Tuesday 7 March 2017

เคชंเคšเคคंเคค्เคฐ : เค•िเคธाเคจ เค•ी เคชเคค्เคจी เค”เคฐ เค—ीเคฆเฅœी

                        पंचतंत्र

            किसान की पत्नी और गीदड़ी

बीजापुर एक ऐसा नगर था जहां की जमीन काफी उपजाऊ थी, इसलिए वहां के लोगों का जीवन भी काफी सुखी था । घनाभाई किसान की पहली पत्नी की मृत्यु हो गई, तो उसने अपना घर बसाने के लिए पास ही के गांव की एक लड़की से शादी कर ली ।

घनाभाई की नई पत्नी बहुत सुन्दर और जवान थी, जबकि घनाभाई की जवानी ढल रही थी, फिर उसे अपने खेतों में काम करने से फुरसत भी नहीं मिलती थी । उसकी पत्नी राधा अकेली बैठी भी क्या करती, परेशान होती थी ।

एक दिन एक चोर उनके घर में चोरी करने आया, मगर राधा को देखकर वह चोरी करना भूल गया, उसे यदि कुछ याद रहा तो राधा का चांद सा मुखड़ा, जिसे देखते ही वह अपनी सुध-बुध खो बैठा । राधा ने देखा, वह चोर सुन्दर और जवान था, उस युवक को देखते ही राधा भी उसकी तरफ आकर्षित हो गई ।

चोर का नाम मोती था । उसने राधा को फांस कर उसका धन साफ करने की योजना बनाई । इस प्रकार एक तीर से दो शिकार करने वाली बात उस चोर के मन में आई तो उसने राधा से प्रेम का नाटक शुरू कर दिया ।

गांव की वह नादान औरत उस चालबाज बदमाश की बातों में आकर अपना सारा धन इकट्ठा करके उसके साथ भागने के लिए तैयार हो गई । दो दिन के पश्चात् ही वे दोनों उस गांव से भाग खड़े हुए । चलते-चलते उनके रास्ते में एक नदी आई, उस नदी को पार करना सरल नहीं था, वह अकेला होता तो कब का नदी पार कर जाता ।

उसे यह भी डर था कि यदि उन्होंने नदी पार करने में देर कर दी तो हो सकता है कि गांव वाले भागकर उनके पीछे आ जाएं और उन्हें पकड़ लें । चोर की नजर बार-बार राधा के जेवरों पर जा रही थी, इतने सारे जेवर और चांदी के सिक्के…वाह इतना सारा धन तो उसे आज तक कहीं से नहीं मिला था ।

दूसरे ही क्षण उसे ख्याल आया कि यदि उसने इस नारी के कारण देर कर दी तो धन भी जाएगा, नारी भी जाएगी और मिलेगी जेल या फांसी । चोर ने सोचा कि इस विवाहित नारी का उसने क्या करना है, यदि वह सारा धन लेकर दूसरे देश चला जाए तो एक नहीं अनेक सुन्दर लड्‌कियां उसके आगे-पीछे घूमने लगेंगी, फिर क्यों न इस मुसीबत को छोड्‌कर वह धन लेकर भाग जाए ।

फिर ऐसी नारी का क्या भरोसा जो अपने पति को छोड़ सकती है, वह कल को उसे भी छोड़ सकती है । यही सोचकर उसने राधा से कहा, ”देखो प्रिये ! इस नदी को पार करना इतना सरल नहीं है, तुम यही पर बैठो, मैं किसी नाव का प्रबंध करके आता हूं ।

हां, इस सारे धन और अपने जेवरों को तुम मुझे दे दो, नदी के किनारे अकसर चोर-डाकू आते रहते हैं, तुम्हें अकेली बैठी देखकर कोई भी हाथ साफ कर सकता है ।”  राधा बेचारी सीधी औरत थी, उस बेचारी ने अपने सारे जेवर तथा सारा धन उस चोर को दे दिया ।

मोतीलाल को तो जैसे खजाना मिल गया हो । वह तो खजाना लेकर वहां से भागा और कुछ दूर जाकर तुरन्त एक नाव को किराये पर ले लिया और इस प्रकार नदिया पार करके दूसरे देश चला गया । राधा बेचारी दुख की मारी अकेली बैठी उसका इन्तजार ही करती रही ।

उसी बीच एक गीदड़ी मुंह में मांस का टुकड़ा लेकर वहां आ पहुंची और नदिया किनारे बैठ गई । उसके मुंह में मांस का टुकड़ा देखकर एक मछली पानी से निकलकर किनारे पर बैठ गई, गीदड़ी मांस का टुकड़ा घास पर रखकर उस मछली की ओर दौड़ी-उसी बीच एक गिद्ध उड़ता हुआ आया और मांस के टुकड़े को लेकर चलता बना ।

मछली छलांग लगाकर पानी में दौड़ गई, गीदड़ी जो मछली खाने चली थी, अपने मुंह का मांस भी गंवा बैठी, वाह रे नसीब, पल भर में ही सब कुछ खो गया ।

यह देख राधा को अपने गलती का अहसास हो आया जिस तरह गीदड़ी खाली हाथ दुःखी थी राधा भी अकेली बैठी किस्मत पर रो रही थी ।

सीख : - आधी छोड़ पूरी को भागे , आधी मिले ना पूरी पावे ।

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