค•ी เคธเคฒाเคน เคชเคฐ เคฎाเคคा เคชाเคฐ्เคตเคคी เค˜เคจे เคตเคจ เคฎें เคšเคฒी เค—เคˆ เค”เคฐ เคตเคนाँ เคเค• เค—ुเคซा เคฎें เคœाเค•เคฐ เคญเค—เคตाเคจ เคถिเคต เค•ी เค†เคฐाเคงเคจा เคฎें เคฒीเคจ เคนो เค—เคˆ।

เคญाเคฆ्เคฐเคชเคฆ เคคृเคคीเคฏा เคถुเค•्เคฒ เค•े เคฆिเคจ เคนเคธ्เคค เคจเค•्เคทเคค्เคฐ เค•ो เคฎाเคคा เคชाเคฐ्เคตเคคी เคจे เคฐेเคค เคธे เคถिเคตเคฒिंเค— เค•ा เคจिเคฐ्เคฎाเคฃ เค•िเคฏा เค”เคฐ เคญोเคฒेเคจाเคฅ เค•ी เคธ्เคคुเคคि เคฎें เคฒीเคจ เคนोเค•เคฐ เคฐाเคค्เคฐि เคœाเค—เคฐเคฃ เค•िเคฏा। เคคเคฌ เคฎाเคคा เค•े เค‡เคธ เค•เค ोเคฐ เคคเคชเคธ्เคฏा เคธे เคช्เคฐเคธเคจ्เคจ เคนोเค•เคฐ เคญเค—เคตाเคจ เคถिเคต เคจे เค‰เคจ्เคนें เคฆเคฐ्เคถเคจ เคฆिเค เค”เคฐ เค‡เคš्เค›ाเคจुเคธाเคฐ เค‰เคจเค•ो เค…เคชเคจी เคชเคค्เคจी เค•े เคฐूเคช เคฎें เคธ्เคตीเค•ाเคฐ เค•เคฐ เคฒिเคฏा।

เคฎाเคจ्เคฏเคคा เคนै เค•ि เค‡เคธ เคฆिเคจ เคœो เคฎเคนिเคฒाเคँ เคตिเคงि-เคตिเคงाเคจเคชूเคฐ्เคตเค• เค”เคฐ เคชूเคฐ्เคฃ เคจिเคท्เค ा เคธे เค‡เคธ เคต्เคฐเคค เค•ो เค•เคฐเคคी เคนैं, เคตเคน เค…เคชเคจे เคฎเคจ เค•े เค…เคจुเคฐूเคช เคชเคคि เค•ो เคช्เคฐाเคช्เคค เค•เคฐเคคी เคนैं।

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅा : เคถिเคต-เคฐाเคฎ เคธंเค—्เคฐाเคฎ

                      पौराणिक कथाएँ

                      शिव-राम संग्राम

जब श्रीराम का अश्वमेघ यज्ञ चल रहा था। श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न के नेतृत्व में असंख्य वीरों की सेना सारे प्रदेश को विजित करती जा रही थी जहाँ भी यज्ञ का अश्व जा रहा था। इस क्रम में कई राजाओं के द्वारा यज्ञ का घोड़ा पकड़ा गया लेकिन अयोध्या की सेना के आगे उन्हें झुकना पड़ा. शत्रुघ्न के आलावा सेना में हनुमान, सुग्रीव और भारत पुत्र पुष्कल सहित कई महारथी उपस्थित थे जिन्हें जीतना देवताओं के लिए भी संभव नहीं था। कई जगह भ्रमण करने के बाद यज्ञ का घोडा देवपुर पहुंचा जहाँ राजा वीरमणि का राज्य था। राजा वीरमणि अति धर्मनिष्ठ तथा श्रीराम एवं महादेव के अनन्य भक्त थे। उनके दो पुत्र रुक्मांगद और शुभंगद वीरों में श्रेष्ठ थे। राजा वीरमणि के भाई वीरसिंह भी एक महारथी थे। राजा वीरमणि ने भगवान रूद्र की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था और महादेव ने उन्हें उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान दिया था। महादेव के द्वारा रक्षित होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का सहस नहीं करता था।

जब अश्व उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया और अयोध्या के साधारण सैनिकों से कहा यज्ञ का घोडा उनके पास है इसलिए वे जाकर शत्रुघ्न से कहें की विधिवत युद्ध कर वो अपना अश्व छुड़ा लें। जब रुक्मांगद ने ये सूचना अपने पिता को दी तो वो बड़े चिंतित हुए और अपने पुत्र से कहा की अनजाने में तुमने श्रीराम के यज्ञ का घोडा पकड़ लिया है। श्रीराम हमारे मित्र हैं और उनसे शत्रुता करने का कोई औचित्य नहीं है इसलिए तुम यज्ञ का घोडा वापस लौटा आओ। इसपर रुक्मांगद ने कहा कि हे पिताश्री, मैंने तो उन्हें युद्ध की चुनौती भी दे दी है अतः अब उन्हें बिना युद्ध के अश्व लौटना हमारा और उनका दोनों का अपमान होगा।  अब तो जो हो गया है उसे बदला नहीं जा सकता इसलिए आप मुझे युद्ध कि आज्ञा दें। पुत्र की बात सुनकर वीरमणि ने उसे सेना सुसज्जित करने की आज्ञा दे दी। राजा वीरमणि अपने भाई वीरसिंह और अपने दोनों पुत्र रुक्मांगद और शुभांगद के साथ विशाल सेना ले कर युद्ध क्षेत्र में आ गए।

इधर जब शत्रुघ्न को सूचना मिली की उनके यज्ञ का घोडा बंदी बना लिया गया है तो वो बहुत क्रोधित हुए एवं अपनी पूरी सेना के साथ युद्ध के लिए युध्क्षेत्र में आ गए। उन्होंने पूछा की उनकी सेना से कौन अश्व को छुड़ाएगा तो भारत पुत्र पुष्कल ने कहा कि तातश्री, आप चिंता न करें. आपके आशीर्वाद और श्रीराम के प्रताप से मैं आज ही इन सभी योधाओं को मार कर अश्व को मुक्त करता हूँ।  वे दोनों इस प्रकार बात कर रहे थे कि पवनसुत हनुमान ने कहा कि राजा वीरमणि के राज्य पर आक्रमण करना स्वयं परमपिता ब्रम्हा के लिए भी कठिन है क्योंकि ये नगरी महाकाल द्वारा रक्षित है। अतः उचित यही होगा कि पहले हमें बातचीत द्वारा राजा वीरमणि को समझाना चाहिए और अगर हम न समझा पाए तो हमें श्रीराम को सूचित करना चाहिए।  राजा वीरमणि श्रीराम का बहुत आदर करते हैं इसलिये वे उनकी बात नहीं टाल पाएंगे। हनुमान की बात सुन कर शत्रुघन बोले की हमारे रहते अगर श्रीराम को युध्भूमि में आना पड़े, ये हमारे लिए अत्यंत लज्जा की बात है। अब जो भी हो हमें युद्ध तो करना ही पड़ेगा। ये कहकर वे सेना सहित युद्धभूमि में पहुच गए।

भयानक युद्ध छिड़ गया। भरत पुत्र पुष्कल सीधा जाकर राजा वीरमणि से भिड गया। दोनों अतुलनीय वीर थे। वे दोनों तरह तरह के शास्त्रार्थों का प्रयोग करते हुए युद्ध करने लगे। हनुमान राजा वीरमणि के भाई महापराक्रमी वीरसिंह से युद्ध करने लगे।  रुक्मांगद और शुभांगद ने शत्रुघ्न पर धावा बोल दिया। पुष्कल और वीरमणि में बड़ा घमासान युद्ध हुआ। अंत में पुष्कल ने वीरमणि पर आठ नाराच बाणों से वार किया। इस वार को राजा वीरमणि सह नहीं पाए और मुर्छित होकर अपने रथ पर गिर पड़े।  वीरसिंह ने हनुमान पर कई अस्त्रों का प्रयोग किया पर उन्हें कोई हानि न पहुंचा सके। हनुमान ने एक विकट पेड़ से वीरसिंह पर वार किया इससे वीरसिंह रक्तवमन करते हुए मूर्छित हो गए। उधर श्रीशत्रुघ्न और राजा वीरमणि के पुत्रों में असाधारण युद्ध चल रहा था। अंत में कोई चारा न देख कर शत्रुघ्न ने दोनों भाइयों को नागपाश में बाँध लिया। अपनी विजय देख कर शत्रुघ्न की सेना के सभी वीर सिंहनाद करने लगे। उधर राजा वीरमणि की मूर्छा दूर हुई तो उन्होंने देखा की उनकी सेना हार के कगार पर है। ये देख कर उन्होंने भगवान रूद्र का स्मरण किया।

महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में जान कर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित सारे गणों को युध्क्षेत्र में भेज दिया। महाकाल के सारे अनुचर उनकी जयजयकार करते हुए अयोध्या की सेना पर टूट पड़े। शत्रुघ्न, हनुमान और बांकी योधाओं को लगा की जैसे प्रलय आ गया हो। जब उन्होंने भयानक मुख वाले रुद्रावतार वीरभद्र, नंदी, भृंगी सहित महादेव की सेना देखी तो सारे सैनिक भय से कांप उठे। शत्रुघ्न ने हनुमान से कहा की जिस वीरभद्र ने बात ही बात में दक्ष प्रजापति की मस्तक काट डाला था और जो तेज और समता में स्वयं महाकाल के सामान है उसे युद्ध में कैसे हराया जा सकता है। ये सुनकर पुष्कल ने कहा की हे तातश्री, आप दुखी मत हों। अब तो जो भी हो हमें युद्ध तो करना हीं पड़ेगा।  ये कहता हुए पुष्कल वीरभद्र से, हनुमान नंदी से और शत्रुघ्न भृंगी से जा भिड़े। पुष्कल ने अपने सारे दिव्यास्त्रों का प्रयोग वीरभद्र पर कर दिया लेकिन वीरभद्र ने बात ही बात में उसे काट दिया। उन्होंने पुष्कल से कहा की हे बालक, अभी तुम्हारी आयु मृत्यु को प्राप्त होने की नहीं हुई है इसलिए युध्क्षेत्र से हट जाओ। उसी समय पुष्कल ने वीरभद्र पर शक्ति से प्रहार किया जो सीधे उनके मर्मस्थान पर जाकर लगा। इसके बाद वीरभद्र ने क्रोध से थर्राते हुए एक त्रिशूल से पुष्कल का मस्तक काट लिया और भयानक सिंहनाद किया। उधर भृंगी आदि गणों ने शत्रुघ्न पर भयानक आक्रमण कर दिया। अंत में भृंगी ने महादेव के दिए पाश में शत्रुघ्न को बाँध दिया।  हनुमान अपनी पूरी शक्ति से नंदी से युद्ध कर रहे थे। उन दोनों ने ऐसा युद्ध किया जैसा पहले किसी ने नहीं किया था। दोनों श्रीराम के भक्त थे और महादेव के तेज से उत्पन्न हुए थे। काफी देर लड़ने के बाद कोई और उपाय न देख कर नंदी ने शिवास्त्र के प्रयोग कर हनुमान को पराभूत कर दिया। अयोध्या के सेना की हार देख कर राजा वीरमणि की सेना में जबरदस्त उत्साह आ गया और वे बांकी बचे सैनिकों पर टूट पड़े। ये देख का हनुमान ने शत्रुघ्न से कहा की मैंने आपसे पहले ही कहा था की ये नगरी महाकाल द्वारा रक्षित है लेकिन आपने मेरी बात नहीं मानी। अब इस संकट से बचाव का एक ही उपाय की हम सब श्रीराम को याद करें। ऐसा सुनते ही सारे सैनिक शत्रुघ्न, पुष्कल एवं हनुमान सहित श्रीराम को याद करने लगे।

अपने भक्तों की पुकार सुन कर श्रीराम तत्काल ही लक्षमण और भरत के साथ वहां आ गए। अपने प्रभु को आया देख सभी हर्षित हो गए एवं सबको ये विश्वास हो गया की अब हमारी विजय निश्चित है। श्रीराम के आने पर जैसे पूरी सेना में प्राण का संचार हो गया। श्रीराम ने सबसे पहले शत्रुघ्न को मुक्त कराया और उधर लक्षमण ने हनुमान को मुक्त करा दिया. जब श्रीराम, लक्षमण और श्रीभरत ने देखा की पुष्कल मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। भरत तो शोक में मूर्छित हो गए। श्रीराम ने क्रोध में आकर वीरभद्र से कहा कि तुमने जिस प्रकार पुष्कल का वध किया है उसी प्रकार अब अपने जीवन का भी अंत समझो। ऐसा कहते हुए श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिवगणों पर धावा बोल दिया। जल्द ही उन्हें ये पता चल गया कि शिवगणों पर साधारण अस्त्र बेकार है इसलिए उन्होंने महर्षि विश्वामित्र द्वारा प्रदान किये दिव्यास्त्रों से वीरभद्र और नंदी सहित सारी सेना को विदीर्ण कर दिया। श्रीराम के प्रताप से पार न पाते हुए सारे गणों ने एक स्वर में महादेव का आव्हान करना शुरू कर दिया। जब महादेव ने देखा कि उनकी सेना बड़े कष्ट में है तो वे स्वयं युद्धक्षेत्र में प्रकट हुए ।

इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए परमपिता ब्रम्हा सहित सारे देवता आकाश में स्थित हो गए। जब महाकाल ने युद्धक्षेत्र में प्रवेश किया तो उनके तेज से श्रीराम कि सारी सेना मूर्छित हो गयी। जब श्रीराम ने देखा कि स्वयं महादेव रणक्षेत्र में आये हैं तो उन्होंने शस्त्र का त्याग कर भगवान रूद्र को दंडवत प्रणाम किया एवं उनकी स्तुति की। उन्होंने महाकाल की स्तुति करते हुए कहा की हे सारे ब्रम्हांड के स्वामी आपके ही प्रताप से मैंने महापराक्रमी रावण का वध किया, आप स्वयं ज्योतिर्लिंग में रामेश्वरम में पधारे। हमारा जो भी बल है वो भी आपके आशीर्वाद के फलस्वरूप हीं है। ये जो अश्वमेघ यज्ञ मैंने किया है वो भी आपकी ही इच्छा से ही हो रहा है इसलिए हम पर कृपा करें और इस युद्ध का अंत करें। ये सुन कर भगवान रूद्र बोले की हे राम, आप स्वयं विष्णु के दुसरे रूप है मेरी आपसे युद्ध करने की कोई इच्छा नहीं है फिर भी चूँकि मैंने अपने भक्त वीरमणि को उसकी रक्षा का वरदान दिया है इसलिए मैं इस युद्ध से पीछे नहीं हट सकता अतः संकोच छोड़ कर आप युद्ध करें। श्रीराम ने इसे महाकाल की आज्ञा मन कर युद्ध करना शुरू किया। दोनों में महान युद्ध छिड़ गया जिसे देखने देवता लोग आकाश में स्थित हो गए। श्रीराम ने अपने सारे दिव्यास्त्रों का प्रयोग महाकाल पर कर दिया पर उन्हें संतुष्ट नहीं कर सके. अंत में उन्होंने पाशुपतास्त्र के संधान किया और भगवान शिव से बोले की हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है की आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता, इसलिए हे महादेव आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर हीं करता हूँ। ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया। वो अस्त्र सीधा महादेव के हृदयस्थल में समां गया और भगवान रूद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा की आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वार मांग लें. इसपर श्रीराम ने कहा की हे भगवान यहाँ इस युद्ध क्षेत्र में भ्राता भरत के पुत्र पुष्कल के साथ असंख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए है, उन्हें कृपया जीवनदान दीजिये. महादेव ने मुस्कुराते हुए तथास्तु कहा और पुष्कल समेत दोनों ओर के सारे योद्धाओं को जीवित कर दिया. इसके बाद उनकी आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का घोडा श्रीराम को लौटा दिया और अपना राज्य रुक्मांगद को सौंप कर वे भी शत्रुघ्न के साथ आगे चल दिए।

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ : เคคुเคฒเคธी เคตिเคตाเคน เค•ी เค•เคฅा

               पौराणिक कथाएँ

           तुलसी विवाह की कथा

एक बार श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे। शास्त्रों के अनुसार तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे। उनके कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था।

तुलसी श्री गणेश के रुप पर मोहित हो गई और उनके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई। तुलसी ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग किया। तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को नकार दिया।

श्री गणेश द्वारा अपने विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने से देवी तुलसी बहुत दुखी हुई और आवेश में आकर उन्होंने श्री गणेश के दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। एक राक्षस की पत्नी होने का शाप सुनकर तुलसी ने श्री गणेश से माफी मांगी। तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा। किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी। पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा।

शिवमहापुराण के अनुसार पुरातन समय में दैत्यों का राजा दंभ था। वह विष्णुभक्त था। बहुत समय तक जब उसके यहां पुत्र नहीं हुआ तो उसने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को गुरु बनाकर उनसे श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया और पुष्कर में जाकर घोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र होने का वरदान दिया।

भगवान विष्णु के वरदान स्वरूप दंभ के यहां पुत्र का जन्म हुआ। (वास्तव में वह श्रीकृष्ण के पार्षदों का अग्रणी सुदामा नामक गोप था, जिसे राधाजी ने असुर योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया था) इसका नाम शंखचूड़ रखा गया। जब शंखचूड़ बड़ा हुआ तो उसने पुष्कर में जाकर ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की।

शंखचूड़ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि- मैं देवताओं के लिए अजेय हो जाऊं। ब्रह्माजी ने उसे वरदान दे दिया और कहा कि- तुम बदरीवन जाओ। वहां धर्मध्वज की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है, तुम उसके साथ विवाह कर लो।

ब्रह्माजी के कहने पर शंखचूड़ बदरीवन गया। वहां तपस्या कर रही तुलसी को देखकर वह भी आकर्षित हो गया। तब भगवान ब्रह्मा वहां आए और उन्होंने शंखचूड़ को गांधर्व विधि से तुलसी से विवाह करने के लिए कहा। शंखचूड़ ने ऐसा ही किया। इस प्रकार शंखचूड़ व तुलसी सुख पूर्वक विहार करने लगे।

शंखचूड़ बहुत वीर था। उसे वरदान था कि देवता भी उसे हरा नहीं पाएंगे। उसने अपने बल से देवताओं, असुरों, दानवों, राक्षसों, गंधर्वों, नागों, किन्नरों, मनुष्यों तथा त्रिलोकी के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली। उसके राज्य में सभी सुखी थे। वह सदैव भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहता था।

स्वर्ग के हाथ से निकल जाने पर देवता ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्माजी उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान विष्णु ने बोला कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से निर्धारित है। यह जानकर सभी देवता भगवान शिव के पास आए।

देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव ने चित्ररथ नामक गण को अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। चित्ररथ ने शंखचूड़ को समझाया कि वह देवताओं को उनका राज्य लौटा दे, लेकिन शंखचूड़ ने कहा कि महादेव के साथ युद्ध किए बिना मैं देवताओं को राज्य नहीं लौटाऊंगा।

भगवान शिव को जब यह बात पता चली तो वे युद्ध के लिए अपनी सेना लेकर निकल पड़े। शंखचूड़ भी युद्ध के लिए तैयार होकर रणभूमि में आ गया। देखते ही देखते देवता व दानवों में घमासान युद्ध होने लगा। वरदान के कारण शंखचूड़ को देवता हरा नहीं पा रहे थे।

शंखचूड़ और देवताओं का युद्ध सैकड़ों सालों तक चलता रहा। अंत में भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने के लिए जैसे ही अपना त्रिशूल उठाया, तभी आकाशवाणी हुई कि- जब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है और इसकी पत्नी का सतीत्व अखंडित है, तब तक इसका वध संभव नहीं होगा।

आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उससे श्रीहरि कवच दान में मांग लिया। शंखचूड़ ने वह कवच बिना किसी संकोच के दान कर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु शंखचूड़ का रूप बनाकर तुलसी के पास गए।

वहां जाकर शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल के द्वार पर जाकर अपनी विजय होने की सूचना दी। यह सुनकर तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पति रूप में आए भगवान का पूजन किया एवं चरणस्पर्श किया। तुलसी का सतीत्व भंग होते ही भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया { शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ की हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है }

जब तुलसी को ज्ञात हुआ कि यह मेरे स्वामी नहीं है, तब भगवान अपने मूल स्वरूप में आ गए। अपने साथ छल हुआ जानकर शंखचूड़ की पत्नी रोने लगी। उसने कहा- आज आपने छलपूर्वक मेरा धर्म नष्ट किया है और मेरे स्वामी को मार डाला। आप अवश्य ही पाषाण ह्रदय हैं, अत: आप मेरे श्राप से अब पाषाण (पत्थर) होकर पृथ्वी पर रहें।

तब भगवान विष्णु ने कहा- देवी। तुम मेरे लिए भारत वर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो। अब तुम इस शरीर का त्याग करके दिव्य देह धारणकर मेरे साथ आन्नद से रहो। तुम्हारा यह शरीर नदी रूप में बदलकर गंडकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी।

तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा। गंडकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे (नेपाल स्तिथ गण्डकी नदी, केवल इस नदी में ही मिलते है शालिग्राम) । धर्मालुजन तुलसी के पौधे व शालिग्राम शिला का विवाह कर पुण्य अर्जन करेंगे।