Monday 6 March 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เคคाเคฒाเคฌ เค•े เคนंเคธ

                      पंचतंत्र

                 तालाब के हंस

राजा चिंतामणी के महल के पीछे एक बहुत बड़ा तालाब था, जो सैनिकों के लिए  सुरक्षित था । उस तालाब में बहुत से सुनहरी किस्म के हंस रहते थे । इनमें से हर एक हंस छ: मास के पश्चात् सोने का एक पंख छोड़ता था ।

एक बार वहां पर अतिसुन्दर बहुत बड़ा पक्षी आया । उसे देखते ही सारे हंस एकदम से बोल उठे : ”अरे भाई ! तुम हमारे बीच में नहीं रह सकते, क्योंकि हम हर छ: मास के पश्चात् एक-एक सोने का पंख राजा को देते हैं, इस तरह से हमने यह तालाब खरीद लिया है ।”

उन हंसों की बात सुन, उस अतिसुन्दर पक्षी को बहुत दुःख हुआ । वह पक्षी कुछ दिनों तक बहुत परेशान रहा । वह तालाब के किनारे रहने वाला पक्षी था आस पास में कोई और तालाब भी नहीं था इससे उसका जीवन दूभर हो गया था । 

अंत में वह सुन्दर पक्षी  राजा के पास गया और जाकर बोला, ”महाराज वे हंस कहते हैं कि राजा हमारा क्या बिगाड़ लेगा, यह तालाब हमारा खरीदा हुआ है । हम किसी और को इस तालाब में नहीं रहने देंगे वह घमंडी हंस सोचते हैं कि राजा को एक सोने का पंख देकर उन्होंने पूरे राज्य को ही खरीद लिया है ।

यह तो सभी पक्षियों के अधिकार का हनन है महाराज । आपके राज्य में यह अन्याय हो रहा है महाराज, इसलिए आप ही मेरा न्याय करें ।” राजा ने बड़े धैर्य से सुन्दर पक्षी से कहा, ”तुम चिंता मत करो, हम पूरा-पूरा न्याय करेंगे ।” उसी समय राजा ने अपने सैनिकों से कहा : “तुम लोग इसी समय जाकर उन हंसों को पकड़कर ले आओ । वे इतने घमंडी हो गए हैं । उन्हें इसका दण्ड दिया जाएगा । राजा का हुक्म सुनते ही सैनिक उसी समय तालाब की और चल पड़े ।”

हंसों ने जैसे ही सैनिकों को अपनी ओर आते देखा तो उनमें से एक बूढ़ा हंस समझ गया उनसे कहा, ”दोस्तों, इस स्थान से अब भाग जाना ही उचित है उस पक्षी ने अवश्य ही हमारे खिलाफ राजा के कान भरे होंगे और अब हमें दण्डित किया जाएगा ।” बूढ़े हंस की बात मान कर सारे हँस वहां से उड़ गए । एक बुद्धिमान हंस ने सब की जान तो बचा दी किन्तु सामन्जस्य के साथ ना रहने के कारण उन्हें तालाब छोड़ना पड़ा उनका झूठ ज्यादा दिन ना टिक सका ।

सीख :- झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती ।

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