Sunday 30 April 2017

เคตिเคฆेเคถी เคฒोเค•เค•เคฅा : เคंเคก्เคฐोเค•्เคฒीเคœ เค”เคฐ เคถेเคฐ

                      रोम की कहानी

                    एंड्रोक्लीज और शेर

पुराने समय में यूरोप में धनी लोग अपने यहाँ दास रखा करते थे । उन दासों को अपने स्वामी की हर आज्ञा का पालन करना पड़ता था । ऐसे ही एक दास का नाम एन्ड्रोक्लीज़ था । एन्ड्रोक्लीज़ का स्वामी अपने दासों के साथ पशुवत् व्यवहार करता था । उनसे बहुत काम लिया जाता था फिर भी उन्हें भूखा रहना पड़ता था । एन्ड्रोक्लीज़ को भी दिन-रात यातना सहनी पड़ती । एक दिन वह यातनाओं से तंग आकर चुपके से भाग गया । वह जंगल की पहाड़ियों के बीच एक गुफा में रहने लगा ।

एक दिन वह जंगल में घूम रहा था कि उसने सामने से आते हुए एक शेर को देखा । एन्ड्रोक्लीज़ डर गया । वह शेर से दूर भागना चाहता था परंतु उसे उपयुक्त अवसर नहीं मिला । शेर धीरे- धीरे उसके पास आया और बैठ गया । वह अपना अगला पैर बार – बार उठाकर एन्ड्रोक्लीज़ को कुछ इशारा कर रहा था । उसका भय दूर हो गया । उसने ध्यान से देखा तो पाया कि शेर के पंजे में एक बड़ा-सा काँटा गड़ा हुआ था । उसने तुरन्त काँटा खींचकर निकाल दिया और घाव पर जड़ी-बूटियों का रस डाल दिया । शेर को आराम मिला । उसने एन्ड्रोक्लीज़ को कोई हानि नहीं पहुँचाई ।

शेर और एन्ड्रोक्लीज़ गुफा में एक साथ रहने लगे । इधर एन्ड्रोक्लीज़ को ढूँढने के लिए स्वामी के सिपाही जंगल में घूम रहे थे । उन्होंने एन्ड्रोक्लीज़ को गिरफ्तार कर लिया और अपने स्वामी के पास ले आए । स्वामी ने उसे कारावास में डालने तथा एक मास बाद भूखे शेर के पिंजरे में डाल देने का हुक्म दिया ।

नियत तिथि को स्वामी ने दरबार लगाया । एन्ड्रोक्लीज़ को कारावास से निकालकर भूखे शेर के बड़े से पिंजरे में डाल दिया गया । भूखा शेर लपका परंतु एस्ट्रोक्लीज को देखते ही वह शांत पड़ गया । एन्होक्लीज के पास आकर वह उसके सामने बैठ गया ।

उपस्थित जन-समूह यह दृश्य देखकर चकित रह गया । वास्तविकता यह थी कि यह वही शेर था , जिसके पंजे से एन्ड्रोक्लीज़ ने काँटा निकाला था । शेर एन्ड्रोक्लीज़ को पहचान गया था । एन्ड्रोक्लीज़ ने तब स्वामी को पूरी घटना बतलाई । यह सुनकर सभी लोग चकित रह गए । उन्होंने स्वामी से प्रार्थना की कि एन्ड्रोक्लीज़ को दासता के बंधन से मुक्त कर दे । स्वामी ने लोगों की बात मान ली । उसने एन्ड्रोक्लीज़ को ढेर सारा धन देते हुए कहा ” एन्ड्रोक्लीज़, आज से तुम स्वतंत्र हो । ”

No comments: