Tuesday 5 September 2017

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                  पौराणिक कथाएँ

          गुरु द्रोणाचार्य एवं अर्जुन की कथा

अर्जुन पर गुरुदेवजीकी विशेष कृपा है, यह बात द्रोणाचार्यजी के अन्य शिष्योंको सहन नहीं होती थी । इसलिए, वे सब अर्जुनकी उपेक्षा करते थे । एक समय, द्रोणाचार्यजी अर्जुनसहित अपने शिष्योंको लेकर स्नान करनेके लिए नदीपर गए और वटवृक्षके नीचे खडे होकर बोले, ‘अर्जुन, मै आश्रममें अपनी धोती भूलकर आया हूं । जाओ, तुम उसे लेकर आओ ।

गुर्वाज्ञाके कारण अर्जुन धोती लानेके लिए आश्रम गया, उस समय गुरु द्रोणाचार्यजीने कुछ शिष्योंसे कहा, ‘गदा एवं धनुष्यमें शक्ति होती है; परंतु मंत्रमें उससे अधिक शक्ति होती है । मंत्रजाप करनेवाले इसका महत्त्व एवं पद्धति समझ लें, तो मंत्रमें अधिक सामर्थ्य होता है, यह बात वे समझ जाएंगे । मैं अभिमंत्रित एक ही बाणसे इस वटवृक्षके सब पत्तियोंको छेद सकता हूं । यह कहकर, द्रोणाचार्यजीने भूमिपर एक मंत्र लिखा एवं उसी मंत्रसे अभिमंत्रित एक बाण छोडा । बाणने वृक्षके सभी पत्तोंको छेद दिया । यह देखकर, सब शिष्य आश्चर्यमें पड गए ।

पश्चात गुरु द्रोणाचार्यजी सब शिष्योंके साथ स्नान करने गए । उसी समय अर्जुन धोती लेकर आया । उसकी दृष्टि वृक्षकी पत्तियोंपर पडी । वह सोचने लगा । इस वटवृक्षकी पत्तियोंपर पहले तो छेद नहींr थे । मैं जब सेवा करने गया था, उस समय गुरुदेवजीने शिष्योंको एक रहस्य बताया था । रहस्य बताया था, तो उसके कुछ सूत्र होंगे, प्रारंभ होगा, इसके चिह्न भी होंगे । अर्जुनने इधर-उधर देखा, तो उसे भूमिपर लिखा हुआ मंत्र दिखाई दिए । वृक्षच्छेदनके सामर्थ्यसेयुक्त यह मंत्र अद्भुत है, यह बात उसके मनमें समा गई । उसने यह मंत्र पढना आरंभ किया । जब उसके मनमें दृढ विश्वास उत्पन्न हो गया कि यह मंत्र निश्चित सफल होगा, तब उसने धनुष्यपर बाण चढाया और मंत्रका उच्चारण कर छोड दिया । इससे वटवृक्षकी पत्तियोंपर, पहले बने छेदके समीप दूसरा छेद बन गया । यह देखकर अर्जुनको अत्यंत आनंद हुआ । गुरुदेवजीने अन्य शिष्योंको जो विद्या सिखाई, वह मैंने भी सीख ली, ऐसा विचार कर, वह गुरुदेवजीको धोतीदेनेके लिए नदीकी ओर चल पडा ।

स्नानसे लौटनेके पश्चात जब द्रोणाचार्यजीने वटवृक्षकी पत्तियोंपर दूसरा छेद देखा, तो उन्होंने अपने साथके सभी शिष्योंसे प्रश्न किया –

द्रोणाचार्य : स्नानसे पहले वटवृक्षकी सभी पत्तियोंपर एक छेद था । अब दूसरा छेद आपमेंसे किसने किया ?

सब शिष्य : हमने नहीं किया ।

द्रोणाचार्य (अर्जुनकी ओर देखकर) : यह कार्य तुमने किया है क्या ?

(अर्जुन कुछ डरा; परंतु झूठ कैसेकहूं; इसलिए बोला)

अर्जुन : मैंने आपकी आज्ञाके बिना आपके मंत्रका प्रयोग किया । क्योंकि, मुझे लगा कि आपने इन सबको यह विद्या सिखा दी है, तो आपसे इस विषयमें पूछकर आपका समय न गंवाकर अपनेआप सीख लूं । गुरुदेवजी, मुझसे चूक हुई हो, तो क्षमा कीजिएगा ।

द्रोणाचार्य : नहीं अर्जुन, तुममें जिज्ञासा, संयम एवं सीखनेकी लगन है । उसी प्रकार, मंत्रपर तुम्हारा विश्वास है। मंत्रशक्तिका प्रभाव देखकर सब केवल चकित होकरस्नान करने चले गए । उनमेंसे एकने भी दूसरा छेद करनेका विचार भी नहीं किया । तुम धैर्य दिखाकर एवं प्रयत्न कर उत्तीर्ण हो गए । तू मेरा सर्वोत्तम शिष्य है। अर्जुन, तुमसे श्रेष्ठ धनुर्धर होना असंभव है ।

शिष्य इतना जिज्ञासू हो कि गुरुका अंतःकरण अभिमानसे भर जाए !

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