Thursday 13 April 2017

เคตिเคฆेเคถी เคฒोเค•เค•เคฅा : เคฆेเคถ เคช्เคฐेเคฎ

                  इथोपिया की लोककथा

                          देश प्रेम

अफ्रीका में एक छोटे से देश का नाम इथियोपिया है | वहां के लोग अपने देश से बहुत प्रेम करते हैं | ऐसा कहा जाता है कि यह कहानी उस देश में बहुत लोकप्रिय है |

बहुत पहले की बात है | एक बार कुछ विदेशी घुमक्कड़ इथियोपिया घूमने आए | वे वहां की प्राकृतिक सुंदरता व लोगों के रहन-सहन से बहुत प्रभावित हुए | घुमक्कड़ एक छोटी-सी सराय में ठहरे थे | वे सुबह ही तैयार होकर निकल जाते, फिर वहां की नदियां, पहाड़, जंगल की सैर किया करते थे | वहां लोग इन घुमक्कड़ों को अजीब-सी नजरों से देखा करते थे, परंतु उनमें इन गोरे घुमक्कड़ों से बात करने का साहस नहीं होता था | 

एक दिन एक व्यक्ति घुमक्कड़ों के पास आया और बोला - "आप लोग कहां से आए हैं ? यहां हमारे शहर में क्या कर हैं ?"

"हम यूरोप के देशों से आपके देश की यात्रा करने आए हैं | हम सभी मित्र हैं और अलग-अलग देश में रहते हैं | हमें आपका देश बहुत सुंदर लगा है |"

तभी दूसरा घुमक्कड़ बोला - "यूं तो हम स्वयं ही आपका देश घूम रहे हैं, परंतु यदि आप लोगों की कुछ सहायता मिल जाती तो हम आसानी से सारी चीजें ठीक प्रकार देख पाते |"

यह सुनकर वह व्यक्ति बोला - "हम तो आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते लेकिन यदि आप चाहें तो हमारे राजा की मदद ले सकते हैं |"

अगले दिन सारे घुमक्कड़ राजा के यहां गए और राजा से प्रार्थना की कि उन्हें पूरा देश घूमने में उनकी सहायता व मार्गदर्शन किया जाए | घुमक्कड़ों की बात सुनकर राजा ने पूछा - "पहले आप यह बताइए कि आपने अब तक जो कुछ देखा है, वह सब आपको कैसा लगा ? यहां आपको कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?"

एक घुमक्कड़ ने जवाब दिया - "आपके देश की नदियां और प्राकृतिक वातावरण बहुत ही मनमोहक है | यदि आप हमारे लिए एक गाइड का प्रबन्ध कर दें तो हम सब प्रमुख जगहें ज्यादा भली प्रकार देख सकेंगे |"

राजा ने उनका खूब स्वागत किया और उनके ठहरने का इंतजाम अपने राजमहल में करवाया | उनके भोजन की उत्तम व्यवस्था करके एक गाइड को उन्हें देश भर में घुमाने की जिम्मेदारी सौंप दी |

घुमक्कड़ बहुत खुश हो गए और वहां के लोगों व राजा के व्यवहार की खूब प्रशंसा करने लगे | उन घुमक्कड़ों को जो कुछ अच्छा लगता, उसका नक्शा व पूरा विवरण अपने कागजों पर लिखते जाते थे | जब वे पूरा देश घूम चुके, तो उन्होंने राजा से अपने देश जाने की अनुमति मांगी | राजा ने उन सभी घुमक्कड़ों को बड़े कीमती उपहार भेंट किए, फिर अपने दरबार के कुछ खास लोगों को जहाज तक विदा करने भेजा | घुमक्कड़ों के मुंह से उस देश के लिए खूब प्रशंसा के शब्द निकल रहे थे | परंतु ज्यों ही वे सब घुमक्कड़ जहाज में सवार हुए, राजा के एक मंत्री ने अपने सैनिकों को धीरे से फुसफुसाकर कुछ आदेश दिया और सैनिकों ने घुमक्कड़ों के जूते उतरवा लिए | सारे घुमक्कड़ों ने अपने जूते चुपचाप उतार दिए | और एक दूसरे का मुंह देखने लगे |

घुमक्कड़ों को देखकर प्रतीत होता था कि वे ऊपर से तो हंस रहे हैं परंतु भीतर ही भीतर उन्हें क्रोध आ रहा है | उन सभी के चेहरे उतर गए | उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि मंत्री या सैनिकों से किस प्रकार पूछें कि उनके जूते क्यों उतारे गए हैं | तभी एक घुमक्कड़ ने साहस बटोरते हुए धीरे से पूछा - "क्या आपके यहां कोई ऐसा रिवाज है जिसमें लोगों को अपने जूते आपके यहां छोड़कर जाने पड़ते हैं ?"

उस घुमक्कड़ की बात आगे बढ़ाते हुए दूसरा घुमक्कड़ बोला - "यदि आपके यहां ऐसी ही प्रथा है तो कृपया हमें दूसरे जूते दे दीजिए ताकि हम अपने देश नंगे पैर न पहुंचे | असल में हमें नंगे पैर रहने की आदत नहीं है |"

सैनिक व मंत्री चुपचाप खड़े रहे, परंतु कोई जवाब नहीं दिया | घुमक्कड़ों को मन ही मन क्रोध आने लगा और वे सोचने लगे कि वे देश में थे तो उनका सत्कार किया जा रहा था और अब वे जाने वाले हैं तो उनके जूते उतार कर उनका अपमान किया जा रहा है | तभी उन्होंने देखा कि एक सैनिक कुछ जूते लेकर आ रहा है | उन्हें महसूस हुआ कि शायद उनके जूते लेकर उसके बदले में कोई दूसरे जूते दिए जा रहे हैं | वे सोचने लगे कि शायद इनके यहां ऐसा ही रिवाज होगा | परंतु सभी घुमक्कड़ शिष्टतावश कुछ न बोले और चुपचाप खड़े रहे |

तब तक वह सैनिक उनके पास आ गया | घुमक्कड़ यह देखकर हैरान रह गए कि सैनिक उन्हीं के जूते वापस लेकर आया था | एक घुमक्कड़ से चुप नहीं रहा गया, वह विनम्रतापूर्वक मंत्री से बोला - "मंत्री जी, हम कुछ समझें नहीं कि आपने हमारे जूते उतरवाएं और फिर वापस दे दिए |"

मंत्र मुस्कराया, फिर धीरे से बोला - "बंधु आप हमारे देश में आए, यहां की सैर की, इस बात से हमें बेहद खुशी हुई | अब आप लोग यहां से जा रहे हैं तो यहां की अनेक यादें अपने साथ ले जा रहे होंगे | हमारे लिए यह खुशी की बात है कि आप हमारी मीठी यादें अपने साथ ले जाएं, परंतु हमें यह कतई पसंद नहीं कि आप हमारे देश की मिट्टी देश के बाहर ले जाएं | हमारे देश के हर आदमी को अपनी धरती प्राणों से प्यारी है | अत: देश की मिट्टी ले जाने की किसी को इजाजत नहीं है |"
 
यह सुनकर घुमक्कड़ों का दिल खुशी से गद्गद हो उठा | उन्होंने सभी सैनिकों व मंत्री को प्रणाम किया और गले लगाकर विदा ली | फिर जहाज में बैठकर सारे रास्ते वे वहां के लोगों के देश प्रेम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते रहे | 

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