Monday 30 January 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เค–ाเคจे เคชीเคจे เค•ो เคฌंเคฆเคฐी เคกंเคกे เค–ाเคจे เค•ो เคฐीเค›

                            पंचतंत्र

       खाने पीने को बंदरी डंडे खाने को रीछ

किसी शहर में एक मदारी रहता था| मदारी के पास एक बंदरी और एक रीछ थे| मदारी सारा दिन बंदरी और रीछ को नचाकर लोगों का मनोरंजन करता था, उस से जो कुछ भी मिलता उस से अपना और बंदरी और रीछ का पेट पलता था| एकबार मदारी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा| मदारी बंदरी और रीछ को घर में छोड़ गया|

बाहर जाते समय मदारी अपने लिए एक बर्तन में दही ज़माने को रख गया| मदारी के जाने के बाद कुछ देर में बंदरी को भूख लग गई| रीछ तो बेचारा चुपचाप सो गया| बंदरी ने चुपचाप मदारी का जमाया हुआ दही खालिया और थोडा सा दही सोए पड़े रीछ के मुंह पर लगा दिया|

जब मदारी वापस आया तो उसने रोटी खाने के लिए दही देखा तो दही वाला बर्तन खाली था|

उसने देखा कि रीछ के मुंह पर दही लगा हुआ था|

मदारी ने आव देखा ना ताव देखा डंडा लेकर रीछ को पीटडाला | बंदरी चुपचाप बैठ कर तमासा देख रही थी| रीछ बेचारे को मुफ्त में मार पड़ गई| खा पी बंदरी गयी|

तभी से यह कहावत बनी है कि खाने पीने को बंदरी डंडे खाने को रीछ।

No comments: