मकर संक्रांति की कथाएँ
तिल दान की कथा
(1)
कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। कथा कुछ इस प्रकार है ..
शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इससे नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था. इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया.
पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज ने तपस्या किया और सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवा दिया. लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया. इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ रहा था. यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे. कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था. उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था, इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की.
शनि देव की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि महाराज को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्राति के दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे. इस दिन तिल से सूर्य पूजा करने पर आरोग्य सुख में वृद्धि होती. शनि के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं तथा आर्थिक उन्नति होती है.
खिचड़ी दान की कथा
(2)
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान और खान की परंपरा के पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है. खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे.
इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है. कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है.
खिचड़ी दान और भोजन के पीछे एक कारण यह है कि संक्रांति के समय नया चावल तैयार हो जाता है. माना जाता है कि सूर्य देव ही सभी अन्न को पकाते हैं और उन्हें पोषित करते हैं इसलिए आभार व्यक्त करने के लिए सूर्य देव को गुड़ से बनी खीर या खिचड़ी अर्पित करते हैं. वैसे मकर संक्रांति के दिन बनाई जाने वाली खिचड़ी में उड़द का दाल प्रयोग किया जाता है जो शनि से संबंधित है. कहते हैं इस दिन विशेष खिचड़ी को खाने से शनि का कोप दूर होता है. इसलिए खिचड़ी खाने की परंपरा है.
एक अन्य कथा के अनुसार एक धनिक से अंतिम समय जब यमदूत ने नरकागमन की बात कही तो वह डर गया। उसने धन दे कर स्वर्ग जाने की मांग की । यमदूत यह सुन कर हँसने लगा । यमदूत न कहा तुमने कभी किसी को कोई दान नहीं किया यदी किया होता तो आज तुम्हारे पूण्य तुम्हें स्वर्ग ले जाते । धन से स्वर्ग की प्राप्ती नहीं होती । उसके लिये अच्छे कर्म जरूरी होते हैं। यह सुनकर धनिक ने अंतिम समय दान की इक्छा प्रकट की । यमदूत ने मात्र 2 घड़ी का समय दिया। इतने कम समय में उसे खिचड़ी दिखी उसने वही उठा उठा कर खुले हाथों से दान की एवं सभी से कहा हम कुछ भी लेकर जाने वाले नहीं हैं । सिर्फ पुण्य ही हमारे साथ हमेसा रहेंगे अतः हमेसा दान पुण्य करते रहना ।
उस दिन संक्रांत का दिन था तभी से संक्रांत के दिन दान पुण्य का विशेष महत्त्व है और लोग खिचड़ी का भी दान करते हैं ।
गंगा सागर की कथा
(3)
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
भीष्म पितामह की कथा
(४)
महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।
कुरुक्षेत्र के ब्रह्म सरोवर में स्नान को भी पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। युद्ध समाप्ति के बाद जब भीष्म सर सैय्या पर लेटे हुए थे, तो भगवान श्री कृष्ण सहित सभी पांडव व अनेक ऋषि मुनि उनसे मिलने आए। धर्म-कर्म व भगवान श्री कृष्ण के बारे में भीष्म ने विस्तार से पांडवों को बताया। तभी सूर्य दक्षिणायन से उतरायण में प्रवेश कर रहे थे। भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करते हुए मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे। हरियाणा में तो इस दिन को तभी से रूठों व बड़े-बुजूर्गों को मनाने व उनका आशीर्वाद पाने के दिन के रुप में मनाया जाता है व कुरुक्षेत्र के सरोवरों में पवित्र स्नान कर पिंडदान भी किया जाता है।
मकर संक्रांति खरमास की समाप्ति
मकर संक्रांति खरमास की समाप्ति पर मनाया जाने वाला त्योहार है. इस दिन स्नान दान का विशेष महत्व । नदियों,सरोवरो और पुण्य क्षेत्रों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लग जाति है ।
खरमास की कथा
(5)
सूर्य एक राशि में एक महीने रहता है । सूर्य जब धनु राशि में होता है तो वह महीना खरमास का महीना होता है । 14 दिसम्बर से लेकर 14 जनवरी तक होता है । इस एक महीने में कोई भी शुभ कार्य नही होता । इस महीने को खरमास कहा कहे जाने के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
प्रकृति के नियम के अनुसार सूर्य को निरंतर चलते रहना है। निरंतर चलते चलते एक दिन सूर्य के घोड़ों को प्यास लग गयी प्यास से ब्याकुल घोड़े पानी के लिए तड़प रहे थे। सूर्य मार्ग में एक तालाब देख अपने घोड़ों को पानी पिलाने लगे। एक एक कर सभी घोडों को रथ से खोल कर पानी पिलाने लगे। तभी सूर्य को इस बात का स्मरण हुआ की ईश्वर के विधान के अनुसार सृष्टि को सुचारू रूप से चलने के लिए सूर्य का निरंतर चलते रहना जरुरी है। सूर्य ने तुरंत तालाब के किनारे चर रहे गधों को रथ में जोड़कर रथ को हांक देने का आदेश दिया। इस तरह खर मतलब गधे की सवारी कर सूर्य एक माह चलते रहे। खर से जुड़े रथ से चलने के कारण यह महीना खर मास के नाम से जाना जाता है।
कुछ अन्य तथ्य एवं मान्यताएँ
इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।
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