Sunday 25 June 2017

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ : เคฌाเคฒी เค”เคฐ เคธुเค—्เคฐीเคต เค•ा เคœเคจ्เคฎ เค•ैเคธे เคนुเค†

                       पौराणिक कहानियाँ

             बाली और सुग्रीव का जन्म कैसे हुआ

ऋष्यमूक पर्वत श्रेणियों के अन्तर्गत एक पर्वत पर एक विशाल बानर रहता था, जिसका नाम ऋक्षराज था ।

किसी ने उस बानर से पूछा कि इस पर्वत का नाम ऋष्यमूक क्यों पड़ा? तो उसने कहा कि रावण के द्वारा सताए हुए कई ऋषि एक साथ एक जगह मूक (मौन) होकर रावण का विरोध कर रहे थे।

रावण जब विश्व विजय के लिए वहाँ से निकला, तो उसने एक साथ लाखों ऋषियों को एक जगह एकत्र देख कर पूछा कि इतने सारे महात्मा लोग यहाँ क्या कर रहे हैं? तो राक्षसों ने जबाव दिया — महाराज ! यह आपके द्वारा सताए हुए ऋषि मूक होकर आपके विरोध स्वरूप यहाँ इकठ्ठे होकर आंदोलन कर रहे हैं । रावण ने कहा कि इनकी इतनी हिम्मत? मार डालो इन सभी को। रावण की आज्ञा से राक्षसों ने उन सभी ऋषियों को मार डाला ।उन्हीं के अस्थि अवशेषों से यह पहाड़ बन गया, जिससे इसका नाम ऋष्यमूक पर्वत पड़ गया ।

वह बानर (ऋक्षराज) बड़ा ही शक्तिशाली था। अपने बल के घमंड में इधर उधर विचरण करता रहता था ।उस पर्वत के पास में एक बड़ा ही सुंदर तालाब था, लेकिन उस तालाब की यह विशेषता थी कि जो उसमें स्नान करता, वह एक अत्यंत सुंदर स्त्री बन जाता। ऋक्षराज को यह बात मालूम नहीं थी। मस्ती में एक दिन वह उस तालाब में कूद पड़ा और जैसे ही बाहर आया तो उसने देखा कि वह एक बहुत ही सुंदर षोडशी स्त्री के रूप में परिणित हो चुका है।

यह देख कर उसे बहुत शर्म महसूस हुई, परंतु वह क्या कर सकता था? इतने में देवराज इन्द्र की दृष्टि उस स्त्री पर पड़ी। देखते ही उनका तेज स्खलित हो गया। वह तेज उस स्त्री के बालों पर गिरा। उसी से बालि की उत्पत्ति हुई । थोड़ी देर बाद सूर्योदय होने पर सूर्य की दृष्टि भी उस सुन्दरी पर पड़ी, तो सूर्यदेव भी उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गये। उनका तेज भी स्खलित हो गया, जो उस स्त्री की ग्रीवा पर पड़ा।उससे जिस पुत्र का जन्म हुआ उसका नाम सुग्रीव पड़ा। क्योंकि ग्रीवा पर तेज गिरा था, इसीलिए वे सुग्रीव कहलाए।

दोनों ही सगे भाई थे। बड़ा भाई बालि इन्द्र का पुत्र और छोटा भाई सूर्य का पुत्र सुग्रीव था। बालों पर तेज गिरने से बालि और ग्रीवा पर तेज गिरने से सुग्रीव नाम पड़ा। दोनों का पालन पोषण उसी ऋक्षराज बानर से बनी हुई स्त्री ने किया और उसी ऋष्यमूक पर्वत को अपना निवास बनाया ।

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                   पौराणिक कहानियाँ

              भंगस्वाना और इंद्र की कथा

बहुत समय पहले भंगस्वाना नाम का एक राजा रहता था। वह न्यायप्रिय और बहुत यशस्वी था लेकिन उसके कोई पुत्र नहीं था। एक बालक की इच्छा में उस राजा ने एक अनुष्ठान किया जिसका नाम था ‘अग्नीष्टुता’. क्यूंकि उस हवन में केवल अग्नि भगवान का आदर हुआ था इसलिए देवराज इन्द्र काफी क्रोधित हो गए।

इंद्र अपने गुस्से को  निकालने के लिए एक मौका ढूँडने लगे ताकि राजा भंगस्वाना से कोई गलती हो और वह उसे दंड दे सकें। पर भंगस्वाना इतना अच्छा राजा था की इन्द्र को कोई मौका नहीं मिल रहा था जिस कारण से इन्द्र का गुस्सा और बढ़ता जा रहा था था। एक दिन राजा शिकार पर निकला, इन्द्र ने सोचा ये सही समय है और अपने अपमान का बदला लेने का और इन्द्र ने राजा को सम्मोहित कर दिया।

राजा भंगस्वाना जंगल में इधर-उधर भटकने लगा. अपनी सम्मोहित हालत में वह सब सुध खो बैठा, ना उसे दिशाएं समझ आ रही थीं और ना ही अपने सैनिक नहीं दिख रहे थे. भूख-प्यास ने उसे और व्याकुल कर दिया था। अचानक उसे एक छोटी सी नदी दिखाई थी जो किसी जादू सी सुन्दर लग रही थी. राजा उस नदी की तरफ बढ़ा और पहले उसने अपने घोड़े को पानी पिलाया, फिर खुद पिया।

जैसे ही राजा ने नदी के अंदर प्रवेश की, पानी पिया, उसने देखा की वह बदल रहा है। धीरे-धीरे वह एक स्त्री में बदल गया। शर्म से बोझल वह राजा ज़ोर ज़ोर से विलाप करने लगा. उसे समझ नहीं आरहा था की ऐसा उसके साथ क्यूं हुआ।

राजा भंगस्वाना सोचने लगा, “हे प्रभु! इस अनर्थ के बाद में कैसे अपने राज्य वापस जाउं? मेरे अग्नीष्टुता’ अनुष्ठान से मेरे 100 पुत्र हुए हैं उन्हें मैं अब कैसे मिलूंगा, क्या कहूंगा? मेरी रानी, महारानी जो मेरी प्रतीक्षा कर रहीं हैं, उनसे कैसे मिलूंगा? मेरे पोरुष के साथ-साथ मेरा राज-पाट सब चला जाएगा, मेरी प्रजा का क्या होगा” इस तरह से विलाप करता राजा अपने राज्य वापस लौटा।

स्त्री के रूप में जब राजा वापस पँहुचा तो उसे देख कर सभी लोग अचंभित रह गए। राजा ने सभा बुलाई और अपनी रानियों, पुत्रों और मंत्रियों से कहा की अब मैं राज-पाट संभालने के लायक नहीं रहा हूँ, तुम सभी लोग सुख से यहाँ रहो और मैं जंगल में जाकर अपना बाकी का जीवन बीताउंगा.

ऐसा कह कर वह राजा जंगल की तरफ प्रस्थान कर गया। वहां जाकर वह स्त्री रूप में एक तपस्वी के आश्रम में रहने लगी जिनसे उसने कई पुत्रों को जन्म दिया। अपने उन पुत्रों को वह अपने पुराने राज्य ले गयी और अपने पुराने बच्चो से बोली, “तुम मेरे पुत्र हो जब में एक पुरुष था, ये मेरे पुत्र हैं जब में एक स्त्री हूँ। मेरे राज्य को मिल कर, भाइयों की तरह संभालो।” सभी भाई मिलकर रहने लगे।

सब को सुख से जीवन व्यतीति करता देख, देवराज इन्द्र और ज़्यादा क्रोधित हो जाए और उनमें बदले की भावना फिर जागने लगी। इन्द्र सोचने लगा की ऐसा लगता है की राजा को स्त्री में बदल कर मैने उसके साथ बुरे की जगह अच्छा कर दिया है। ऐसा कह कर इन्द्र ने एक ब्राह्मण का रूप धारा और पहुँच गया राजा भंगस्वाना के राज्य में। वहां जाकर उसने सभी राजकुमारों के कान भरने शुरू कर दिए।

इंद्र के भड़काने की  वजह से सभी भाई आपस में लड़ पड़े और एक दूसरे को मार डाला। जैसे ही भंगस्वाना को इस बात का पता चला वह शोकाकुल हो गया। ब्राह्मण के रूप में इन्द्र राजा के पास पहुंचा और पूछा की वह क्यूँ रो रही है। भंगस्वाना ने रोते रोते पूरी घटना इन्द्र को बताई तो इन्द्र ने अपना असली रूप दिखा कर राजा को उसकी गलती के बारे में बताया।

इंद्र ने कहा, “क्योंकि तुमने सिर्फ अग्नि को पूजा और मेरा अनादर किया इसलिए मैने तुम्हारे साथ यह खेल रचा।” यह सुनते ही भंगस्वाना इन्द्र के पैरों में गिर गया और अपने अनजाने में किया अपराध के लिए क्षमा मांगी। राजा की ऐसी दयनीय दशा देख कर इन्द्र को दया आ गई. इन्द्र ने राजा को माफ करते हुए अपने पुत्रों को जीवित करवाने का वरदान दिया।

इंद्र बोले, “हे स्त्री रूपी राजन, अपने बच्चों में से किन्ही एक को जीवित कर लो” भंगस्वाना ने इन्द्र से कहा अगर ऐसी ही बात है तो मेरे उन पुत्रों को जीवित कर दो जिन्हे मैने स्त्री की तरह पैदा किया है। हैरान होते हुए इन्द्र ने इसका कारण पूछा तो राजा ने जवाब दिया, “हे इन्द्र! एक स्त्री का प्रेम, एक पुरुष के प्रेम से बहुत अधिक होता है इसीलिए मैं अपनी कोख से जन्मे बालकों का जीवन-दान मांगती हूँ।”

उसके बाद इन्द्र ने राजा को दुबारा पुरुष रूप देने की बात की. इन्द्र बोले, “तुमसे खुश होकर हे भंगस्वाना मैं तुम्हे वापस पुरुष बनाना चाहता हूँ” पर राजा ने साफ मना कर दिया।

स्त्री रुपी भंगस्वाना बोला, “हे देवराज इन्द्र, मैं स्त्री रूप में ही खुश हूँ और स्त्री ही रहना चाहता हूँ” यह सुनकर इन्द्र उत्सुक होगए और पूछ बैठे की ऐसा क्यूँ राजन, क्या तुम वापस पुरुष बनकर अपना राज-पाट नहीं संभालना चाहते?” भंगस्वाना ने कहा देव स्त्री रूप में मैने जिस सन्तुष्टि का अनुभव किया वह पुरुष रूप में कभी संभव नहीं है ।

Friday 23 June 2017

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคนाเคจिเคฏाँ : เคจाเคฐिเคฏเคฒ เค•ी เค‰เคค्เคชเคค्เคคि เค•ैเคธे เคนुเคˆ

                   पौराणिक कहानियाँ

              नारियल की उत्पत्ति कैसे हुई

हिन्दू धर्म में नारियल का विशेष महत्तव है।  नारियल के बिना कोई भी धार्मिक कार्यक्रम संपन्न नहीं होता है। नारियल से जुडी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है जो जिसके अनुसार नारियल का इस धरती पर अवतरण ऋषि विश्वामित्र द्वारा किया गया था। आज हम आपको नारियल के जन्म से जुडी यही कहानी बता रहे है।

यह कहानी प्राचीन काल के एक राजा सत्यव्रत से जुड़ी है। सत्यव्रत एक प्रतापी राजा थे, जिनका ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास था। उनके पास सब कुछ था लेकिन उनके मन की एक इच्छा थी जिसे वे किसी भी रूप में पूरा करना चाहते थे।

वे चाहते थे की वे किसी भी प्रकार से पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक जा सकें। स्वर्गलोक की सुंदरता उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती थी, किंतु वहां कैसे जाना है, यह सत्यव्रत नहीं जानते थे।

एक बार ऋषि विश्वामित्र  तपस्या करने के लिए अपने घर से काफी दूर निकल गए थे और लम्बे समय से वापस नहीं आए थे। उनकी अनुपस्थिति में क्षेत्र में सूखा पड़ा गया और उनका परिवार भूखा-प्यासा भटक रहा था। तब राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की और उनकी देख-रेख की जिम्मेदारी ली।

जब ऋषि विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा की अच्छाई बताई। वे राजा से मिलने उनके दरबार पहुंचे और उनका धन्यवाद किया। शुक्रिया के रूप में राजा ने ऋषि विश्वामित्र द्वारा उन्हें एक वर देने के लिए निवेदन किया। ऋषि विश्वामित्र ने भी उन्हें आज्ञा दी।

तब राजा बोले की वो स्वर्गलोक जाना चाहते हैं, तो क्या ऋषि विश्वामित्र अपनी शक्तियों का सहारा लेकर उनके लिए स्वर्ग जाने का मार्ग बना सकते हैं? अपने परिवार की सहायता का उपकार मानते हुए ऋषि विश्वामित्र ने जल्द ही एक ऐसा मार्ग तैयार किया जो सीधा स्वर्गलोक को जाता था।

राजा सत्यव्रत खुश हो गए और उस मार्ग पर चलते हुए जैसे ही स्वर्गलोक के पास पहुंचे ही थे, कि स्वर्गलोक के देवता इन्द्र ने उन्हें नीचे की ओर धकेल दिया। धरती पर गिरते ही राजा ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे और रोते हुए सारी घटना का वर्णन करने लगे।

देवताओं के इस प्रकार के व्यवहार से ऋषि विश्वामित्र भी क्रोधित हो गए, परन्तु अंत में स्वर्गलोक के देवताओं से वार्तालाप करके आपसी सहमति से एक हल निकाला गया। इसके मुताबिक राजा सत्यव्रत के लिए अलग से एक स्वर्गलोक का निर्माण करने का आदेश दिया गया

ये नया स्वर्गलोक पृथ्वी  एवं असली स्वर्गलोक के मध्य में स्थित होगा, ताकि ना ही राजा को कोई परेशानी हो और ना ही देवी-देवताओं को किसी कठिनाई का सामना करना पड़े। राजा सत्यव्रत भी इस सुझाव से बेहद प्रसन्न हुए, किन्तु ना जाने ऋषि विश्वामित्र को एक चिंता ने घेरा हुआ था।

उन्हें यह बात सत्ता रही थी  कि धरती और स्वर्गलोक के बीच होने के कारण कहीं हवा के ज़ोर से यह नया स्वर्गलोक डगमगा ना जाए। यदि ऐसा हुआ तो राजा फिर से धरती पर आ गिरेंगे। इसका हल निकालते हुए ऋषि विश्वामित्र ने नए स्वर्गलोक के ठीक नीचे एक खम्बे का निर्माण किया, जिसने उसे सहारा दिया।

माना जाता है की यही खम्बा समय आने पर एक पेड़ के मोटे तने के रूप में बदल गया और राजा सत्यव्रत का सिर एक फल बन गया। इसी पेड़ के तने को नारियल का पेड़ और राजा के सिर को नारियल कहा जाने लगा। इसीलिए आज के समय में भी नारियल का पेड़ काफी ऊंचाई पर लगता है।

Wednesday 21 June 2017

Story Time : เคตिเคถ्เคตाเคธ

Story Time ๐Ÿ˜Š


                               เคตिเคถ्เคตाเคธ    

เคตृंเคฆाเคตเคจ เคถเคนเคฐ เคฎें เคเค• เคตैเค˜  เคฅे, เคœिเคจเค•ा เคฎเค•ाเคจ เคญी เคฌเคนुเคค เคชुเคฐाเคจा เคฅा।

เคตैเค˜ เคธाเคนเคฌ เค…เคชเคจी เคชเคค्เคจी เค•ो เค•เคนเคคे เค•ि เคœो  เคคुเคฎ्เคนें เคšाเคนिเค เคเค• เคšिเค ्เค ी เคฎें เคฒिเค– เคฆो เคฆुเค•ाเคจ เคชเคฐ เค†เค•เคฐ เคชเคนเคฒे เคตเคน เคšिเค ्เค ी เค–ोเคฒเคคे। เคธाเคฎाเคจ เค•े เคญाเคต เคฆेเค–เคคे, เคซिเคฐ เค•ाเคจเคนा เคธे เคฆुเค† เค•เคฐเคคे เค•ि เคธांเคตเคฐे เคฎैं เค•ेเคตเคฒ เคคेเคฐी เค‡เคœाเคœเคค  เคธे เคคुเคे เค›ोเคก़เค•เคฐ เคฏเคนाँ เคฆुเคจिเคฏा เคฎें เค† เคฌैเค ा เคนूँ। 


เคคू เคฎेเคฐी เค†เคœ เค•ी เคต्เคฏเคตเคธ्เคฅा เค•เคฐ เคฆेเค—ा। เค‰เคธी เคธเคฎเคฏ เคฏเคนाँ เคธे เค‰เค  เคœाเคŠँเค—ा เค”เคฐ เคซिเคฐ  เค•เคญी เคธुเคฌเคน เคธाเคข़े เคจौ, เค•เคญी เคฆเคธ เคฌเคœे เคตाเค˜ เคœी เคฐोเค—िเคฏों เค•ी เคฆเคตा เคฆेเค•เคฐ เค•เคฐ เคตाเคชเคธ เค…เคชเคจे เค—ाँเคต เคšเคฒे เคœाเคคे।

เคเค• เคฆिเคจ เคตैเค˜ เคœी เคจे เคฆुเค•ाเคจ เค–ोเคฒी, เคซिเคฐ เคšिเค ्เค ी เค–ोเคฒी เคคो เคฆेเค–เคคे เคนी เคฐเคน เค—เค। 


เคเค• เคฌाเคฐ เคคो เค‰เคจเค•ा เคฎเคจ เคญเคŸเค• เค—เคฏा। เค‰เคจ्เคนें เค…เคชเคจी เค†ंเค–ों เค•े เคธाเคฎเคจे เคคाเคฐे เคšเคฎเค•เคคे เคนुเค เคจเคœเคฐ เค† เค—เค เคฒेเค•िเคจ เคœเคฒ्เคฆ เคนी เค‰เคจ्เคนोंเคจे เค…เคชเคจे เคฎเคจ เคชเคฐ เค•ाเคฌू เคชा เคฒिเคฏा। 


เค†เคŸे เคฆाเคฒ เคšाเคตเคฒ เค†เคฆि เค•े เคฌाเคฆ เคชเคค्เคจि เคจे เคฒिเค–ा เคฅा, เคฌेเคŸी เค•े เคฆเคนेเคœ เค•ा เคธाเคฎाเคจ เคฒाเคจा เคนै เคœी เค•ुเค› เคฆेเคฐ เคธोเคšเคคे เคฐเคนे เคซिเคฐ เคฌाเค•ी เคšीเคœों เค•ी เค•ीเคฎเคค เคฒिเค–เคจे เค•े เคฌाเคฆ เคฆเคนेเคœ เค•े เคธाเคฎเคจे เคฒिเค–ा '' เคฏเคน เค•ाเคฎ เคฎेเคฐे เค•ाเคจเคนा เค•ा เคนै, เค•ाเคจ्เคนा เคนी เคœाเคจे।''
เคเค• เคฆो เคฎเคฐीเคœ เค†เค เคฅे। เค‰เคจ्เคนें เคตैเค˜ เคœी  เคฆเคตाเคˆ เคฆे เคฐเคนे เคฅे।
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เคฆोเคจों เคฎเคฐीเคœ เคฆเคตाเคˆ เคฒेเค•เคฐ เคšเคฒे เค—เค। เคตเคน  เคธाเคนเคฌ เค•ाเคฐ เคธे เคฌाเคนเคฐ เคจिเค•เคฒे เค”เคฐ เคฐाเคงे เคฐाเคงे เค•เคฐเค•े เคฌैंเคš เคชเคฐ เคฌैเค  เค—เค।
เคตैเคง เคœी  เคจे เค•เคนा เค•ि เค…เค—เคฐ เค†เคช เค…เคชเคจे เคฒिเค เคฆเคตा เคฒेเคจी เคนै เคคो, เค†เคชเค•ी เคจाเคก़ी เคฆेเค– เคฒूँ   เค‰เคธ เค†เคฆเคฎी เคจे เค•เคนा เค•ी เคตैเค˜ เคœी เคฎुเคे เคฒเค—เคคा เคนै เค†เคชเคจे เคฎुเคे เคชเคนเคšाเคจा เคจเคนीं ?

เคฎैं 15-16 เคธाเคฒ เคฌाเคฆ เค†เคช เค•ी เคฆुเค•ाเคจ เคชे เค†เคฏा เคนूँ
เค†เคช เค•ो เคชिเค›เคฒी เคฎुเคฒाเค•ाเคค เค•ी เคฌाเคค เคธुเคจाเคคा เคนूँ เคซिเคฐ เคถाเคฏเคฆ เค†เคชเค•ो เคธाเคฐी เคฌाเคค เคฏाเคฆ เค† เคœाเคเค—ी ।

เคตैเค˜ เคœी เคฎैं 5,6 เคธाเคฒ เคธे เค‡ंเค—्เคฒैंเคก เคฎें เคฐเคนเคคा เคนूँ। เค‡ंเค—्เคฒैंเคก เคœाเคจे เคธे เคชเคนเคฒे เคฎेเคฐी เคถाเคฆी เคนो เค—เคˆ เคฅी เคฒेเค•िเคจ เค…เคฌ เคคเค• เคฌเคš्เคšा เคจเคน़ीं เคนुเค†। เคฏเคนां เคญी เค‡เคฒाเคœ เค•िเคฏा เค”เคฐ เค‡ंเค—्เคฒैंเคก เคฎें เคญी เค•เคฐเคตाเคฏा เคฒेเค•िเคจ เคนเคฎाเคฐी เค•िเคธ्เคฎเคค เคฎें  เคถाเคฏเคฆ เคฌเคš्เคšा เคจเคนीं เคฅा เค†เคชเคจे เค•เคนा, เคฎेเคฐे เคญाเคˆ! เค…เคชเคจे เคญเค—เคตाเคจ เคธे เคจिเคฐाเคถ เคจा เคนो
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เค•िเคธी เคตैเค˜ เค•े เคนाเคฅ เคฎें เค•ुเค› เคญी เคจเคนीं เคนै । เค…เค—เคฐ เค”เคฒाเคฆ เคนोเคจी เคนै เคคो เคฎेเคฐे เคธांเคตเคฐे เค•े เค†เคฐ्เคถिเคตाเคฆ เคธे เคนी เคนोเคจी เคนै। เค”เคฒाเคฆ เคฆेเคจी เคนै เคคो เค‰เคธी เคจे เคฆेเคจी เคนै। เคฎुเคे เคฏाเคฆ เคนै เคคुเคฎ เคฌाเคคें เค•เคฐเคคे เคœा เคฐเคนे เคฅे เค”เคฐ เคธाเคฅ เคธाเคฅ, เคชुเฅœिเคฏाँ เคญी เคฌเคจा เคฐเคนे เคฅे। เคซिเคฐ เค†เคชเคจे เคฎुเคเคธे เคชूเค›ा เค•ि เคคुเคฎ्เคนाเคฐा เคจाเคฎ เค•्เคฏा เคนै? เคฎैंเคจे เคฌเคคाเคฏा เค•ि เคฎेเคฐा เคจाเคฎ เคธเคคीเคถ เคนै। เค†เคชเคจे เคเค• เคฒिเคซाเคซे เคชเคฐ เค•ाเคจ्เคนा เค”เคฐ เคฆूเคธเคฐे เคชเคฐ เคฐाเคงे  เคฒिเค–ा। เคซिเคฐ เคฆเคตा เคฒेเคจे เค•ा เคคเคฐीเค•ा เคฌเคคाเคฏा।
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เคญाเคˆ เค†เคœ เค•े เค˜เคฐ เค–เคฐ्เคš เค•े เคฒिเค เคœिเคคเคจी เคฐเค•เคฎ เคตैเคง เคจे เค•ाเคจ्เคนा เคœी เคธे เคฎांเค—ी เคฅी เคตเคน เคธांเคตเคฐे เคจे เค‡เคจเค•ो เคฆे เคฆी เคนै। 

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เคฎैंเคจे เคœเคฌ เค˜เคฐ เคœा เค•เคฐ เคฌीเคตी เค•ो เคฆเคตा เคฆिเค–ाเคˆ เค”เคฐ เคธाเคฐी เคฌाเคค เคฌเคคाเคˆ เคคो เค‰เคธเค•े เคฎुँเคน เคธे เคจिเค•เคฒा เคตो เค‡ंเคธाเคจ เคจเคนीं เค•ोเคˆ เคซเคฐिเคถ्เคคा เคนै เค”เคฐ เค‰เคธเค•ी เคฆी เคนुเคˆ เคฆเคตा เคนเคฎाเคฐे เคฎเคจोเค•ाเคฎเคจा เฅ›เคฐूเคฐ เคชूเคฐी เค•เคฐेเค—ी เคœी।

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เคœเคฌ เคญी เคตृเคฆांเคตเคจ เคฎें เค›ुเคŸ्เคŸी เคฎें เค†เคฏा। เค•ाเคฐ เค‰เคงเคฐ เคฐोเค•ी เคฒेเค•िเคจ เคฆुเค•ाเคจ เค•ो เคฌंเคฆ เคชाเคฏा। เค•เคฒ เคฆोเคชเคนเคฐ เคญी เค†เคฏा เคฅा เคฆुเค•ाเคจ เคฌंเคฆ เคฅी। 

เคเค• เค†เคฆเคฎी เคชाเคธ เคนी เค–เคก़ा เคนुเค† เคฅा। เค‰เคธเคจे เค•เคนा เค•ि เค…เค—เคฐ เค†เคชเค•ो เคตैเค˜ เคœी  เคธे เคฎिเคฒเคจा เคนै เคคो เคธुเคฌเคน 9 เคฌเคœे เค…เคตเคถ्เคฏ เคชเคนुंเคš เคœाเคं เคตเคฐเคจा เค‰เคจเค•े เคฎिเคฒเคจे เค•ी เค•ोเคˆ เค—ाเคฐंเคŸी เคจเคนीं। เค‡เคธเคฒिเค เค†เคœ เคธเคตेเคฐे เคธเคตेเคฐे เค†เคชเค•े เคชाเคธ เค†เคฏा เคนूँ।

เคตैเค˜ เคœी  เคนเคฎाเคฐा เคธाเคฐा เคชเคฐिเคตाเคฐ เค‡ंเค—्เคฒैंเคก เคฎें เคฌเคธ เคšुเค•ा เคนै। เค•ेเคตเคฒ  เคเค• เคตिเคงเคตा เคฌเคนเคจ เค…เคชเคจी เคฌेเคŸी เค•े เคธाเคฅ เคตृंเคฆाเคตเคจ เคฎें เคฐเคนเคคी เคนै। 

เคนเคฎाเคฐी เคญांเคœी เค•ी เคถाเคฆी เค‡เคธ เคฎเคนीเคจे เค•ी 21 เคคाเคฐीเค– เค•ो เคนोเคจी เคฅी। เค‡เคธ เคญांเคœी เค•ी เคถाเคฆी เค•ा เคธाเคฐा เค–เคฐ्เคš เคฎैं เค…เคชเคจे เคœ़िเคฎ्เคฎा เคฒिเคฏा เคฅा। 10 เคฆिเคจ เคชเคนเคฒे เค‡เคธी เค•ाเคฐ เคฎें เค‰เคธे เคฎैं เคชाเคจीเคชเคค  เค…เคชเคจे เคฐिเคถ्เคคेเคฆाเคฐों เค•े เคชाเคธ เคญेเคœा เค•ि เคถाเคฆी เค•े เคฒिเค เคœो เคšीเคœ़ เคšाเคนे เค–เคฐीเคฆ เคฒे। เค‰เคธे เคชाเคจीเคชเคค เคœाเคคे เคนी เคฌुเค–ाเคฐ เคนो เค—เคฏा เคฒेเค•िเคจ เค‰เคธเคจे เค•िเคธी เค•ो เคจเคนीं เคฌเคคाเคฏा। เคฌुเค–ाเคฐ เค•ी เคฆเคตा เค–ाเคคी เคฐเคนी เค”เคฐ เคฌाเคœाเคฐों เคฎें เคซिเคฐเคคी เคฐเคนी। เคฌाเคœाเคฐ เคฎें เคซिเคฐเคคे เคซिเคฐเคคे เค…เคšाเคจเค• เคฌेเคนोเคถ เคนोเค•เคฐ เค—िเคฐी। เค‰เคธे เค…เคธ्เคชเคคाเคฒ เคฒे เค—เค। เคตเคน เคฌेเคšाเคฐी เค‡เคธ เคฆुเคจिเคฏा เคธे เคšเคฒी เค—เคฏी।

เค‡เคธเค•े เคฎเคฐเคคे เคนी เคจ เคœाเคจे เค•्เคฏों เคฎुเคे เค”เคฐ เคฎेเคฐी เคชเคค्เคจी เค•ो เค†เคชเค•ी เคฌेเคŸी เค•ा เค–्เคฏाเคฒ เค†เคฏा। เคนเคฎ เคจे เค”เคฐ เคนเคฎाเคฐे เคธเคญी เคชเคฐिเคตाเคฐ เคจे เคซैเคธเคฒा เค•िเคฏा เคนै เค•ि เคนเคฎ เค…เคชเคจी เคญांเคœी เค•े เคธเคญी เคฆเคนेเคœ เค•ा เคธाเฅ›-เคธाเคฎाเคจ เค†เคชเค•े เคฏเคนां เคชเคนुंเคšा เคฆेंเค—े। เคถाเคฆी เคœเคฒ्เคฆी เคนै เคคो เค‡เคจ्เคคเฅ›ाเคฎ เค–ुเคฆ เค•เคฐेंเค—े เค”เคฐ เค…เค—เคฐ เค…เคญी เค•ुเค› เคฆेเคฐ เคนै เคคो เคธเคญी เค–เคฐ्เคšों เค•े เคฒिเค เคชैเคธा เค†เคช เค•ो เคจเค•เคฆी เคชเคนुँเคšा เคฆेंเค—े। เค†เคช เค•ृเคชा เค•เคฐเค•े เคฎเคจा เคฎเคค เค•เคฐเคจा। 

เค…เคชเคจा เค˜เคฐ เคฆिเค–ा เคฆें เคคाเค•ि เคธाเคฐा เคธाเคฎाเคจ เคตเคนाँ เคชเคนुँเคšाเคฏा เคœा เคธเค•े।

เคตैเค˜ เคœी เคนैเคฐाเคจ-เคชเคฐेเคถाเคจ เคนुเค  เคฌोเคฒे '' เคธเคคीเคถ เคœी เค†เคช เคœो เค•ुเค› เค•เคน เคฐเคนे เคนैं เคฎुเคे เคธเคฎเค เคจเคนीं เค† เคฐเคนा, เคฎेเคฐा เค‡เคคเคจा เคฎเคจ เคจเคนीं เคนै। เคฎैं เคคो เค†เคœ เคธुเคฌเคน เคœเคฌ เคชเคค्เคจी เค•े เคนाเคฅ เค•ी เคฒिเค–ी เคนुเคˆ เคšिเค ्เค ी เคฏเคนाँ เค†เค•เคฐ เค–ोเคฒเค•เคฐ เคฆेเค–ा เคคो เคฎिเคฐ्เคš เคฎเคธाเคฒा เค•े เคฌाเคฆ เคœเคฌ เคฎैंเคจे เคฏे เคถเคฌ्เคฆ เคชเคข़े '' เคฌेเคŸी เค•े เคฆเคนेเคœ เค•ा เคธाเคฎाเคจ '' เคคो เคคुเคฎ्เคนें เคชเคคा เคนै เคฎैं เค•्เคฏा เคฒिเค–ा। เค†เคช เค–ुเคฆ เคฏเคน เคšिเค ्เค ी เคœเคฐा เคฆेเค–ें। เคธเคคीเคถ เคœी เคฏเคน เคฆेเค–เค•เคฐ เคนैเคฐाเคจ เคฐเคน เค—เค เค•ि '' เคฌेเคŸी เค•े เคฆเคนेเคœ '' เค•े เคธाเคฎเคจे เคฒिเค–ा เคนुเค† เคฅा '' เคฏเคน เค•ाเคฎ เค•ाเคจ्เคนा เค•ा เคนे, เค•ाเคจ्เคนा เคนी  เคœाเคจे।''

เคธเคคीเคถ เคœी เคฏเค•ीเคจ เค•เคฐो เค†เคœ เคคเค• เค•เคญी เคเคธा เคจเคนीं เคนुเค† เคฅा เค•ि เคชเคค्เคจी เคจे เคšिเค ्เค ी เคชเคฐ เคฌाเคค เคฒिเค–ी เคนो เค”เคฐ เคฎेเคฐे เคธांเคตเคฐे  เคจे เค‰เคธเค•ा เค‰เคธी เคฆिเคจ เคต्เคฏเคตเคธ्เคฅा เคจ เค•เคฐ เคฆिเคฏा เคนो। 

เคธाเคฐे เคฌोเคฒो เคฐाเคงे เคฐाเคงे.....

เค†เคชเค•ी เคญांเคœी เค•ी เคฎौเคค เค•ा  เคฎुเคे เคธเคฆเคฎा เคนै, เค…เคซเคธोเคธ เคนै เคฒेเค•िเคจ เคฎैं เคธाเคตंเคฐे เค•ी เค•ुเคฆเคฐเคค เคธे เคนैเคฐाเคจ เคนूँ เค•ि เคตे เค•ैเคธे เค…เคชเคจे เค•ाเคฎ เคฆिเค–ाเคคा เคนै। 

เคตैเค˜ เคœी  เคจे เค•เคนा เคœเคฌ เคธे เคนोเคถ เคธंเคญाเคฒा เคนै, เคฎैंเคจे เคฌเคธ เคเค• เคนी เคชाเค  เคชเคข़ा เคนै ''  เคถुเค•्เคฐ เคนै, เคฎेเคฐे เคธाเคตंเคฐे เคคेเคฐा เคถुเค•्เคฐ เคนै।

เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ : เคฎुเคฒ्เคฒा เคšเคฒे เคšाँเคฆ เค•े เคชाเคฐ

     Story Time ๐Ÿ˜Š                

                        เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•े เค•िเคธ्เคธे

                          เคฎुเคฒ्เคฒा เคšเคฒे เคšाँเคฆ เค•े เคชाเคฐ

เคนुเค† เคฏเคน เค•ि เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•ो เค—เคงे เคธे เคšिเฅ เคนो เค—เคˆ। เค•เคฎเคฌเค–्เคค เค•ाเคฎ เค•े เคตเค•्เคค เคœाเคจे เค•เคนाँ เคšเคฒा เคœाเคคा। เคฆूเคธเคฐे เคตเคน เคฆเคธเคตीं-เคฌाเคฐเคนเคตीं เคธเคฆी เค•ा เคตाเคนเคจ। เคฏเคน เค เคนเคฐी เค‡เค•्เค•ीเคธเคตीं เคธเคฆी। เคฒोเค— เคธเฅœเค• เคชเคฐ เค•ाเคฐ เคฆौเฅœाเคคे, เคงूเคฒ เค‰เฅœाเคคे เคซिเคฐเคคे। เคตे เคเค• เค…เคŸाเคฒे เคตाเคฒे เคธे เคธเคธ्เคคी เคธाเค‡เค•เคฒ เคฒे เค†เค। เค‰เคธे เค ोเค•-เคชीเคŸเค•เคฐ เคธเคตाเคฐी เคฒाเคฏเค• เคฌเคจा เคฒिเคฏा। เคฌैเค เค• เคธाเค‡เค•เคฒ เคตाเคฒे เค•े เคฏเคนाँ เคนो เค—เคˆ। เคเค• เคฏुเค•्เคคि เคธे เคšेเคจ เคธे เคŠเคชเคฐी เคชंเค–ा เคœोเฅœ เคนेเคฒीเค•ॉเคช्เคŸเคฐ เค•ा เคธाเค‡เค•เคฒเค•ोเคช्เคŸเคฐ เคฌเคจा เคฒिเคฏा। เคฆिเคจ เคฎें เคšीเคฒ-เค•ौเค เค…เคงिเค• เคฐเคนเคคे เคคो เคฐाเคค เคฎें เค‰เฅœाเคฏा เค”เคฐ เคธเคซเคฒ เคฐเคนे। เคตाเคชเคธ เค‰เคคเคฐ เคธूเค–ा เคญोเคœเคจ เคชाเคจी เคฐเค–ा เค”เคฐ เค‰เฅœाเคจ เคญเคฐी। 

เค…เคญी เคฎीเคฒ เคฆो เคฎीเคฒ เคนी เค‰เฅœे เคฅे เค•ि เคช्เคฏाเคฐे เค—เคงे เค•ा เค–เคฏाเคฒ เค†เคฏा, เคตเคน เค˜เคฐ เคฎें เคฌँเคงा เคฅा। เคšाเคฐा เคญी เคจเคนीं เคกाเคฒा เคฅा เคคो เคซिเคฐ เคฒौเคŸ เค†เค। เค—เคงे เค•ो เค†ँเค—เคจ เคฎें เค›ोเฅœा เค”เคฐ เคธाเคฐा เคšाเคฐा เค˜เคฐ เคฎें เคซैเคฒा เคฆिเคฏा เคคाเค•ि เคœเคฌ เคฒौเคŸे เคคเคฌ เคคเค• เค–ाเคจे เคฒाเคฏเค• เคฐเคนे เค‰เคธเค•े เคฒिเค। เคซिเคฐ เคง्เคฏाเคจ เค†เคฏा เค•ि เคฎोเคฌाเค‡เคฒ เคญी เคธाเคฅ เคฒे เคฒें। เค‡เคธเค•े เคฌाเคฆ เค‰เฅœाเคจ เคญเคฐी। เค‡เคธ เคช्เคฐเค•ाเคฐ เคจเคธीเคฐ เคšเคฒे เคšाँเคฆ เคชเคฐ, เค•ि เคฎเคฒाเคˆ, เคฆूเคง, เคฆเคนी เค•ी เคจเคฆी เคฎिเคฒ เค—เคˆ เคคो เคตเคนीं เคฐเคฎ เคœाเคँเค—े। เค…เคญी เคฌाเคฆเคฒों เคคเค• เค‰เคจเค•ा เคธाเค‡เค•เคฒเค•ॉเคช्เคŸเคฐ เค‰เฅœा เคฅा เค•ि เค˜िเคธी เคนुเคˆ เคšेเคจ เคŸूเคŸ เค—เคˆ। 

เคตे เคคेเคœी เคธे เค—िเคฐเคจे เคฒเค—े। เคคเคฌ เคชเค›เคคाเค-เคจเคธीเคฐ เค•ि เคœเคฎीเคจ เค•्เคฏा เคฌुเคฐी เคฅी เคœो เค–ुเคฆा เค•ी เคคเคฐเคซ เคตเค•्เคค เคธे เคชเคนเคฒे เคšเคฒा। เคฒे-เคฌेเคŸा เคฏเคนाँ เคธे เคจीเคšे เค—िเคฐเค•เคฐ เคฎเคฐेเค—ा เค”เคฐ เคซिเคฐ เคŠเคชเคฐ เค‰เค ाเคฏा เคœाเคเค—ा। เค เค–ुเคฆा เค•्เคฏों เคซเคœीเคคे เค•เคฐเคคा เคนै? เคฌिเคจा เคนाเคฅ-เคชाँเคต เค•े เคซ्เคฐेเค•्เคšเคฐ เค•े เค•्เคฏों เคจเคนीं เค‰เค ा เคฒेเคคा? เคซिเคฐ เคฒเคฌाเคฆेเคจुเคฎा เค•ोเคŸ เค•ो เคซैเคฒा เคฆिเคฏा। เค—िเคฐเคจे เค•ी เคธ्เคชीเคก เค•เคฎ เคนुเคˆ। เคธिเคฐ เค•ी เคชเค—เฅœी เค•ो เคซैเคฒा เคฆिเคฏा। เค…เคฌ เคคो เค›เคคเคฐी เคœैเคธा เค†เคฐाเคฎ เคฅा। เคจเคธीเคฐ เคฌोเคธ เค•ो เคฎเคœा เค†เคจे เคฒเค—ा। 'เคตाเคน เคฐे เค–ुเคฆा, เคฎैं เคฎाเคจ เค—เคฏा, เคคूเคจे เคฎुเคे เค…เคชเคจा เคจेเค• เคฌंเคฆा เคฎाเคจ เคฒिเคฏा เคตเคฐเคจा เคฆुเคจिเคฏा เคคो เคญुเค—เคคเคจे เค•ी เคœเค—เคน เคนै। เคคूเคจे เค‡เคธ เคฌंเคฆे เค•ा เค–ूเคฌ เคฌंเคฆोเคฌเคธ्เคค เค•िเคฏा।'

เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคฎुเคฒ्เคฒा, เค…เคฒ्เคฒा, เค…เคฒ्เคฒा เค•เคฐเค•े เค…เคชเคจे เคฎुเคฒ्เค• เคฎें เคนी เค‰เคคเคฐे। เคฆूเคธเคฐे เคฎुเคฒ्เค• เคฎें เค‰เคคเคฐเค•เคฐ 'เคตीเคธा' เค•े เคฐเค—เฅœे- เคเค—เฅœे เคฎें เคจเคนीं เคชเฅœเคจा เคšाเคนเคคे เคฅे। เคจीเคšे เค—िเคฐे เคญी เคฅे เคคो เคเคธी เคœเค—เคน เคœเคนाँ เคจेเคคाเคœी เคญाเคทเคฃ เค•เคฐ เคฐเคนे เคฅे। เคตเคนाँ เคญเค—เคฆเฅœ เคฎเคš เค—เคˆ। เคจेเคคाเคœी เคฎाเค‡เค• เค›ोเฅœเค•เคฐ เคญाเค—े। เคฎुเคฒ्เคฒा เคจे เคฆौเฅœเค•เคฐ เคฎाเค‡เค• เคธंเคญाเคฒा- 'เค…เคฐे เคญाเค‡เคฏों, เคฎैं เคคुเคฎ्เคนाเคฐा เค…เคชเคจा เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคนूँ। เค•ोเคˆ เคเคฒिเคฏเคจ เคจเคนीं। เคฆेเค–ो เคญाเค‡เคฏों, เคตोเคŸ เค•िเคธเค•ो เคฆेเคจा เคšाเคนो เคฆेเคจा। เคฎैं เคคो เคธिเคฐ्เคซ เค‡เคคเคจा เค•เคนเคจा เคšाเคนเคคा เคนूँ เค•ि เคœ्เคฏाเคฆा เคŠँเคšे เคฎเคค เค‰เฅœो। เคเค• เคฆिเคจ เคคूเคซाเคจ เคฎें เค‰เฅœा เคœเคฐ्เคฐा เคญी เคตाเคชเคธ เคงเคฐเคคी เคชเคฐ เคนी เค†เค•เคฐ เค—िเคฐเคคा เคนै। เค‡ंเคธाเคจ เค—िเคฐเคคा เคนै เคคो เคฎाเคฐा เคœाเคคा เคนै। เคจเคœเคฐों เคธे เค—िเคฐเคจा เค”เคฐ เคญी เคฌुเคฐा เคนै। เค…เคฌ เคฎुเคे เคญूเค– เคฒเค—ी เคนै। เคคुเคฎเคจे เคจाเคถ्เคคे เค•ा เค‡ंเคคเคœाเคฎ เค•िเคฏा เคนो เคคो เค•เคฐा เคฆो เคตเคฐเคจा เคฎेเคฐा เค—เคงा เค†เคธเคชाเคธ เคนो เคคो เคฒा เคฆो। เค…เคŸाเคฒा เคธाเค‡เค•เคฒเค•ॉเคช्เคŸเคฐ เคฒे เคœाเค•เคฐ เค•เคฌाเฅœे เคฎें เคตाเคชเคธ เคฌेเคšเคจा เคšाเคนเคคा เคนूँ। เคšाँเคฆ เคชเคฐ เค‰เฅœเค•เคฐ เคชเคนुँเคšเคจे เคšเคฒा เคฅा।

เค‡เคคเคจा เค•เคนเค•เคฐ เคตाเคชเคธ เคฒोเค—ों เค•े เคฌीเคš เค†เค เคคो เค•เคˆ เคœเคตाเคจों เคจे เค•ंเคงे เคชเคฐ เค‰เค ा เคฒिเคฏा। เคธाเค‡เค•เคฒเค•ॉเคช्เคŸเคฐ เค•ो เคญी เคตे เคนी เค‰เค ा เคฒे เคšเคฒे। เคฒौเคŸเค•เคฐ เค†เค เคจेเคคाเคœी เคฎंเคš เคชเคฐ เค…เค•ेเคฒे เคฐเคน เค—เค เคฅे। เคตे เคตเคนीं เคธे เคšिเคฒ्เคฒा เคฐเคนे เคฅे, 'เค…เคฐे เคตोเคŸเคฐों, เค•เคนाँ เคšเคฒे? เคฎेเคฐा เคญाเคทเคฃ เคคो เคธुเคจ เคœाเค“। เค‡เคธ เคฎुเคฒ्เคฒा เค•ो เคตिเคฐोเคงिเคฏों เคจे เคญेเคœा เคนै, เคฎेเคฐी เคธเคญा เคฌिเค—ाเฅœเคจे เค•े เคฒिเค। เคฎैं เคšुเคจाเคต เค†เคฏोเค— เคฎें เคถिเค•ाเคฏเคค เค•เคฐूँเค—ा। เคฎुเคฒ्เคฒा เคชเคฐ เคซिเคฆा เคจौเคœเคตाँ เค–ुเคฆ-เคฌ-เค–ुเคฆ เคจाเคฐे เคฒเค—ाเคคे เคšเคฒ เคชเฅœे। เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐु-เคนเคฎाเคฐे เคจेเคคा। เคตोเคŸ เคซॉเคฐ เคจเคธเคฐु। เคธ्เคตเคคंเคค्เคฐ เคชाเคฐ्เคŸी-เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•ी । เคธाเค‡เค•เคฒเค•ॉเคช्เคŸเคฐ เค•ा เคชेเคŸेंเคŸ เค•เคฐाเคँเค—े เคฎुเคฒ्เคฒा เคนเคฐेเค• เค•ो, เคšाँเคฆ เคชเคฐ เคฒे เคœाเคँเค—े। เคฎुเคฒ्เคฒा เคซँเคธे เคนुเค เคšूเคนे เค•ी เคคเคฐเคน เคšीเค– เคฐเคนे เคฅे- 'เคฎुเคे เคคो เคšाँเคฆ เคฎें เคญी เคจเคœเคฐ เค†เคคी เคนैं เคฐोเคŸिเคฏाँ।' เคฏुเคตเค• เคซिเคฐ เคšीเค–े, 'เคฎुเคฒ्เคฒा เคฆेंเค—े-เคฐोเคœी-เคฐोเคŸी เคธเคฌเค•ो เคฐोเคœเค—ाเคฐ (เคฎुเคฒ्เคฒा เคฒे เคœाเคँเค—े เคšाँเคฆ เค•े เคชाเคฐ।') เคฎुเคฒ्เคฒा เคจे เคญीเฅœ เคธे เค•ुเค› เค”เคฐ เคจ เค•เคนा। เคตे เคธเคฎเค เค—เค เคฅे เค•ि เคตाเคชเคธ เค†เค•เคฐ เคตे เคเค• เคเคธे เคฆเคฒเคฆเคฒ เคฎें เคœा เคซँเคธे เคนैं เคœिเคธे เค•เคนเคคे เคนैं เคฐाเคœเคจीเคคि। 

เคšुเคจाเคต เคœिเคคाเค“ เค•เคฎेเคŸी เคจे เค‰เคจเค•े เคจाเคฎ เค•ा เคšंเคฆा เคเค•เคค्เคฐ เค•เคฐเคจे, เคซॉเคฐ्เคฎ เคญเคฐเคจे เค”เคฐ เคจेเคคा เคฌเคจाเคจे เค•ी เค ाเคจ เคฒी เคฅी। เคฎुเคฒ्เคฒा เคจे เค…เคชเคจे เค•ो เคฐाเคœเคจीเคคि เค•े เคนเคตाเคฒे เค•เคฐ เคฆिเคฏा। เค‰เคจเค•े เคฎाเค‡ंเคก เคฎें เคšुเคจाเคต เคšिเคน्เคจ เค•ौंเคง เคฐเคนा เคฅा, เค—เคงा। เค—เคงे เค•ो เคขूँเคขเคจे เค•ी เคšिंเคคा เคธเคตाเคฐ เคนो เค—เคˆ। เคฒोเค—ों เคจे เค…เคชเคจे เคชเคฐ เคธเคตाเคฐ เคฎुเคฒ्เคฒा เค•ो เค‰เคคाเคฐ เคคเคฎाเคถा เค–เคค्เคฎ เค•िเคฏा। เคฎुเคฒ्เคฒा เคญूเค–े-เคช्เคฏाเคธे เค…เค•ेเคฒे เค–เฅœे เคšाँเคฆ เค•ो เคฆेเค–เคจे เค•ी เค•ोเคถिเคถ เค•เคฐเคจे เคฒเค—े। เค…เคฎाเคตเคธ เคฅी, เค•्เคฏा เค•เคฐเคคे ।

เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ : เค–เคฐเคชเคคเคตाเคฐ

Story Time ๐Ÿ˜Š                    

                    เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•े เค•िเคธ्เคธे

                              เค–เคฐเคชเคคเคตाเคฐ

เคธเคฐ्เคฆिเคฏों เค•ा เคชूเคฐा เคฎौเคธเคฎ เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคจे เค…เคชเคจे เคฌเค—ीเคšे เค•ी เคฆेเค–เคฐेเค– เคฎें เคฌिเคคाเคฏा। เคตเคธंเคค เค†เคคे เคนी เคนเคฐ เคคเคฐเคซ เคฎเคจเคฎोเคนเค• เคซूเคฒों เคจे เค…เคชเคจी เค›เคŸा เคฌिเค–ेเคฐी। เคฌेเคนเคคเคฐीเคจ เค—ुเคฒाเคฌों เค”เคฐ เคฆूเคธเคฐे เคถाเคจเคฆाเคฐ เคซूเคฒों เค•े เคฌीเคš เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•ो เค•ुเค› เคœंเค—เคฒी เคซूเคฒ เคญी เคांเค•เคคे เคฆिเค– เค—เค।

เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคจे เค‰เคจ เคซूเคฒों เค•ो เค‰เค–ाเคก़เค•เคฐ เคซेंเค• เคฆिเคฏा। เค•ुเค› เคฆिเคจों เค•े เคญीเคคเคฐ เคตे เคœंเค—เคฒी เคซूเคฒ เค”เคฐ เค–เคฐเคชเคคเคตाเคฐ เคซिเคฐ เคธे เค‰เค— เค†เคฏे।

เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคจे เคธोเคšा เค•्เคฏों เคจ เค‰เคจ्เคนें เค–เคฐเคชเคคเคตाเคฐ เคฆूเคฐ เค•เคฐเคจेเคตाเคฒी เคฆเคตा เค•ा เค›िเคกเค•ाเคต เค•เคฐเค•े เคจเคท्เคŸ เค•เคฐ เคฆिเคฏा เคœाเค। เคฒेเค•िเคจ เค•िเคธी เคœाเคจเค•ाเคฐ เคจे เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•ो เคฌเคคाเคฏा เค•ि เคเคธी เคฆเคตाเคँ เค…เคš्เค›े เคซूเคฒों เค•ो เคญी เค•ुเค› เคนเคฆ เคคเค• เคจुเค•เคธाเคจ เคชเคนुँเคšाเคँเค—ी เคจिเคฐाเคถ เคนोเค•เคฐ เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคจे เค•िเคธी เค…เคจुเคญเคตी เคฎाเคฒी เค•ी เคธเคฒाเคน เคฒेเคจे เค•ा เคคเคฏ เค•िเคฏा।  

“เคฏे เคœंเค—เคฒी เคซूเคฒ, เคฏे เค–เคฐเคชเคคเคตाเคฐ…”, เคฎाเคฒी เคจे เค•เคนा, “เคฏเคน เคคो เคถाเคฆीเคถुเคฆा เคนोเคจे เค•ी เคคเคฐเคน เคนै, เคœเคนाँ เคฌเคนुเคค เคธी เคฌाเคคें เค…เคš्เค›ीं เคนोเคคीं เคนैं เคคो เค•ुเค› เค…เคจเคšाเคนी เคฆिเค•्เค•เคคें เค”เคฐ เคคเค•เคฒीเคซें เคญी เคชैเคฆा เคนो เคœाเคคीं เคนैं”।

“เค…เคฌ เคฎैं เค•्เคฏा เค•เคฐूँ?”, เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคจे เคชूเค›ा।

“เคคुเคฎ เค…เค—เคฐ เค‰เคจ्เคนें เคช्เคฏाเคฐ เคจเคนीं เค•เคฐ เคธเค•เคคे เคนो เคคो เคฌเคธ เคจเคœ़เคฐंเคฆाเคœ़ เค•เคฐเคจा เคธीเค–ो। เค‡เคจ เคšीเคœ़ों เค•ी เคคुเคฎเคจे เค•ोเคˆ เค–्เคตाเคนिเคถ เคคो เคจเคนीं เค•ी เคฅी เคฒेเค•िเคจ เค…เคฌ เคตे เคคुเคฎ्เคนाเคฐे เคฌเค—ीเคšे เค•ा เคนिเคธ्เคธा เคฌเคจ เค—เคฏीं เคนैं।”

เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ : เคญूเคฒ เคธुเคงाเคฐ

Story Time ๐Ÿ˜Š


                     เคฎुเคฒ्เคฒा เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เค•े เค•िเคธ्เคธे

                                เคญूเคฒ เคธुเคงाเคฐ

เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคเค• เคถाเคฎ เค…เคชเคจे เค˜เคฐ เคธे เคจिเค•เคฒा. เค‰เคธे เค•िเคจ्เคนीं เคฎिเคค्เคฐों เค•े เค˜เคฐ เค‰เคธे เคฎिเคฒเคจे เคœाเคจा เคฅा. เคตเคน เคšเคฒा เคนी เคฅा เค•ि เคฆूเคฐ เค—ाँเคต เคธे เค‰เคธเค•ा เคเค• เคฆोเคธ्เคค เคœเคฒाเคฒ เค† เค—เคฏा. เคจเคธเคฐुเคฆ्เคฆीเคจ เคจे เค•เคนा, “เคคुเคฎ เค˜เคฐ เคฎें เค เคนเคฐो, เคฎैं เคœเคฐूเคฐी เค•ाเคฎ เคธे เคฆो-เคคीเคจ เคฎिเคค्เคฐों เค•ो เคฎिเคฒเคจे เคœा เคฐเคนा เคนूँ เค”เคฐ เคฒौเคŸเค•เคฐ เคคुเคฎเคธे เคฎिเคฒूंเค—ा. เค…เค—เคฐ เคคुเคฎ เคฅเค•े เคจ เคนो เคคो เคฎेเคฐे เคธाเคฅ เคคुเคฎ เคญी เคšเคฒ เคธเค•เคคे เคนो”.

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Tuesday 20 June 2017

Story Time : เคนीเคฐों เค•ा เคนाเคฐ


                            हीरों का हार

एक बार की बात है एक बहुत ही बड़े साम्राज्य का राजा था। बहुत बड़े प्रदेश का राजा होने राजा के पास अकूत धन-सम्पदा थी. इस कारण उसकी रानी के पास गहनों, हीरे, मोतियों और माणिक्य आदि के अम्बार लगे थे। उन सभी गहनों में से रानी को एक नौलखा हीरों का हार बहुत प्रिय था।

एक बार रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में वही हीरों का हार था, जिसे उतार कर उसने आले पर रख दिया और अपने बाल संवारने लगी। इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की पर खा न सका। कठोर हीरों पर चोंच मारते-मारते उसकी चोंच दुखने लगी किन्तु वह खा न सका। अंतत: थक-हार कर वह हीरे के उस हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर भोजन की तलाश में वह कौवा फिर से उड़ गया।

जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी, नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं।

राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही, प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के लालच में। तो ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर मंत्री कूदा।

तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई। लोग आते रहे और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता, तो वह गायब हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे शरीर पर बदबूदार गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं। दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं जाऊंगा पहले, नहीं मैं जाऊंगा पहले हार लाने के लिए।

इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया। इतने में एक संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसने लगे, यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही -सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे हो इसमें? लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता।

संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है।

इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।

Friday 16 June 2017

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ : เคšूเฅœाเคฎเคฃि, เคจाเคˆ เค”เคฐ เคญिเค–ाเคฐी เค•ी เค•เคนाเคจी

                   पौराणिक कहानियाँ

       चूड़ामणि, नाई और भिखारी की कहानी

अयोध्या में चूड़ामणि नामक एक क्षत्रिय रहता था। उसे धन की बहुत तंगी थी। उसने भगवान महादेवजी की बहुत समय तक आराधना की। फिर जब वह क्षीणपाप हो गया, तब महादेवजी की आज्ञा से कुबेर ने स्वप्न में दर्शन दे कर आज्ञा दी कि जो तुम आज प्रातःकाल और क्षौर कराके लाठी हाथ में लेकर घर में एकांत में छुप कर बैठोगे, तो उसी आँगन में एक भिखारी को आया हुआ देखोगे। जब तुम उसे निर्दय हो कर लाठी की प्रहारों से मारोगे तब वह सुवर्ण का कलश हो जाएगा। उससे तुम जीवनपर्यन्त सुख से रहोगे।

फिर चूड़ामणि ने वैसा ही किया और वही बात हुई उसे सुवर्ण का कलश प्राप्त हो गया। मगर वहाँ से गुजरते हुए नाई ने यह सब देख लिया। नाई सोचने लगा-- अरे, धन पाने का यही उपाय है, मैं भी ऐसा क्यों न करूँ? 
 
फिर उस दिन से नाई वैसे ही लाठी हाथ में लिए हमेशा छिप कर भिखारी के आने की राह देखता रहता था। एक दिन उसने भिखारी को पा लिया और लाठी से मार डाला।

भिखारी मर गया, वह स्वर्ण कलश में परिवर्तित नहीं हुआ । नाई अपराधी करार दिया गया । इस अपराध से उस नाई को भी राजा के पुरुषों ने मार डाला।

Thursday 15 June 2017

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ : เคฏोเค—ी เคฏा เค—ृเคนเคธ्เคฅ

                     पौराणिक कथाएँ

                     "योगी या गृहस्थ"

बहुत समय पहले की बात है, अचलगढ़ के राजा श्यामसिंह ने राज्य में घोषणा करवा दी कि उनके राज्य में वही योगी रह सकता है जो उसके सवालों का सही जवाब दे दे, अन्यथा उसे संन्यास छोड़कर विवाह करना पड़ेगा। राजा श्यामसिंह के सवाल थे, ‘योगी और गृहस्थ को कैसा होना चाहिए? तथा योगी बनना ठीक है या गृहस्थ?’

राज्य में अनेक योगी आए, पर संतोषजनक उत्तर न देने पर उन्हें गृहस्थ बनना पड़ा। एक दिन प्रातः काल ही एक योगी राजमहल के द्वार पर पहुंचा। द्वारपाल उसे राजा के पास ले गया। राजा ने उससे भी अपने सवाल दुहराए। योगी ने कहा, ”हे राजन! इन सवालों का जवाब मैं आपको एक महीने बाद दूंगा।“ राजा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

अवधि पूरी होने पर योगी ने राजा से कहा, ”राजन! आप आपको मेरे साथ चलना होगा।“ राजा और योगी साथ साथ चल दिए। चलते चलते उन्होंने कई दिन बाद राज्य की सीमा पार की। दूसरे राज्य में पहुंचने पर योगी ने कहा, ”राजन! हम लोग जिस राज्य में चल रहे हैं, इस राज्य की राजकुमारी का आज स्वयंबर हो रहा है। चलो, हम उस स्वयंबर को देखकर आगे बढ़ें।“

राजकुमारी मंडप में जयमाला लेकर आई और उसने उसे अकस्मात योगी के गले में डाल दिया। स्वयंबर में उपस्थित अन्य राजकुमारो ने कहा, ”राजकुमारी से गलती हो गई है। वह फिर से जयमाला डालेंगी।“

योगी ने जयमाला निकालकर राजकुमारी को दे दी। चारों तरफ घूमकर राजकुमारी ने जयमाला दूसरी बार भी योगी के गले में डाल दी और ऐसा ही तीसरी बार भी हुआ। आखिर स्वयंबर में उपस्थित राजकुमारों ने कहा कि अब राजकुमारी का विवाह योगी के साथ ही होगा।

स्वयंबर का निर्णय सुनकर योगी वहां से भाग निकला। राजकुमारी ने योगी का पीछा किया। आगे आगे योगी, उसके पीछे राजकुमारी और अंत में राजा श्यामसिंह। भागते भागते योगी और राजा घने जंगल में पहुंचे। कुछ दूर और पीछा करने के बाद राजकुमारी आगे न जा सकी।

शीत ऋतु थी, धीरे धीरे पानी बरस रहा था, रात भी अंधेरी। आगे चलने का उचित समय न रहने के कारण राजा और योगी एक शाल्मली के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस पेड़ पर एक हंस और हंसिनी रहते थे। वे पूर्वजन्म में भी गृहस्थ थे। हंस हंसनिी से बोला, ”द्वार पर दो अतिथि आए हैं। उनका उचित सत्कार होना चाहिए। सबसे पहले इन लोगों को शीत से बचाने का उपक्रम करें क्योंकि आज ठंड बहुत ज्यादा है।“

हंसिनी ने पेड़ से सूखी लकड़ियां गिरानी शुरू कर दीं। हंस किसी प्रकार गांव से आग ले आया। योगी ने आग जला दी। फिर पेड़ से गिराए गए फलों को इकट्ठउ किया।

राजा मांसाहारी था। हंस ने हंसिनी से कहा, ”प्रिये, मेरे न रहने पर तुम बच्चों का पालन पोषण कर लोगी, किंतु मैं तुम्हारे बिना पागल हो जाऊंगा, इसलिए पेड़ के नीचे जलती आग में गिरकर प्राण दे रहा हूं, ताकि राजा की भूख शांत हो सके।“ यह कहकर हंस आग में गिर पड़ा।

योगी फल खाकर कुछ सोचने लगा। दूसरी ओर राजा अब भी भूख से परेशान हो रहा था। तब हंसिनी भी अपने बच्चों के साथ जलती आग में गिरी। सभी को खाकर राजा के पेट की भूख शांत हो गई।

योगी और राजा शाल्मली वृक्ष के नीचे सो गए। प्रातः काल होने पर राजा श्यामसिंह ने कहा, ”अब मेरे सवालों का जवाब मिलना चाहिए।“ तब योगी बोला, ”हे मूर्ख राजा! मेरे बरताव को देख तुम्हें नहीं मालूम हुआ कि योगी कैसा होना चाहिए? गृहस्थ हंस हंसिनी जैसा हो, जो कर्तव्य निर्वहन के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दे।“

”हे राजा, गृहस्थ और योगी को कर्तव्य निष्ठ और दयावान होना चाहिए। रही योगी या गृहस्थ बनने की बात तो यह अपनी अपनी पसंद है, जो जैसा होना चाहे?“