बुल्गारिया की लोककथा
एक तरकीब
सर्दियों के दिन थे. कडाके की सर्दी पड़ रही थी. एक दिन एक व्यापारी को किसी काम से अचानक शहर जाना पड़ा. वह अपने घोड़े पर सवार होकर चल दिया. सर्दी के मारे घोड़ा भी बहुत धीमी चाल से आगे बढ़ रहा था. इस तरह व्यापारी को शहर पहुँचते- पहुँचते शाम हो गई. सर्दी से उसका और घोड़ें का बुरा हाल था. व्यापारी ने सोचा. पहले कही आग से तापकर सर्दी दूर की जाए. तभी उसने देखा कि पास में ही एक ढाबे में आग जल रही है और कुछ लोग उसके चारो और बैठे ताप रहे है. व्यापारी भी उसी ढाबे में चला गया. वहाँ अलाव के कारण काफी गरमाहट थी. उसे बहुत राहत महसूस हुई. उसने सोचा कि वह भी आग के पास बैठ जाए. परन्तु वहाँ कही जगह नहीं थी. उसने सभी लोगो से हाथ मिलाया. सभी ने उससे हाथ मिलाया परन्तु वे उसी जगह जमे रहे और अपनी बातों में व्यस्त रहे. कोई भी अपनी जगह छोड़ना नहीं चाहता था ।
व्यापारी को मन ही मन क्रोध आया, परन्तु वह कर ही क्या सकता था. उसने एक तरकीब सोची और होटल के मेनेजर को बुलाकर पूछा खाने के लिए गर्म क्या – क्या मिलेगा? मेनेजर ने कहा सूप है, राजमा है, ब्रैंड है आलू है, आप क्या खाना पसंद करेंगे? इस पर व्यापारी ने कहा कि पहले मेरे घोड़े को खिलाओ, उसे जोर की भूख लगी है. उसके लिए एक सूप भेज दो. सभी लोग हैरत से व्यापारी की और देखने लगे. एक व्यक्ति बोला श्रीमान क्या आपका घोड़ा सूप पी लेता है? हाँ, क्यों नहीं. बस सूप खूब गर्म होना चाहिए. मेनेजर ने वेटर को बुलाया और कहा यह सूप साहब के घोड़े को पिला दो. ज्यों ही वेटर आग के पास से उठ कर गया, बाकी सारे लोग भी उठ कर यह देखने चले गए कि देखे, घोड़ा सूप कैसे पीता है? व्यापारी जल्दी से अलाव के पास बैठ गया. कुछ ही देर में वेटर ने आकर कहा, साहब आपने घोड़े को सूप देने को कहा था, परन्तु आपका घोड़ा सूप नहीं पी रहा है. क्या आप बता सकते है कि वह सूप क्यों नहीं पी रहा है? व्यापारी ने कहा लगता है उसका सूप पीने का मन नहीं है, आप उसके लिए सूखे चने और ब्रेड भेज दीजिये और यह सूप मुझे दे दीजिये. सारे लोग बापस आ गए और व्यापारी बड़े मजे से अलाव के पास बैठकर गर्म सूप का आनंद लेने लगा ।
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