Friday 10 February 2017

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                         पंचतंत्र

                 लोमड़ी और सारस

बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में बहुत सारे पशु पक्षी रहा करते थे| सभी जानवर आपस में मिलजुल कर रहते थे| एक बार एक लोमड़ी जंगल में घूम रही थी| घूमते घूमते उसकी मुलाकात एक सारस से हो गई| धीरे धीरे दोनों की मुलाकात दोस्ती में बदल गई| दोनों पक्के दोस्त बन गए| एक दिन लोमड़ी ने सारस से कहा हमारी दोस्ती काफी दिनों से है पर हमने कभी भी एक दुसरे को दावत नहीं दी| कल को में तुम्हे दावत देना चाहता हूँ,  तुम मेरे घर दावत पर जरुर आना| सारस ने उसकी दावत का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया|

                      अगले दिन सारस सही समय पर लोमड़ी के घर दावत लेने पहुँच गया| लोमड़ी ने भी उसका स्वागत किया| खाने में लोमड़ी ने स्वादिष्ट खीर बनाई थी| जब खाने का समय हुआ तो लोमड़ी एक चौड़े बर्तन में खीर परोस कर ले आई| दोनों खाने लगे| सारस की चोंच इस में डूब नहीं रही थी इस लिए खीर का आनंद नहीं ले सका| लोमड़ी फटाफट सारी खीर चाट गई| सारस बिचारा भूखा ही रह गया| सारस लोमड़ी की चालाकी को समझ गया| सारस ने लोमड़ी को सबक सिखाने की सोची| फिर एक दिन सारस ने भी लोमड़ी को अपने घर दावत देने की सोची| उसने लोमड़ी को दावत का निमंत्रण दे दिया| लोमड़ी ने भी दावत को सहर्ष स्वीकार कर लिया| अगले दिन लोमड़ी बड़े चाव से सारस के घर दावत उड़ाने चली गई| सारस ने भी उसकी मनपसंद खीर बनाई थी| जब खाने का समय आया तो सारस एक पतले मुंह वाले बर्तन में खीर परोस कर ले आया और लोमड़ी को खाने का आग्रह किया| जब लोमड़ी खाने लगी तो उसकी जीभ खीर तक पहुंची ही नहीं| सारस ने अपनी लम्बी चौंच से सारी खीर डकार ली| लोमड़ी बेचारी को भूखे पेट ही रहना पड़ा और अपने किए पर काफी पछतावा भी हुआ|

सीख : - जो जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करता है उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना पड़ता है |

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