इजिप्ट की लोककथा
अपना अन्दाज
प्राचीनकाल में एक व्यापारी था | जिसका नाम था नजूमी | उसने अपने पिता का व्यापार कुछ समय पहले संभाला था |
एक बार वह अपने ऊंट पर कुछ सामान लादकर दूसरे शहर के लिए चल दिया | बहुत तेज गर्मी थी | कंटीले व रेतीले रास्ते थे | अचानक आंधी चलने लगी | नजूमी एक ठीक-सी सराय देखकर वहां ठहर गया |
उसने ऊंट से सामान उतारा और ऊंट को बाहर ही बांध दिया | वह दिन भर का थका हुआ था | इस कारण उसे लेटते ही गहरी नींद आ गई | सुबह को जब वह सोकर उठा तो ऊंट को बाहर बंधा न देखकर घबरा गया | तभी उसने देखा कि उसका सामान भी वहां नहीं है | वह रोने लगा |
नजूमी रोते-रोते सराय के मालिक के पास पहुंचा | परंतु सराय मालिक को ऊंट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी | नजूमी ऊंट की खोज में तेजी से शहर की ओर चल दिया | परंतु काफी दूर तक सड़कें सुनसान थीं | ऊंट तो क्या, कोई आदमी भी नजर नहीं आता था |
काफी दूर चलने पर उसे एक राहगीर मिला | नजूमी ने उस राहगीर से पूछा - "भाई जान, क्या आपने इधर से किसी आदमी को ऊंट ले जाते देखा है ?"
राहगीर बोला - "ऊंट तो क्या मैंने कोई गधा-घोड़ा भी इधर से जाते नहीं देखा | परंतु न जाने क्यों मुझे लगता है कि आपका ऊंट काना है ?"
नजूमी उस राहगीर का हाथ पकड़ कर खड़ा हो गया और बोला - "मैं आपको यूं ही न जाने दूंगा | आपने अवश्य ही मेरा ऊंट इधर से जाते देखा है |"
राहगीर ने हाथ छुड़ाकर आगे बढ़ते हुए कहा - "मैं सच कह रहा हूं कि मैंने आपका ऊंट नहीं देखा | देखा होता तो अवश्य बता देता |"
नजूमी राहगीर के साथ-साथ बातें करते हुए चलने लगा | उसने सोचा कि शायद बातों-बातों में वह राहगीर उस ऊंट के चोर के बारे में सही-सही बता देगा | हो न हो इसने मेरा ऊंट देखा अवश्य है | वरना उसे कैसे पता चलता कि मेरा ऊंट काना है | परंतु कुछ ही मिनटों में राहगीर बोला - "भाई साहब, आप क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हैं | यह सड़क सीधे शहर को जाती है, चोर अवश्य ही इधर से ऊंट ले गया होगा | आप बिना समय गंवाए तेजी से जाएंगे तो अवश्य ही आपका ऊंट मिल जाएगा | लगता है आपके ऊंट के एक तरफ चीनी की बोरी लदी हुई थी |"
नजूमी हैरत में पड़ गया कि यदि राहगीर ने ऊंट को नहीं देखा तो यह कैसे बता रहा है कि उसके एक तरफ चीनी लदी थी | नजूमी ने पूछा - "आप ठीक फरमाते हैं, परंतु क्या आप बता सकते हैं कि ऊंट के दूसरी तरफ क्या था ?"
राहगीर बोला - "शायद कोई अनाज होगा |"
अब तो नजूमी का शक यकीन में बदल गया और वह राहगीर से झगड़ने लगा कि वह ऊंट चोर को अवश्य जानता है अथवा उसने किसी को ऊंट ले जाते देखा है |
राहगीर ने नजूमी को सड़क की ओर धकेलते हुए कहा - "यदि अब तुमने समय गंवाया तो ऊंट भी गंवा दोगे ?"
नजूमी को कुछ न सूझा | वह सड़क पर तेजी से दौड़ने लगा | वह कुछ घंटों तक शहर जाने वाली सड़क पर दौड़ता रहा, तभी उसने एक स्थान पर ऊंटों का झुंड देखा | वहां कुछ छायादार पेड़ थे, जिनके नीचे यात्री आराम कर रहे थे |
नजूमी जल्दी से अपना ऊंट तलाशने लगा | तभी उसने देखा कि उसका ऊंट एक पेड़ से बंधा है और जुगाली कर रहा है, साथ ही गेहूं और चीनी के बोरे भी उतरे हुए रखे हैं | नजूमी चीख-चीखकर पूछने लगा - "यह मेरा ऊंट है, इसे कौन यहां लाया है ?"
परंतु किसी ने कोई जवाब नहीं दिया | नजूमी कुछ देर आराम करना चाहता था, परंतु उसकी इच्छा थी कि वह ऊंट-चोर को सजा अवश्य दिलवाए, यदि वह आराम करने रुक जाता तो चोर उसके हाथ से निकल जाता | वह सोचने लगा कि उसका ऊंट कौन चुरा सकता है ? सोचते-सोचते उसका शक उसी राहगीर पर अटक गया | उसे लगा कि हो न हो वह राहगीर या तो स्वयं चोर है या उस चोर का साथी है |
वह अपना ऊंट लेकर तेजी से सराय की ओर चल पड़ा ताकि राहगीर को बीच सड़क पर ही पकड़ सके | थोड़ी-सी दूर जाने पर ही राहगीर मिल गया | ऊंट को लाते देखकर राहगीर नजूमी से बोला - "मिल गया आपका ऊंट ?"
परंतु नजूमी को क्रोध आ रहा था | वह तुरंत उस ऊंट से उतरकर उस राहगीर को पकड़कर बोला - "एक तो ऊंट चुराते हो, ऊपर से भोले बनकर कहते हो, मैंने ऊंट नहीं देखा |"
नजूमी राहगीर को पकड़ कर काजी के पास ले गया | उसने काजी से शिकायत की कि इस राहगीर ने मेरा ऊंट चुराया है और ऊपर से कहता है कि इसने मेरा ऊंट देखा तक नहीं है | उसने राहगीर की पूरी बात काजी को बता दी |
काजी को सुनकर लगा कि अवश्य कोई गड़बड़ है, वरना राहगीर सारी बातें सही कैसे बता सकता है ? उसने सख्ती बरतते हुए राहगीर से पूछा - "सच बताओ कि क्या तुमने ऊंट चुराया या चुराने में मदद की ?"
राहगीर शांत भाव से बोला - "हुजूर, मैंने तो इसका ऊंट देखा तक नहीं था, फिर मैं ऊंट चुरा कैसे सकता हूं ?"
काजी ने पूछा - "देखो, यदि तुमने झूठ बोला तो तुम्हें कारागार में डाल दिया जाएगा | अब तुम यह बताओ कि यदि तुमने ऊंट देखा ही नहीं तो तुम्हें यह कैसे पता लगा कि नजूमी का ऊंट काना है ?"
यह सुनकर राहगीर के चेहरे पर डर के कोई भाव प्रकट नहीं हुए | वह बिना हिचकिचाहट के बोला - "जिस रास्ते से मैं गुजर रहा था, उस रास्ते के दाहिनी ओर के वृक्षों की डंडिया व पत्तियां बिल्कुल सही-सलामत थीं, जबकि बाईं ओर की पत्तियां ताजी खाई हुई जान पड़ती थीं | इससे मुझे ऐसा जान पड़ा कि इधर से जो जानवर गया है वह अवश्य एक आंख से काना है | तभी उसने केवल एक ही ओर की पत्तियां खाई हैं |"
राहगीर की बात सुनकर नजूमी व काजी दोनों संतुष्ट हो गए | अब काजी ने राहगीर की बुद्धिमत्ता का लोहा मानते हुए धीमे स्वर से पूछा - "राहगीर, अच्छा तुम्हें यह कैसे पता लगा कि ऊंट के एक तरफ चीनी लदी थी | दूसरी तरफ कोई अनाज ?"
राहगीर बोला - "उस रास्ते में स्थान-स्थान पर चीनी के दाने बिखरे थे | जिन पर मिक्खियां भिनभिना रही थीं | हो सकता है कि चीनी की बोरी में कोई छेद हो | इसी से मैंने अंदाज लगाया कि उधर से निकलने वाले जानवर की पीठ पर चीनी लदी होगी | इसी प्रकार कहीं-कहीं अनाज के दाने जमीन पर बिखरे थे, जिन्हें चिड़ियां चुग रही थीं | हुजूर, सड़क पर अनाज यूं ही तो नहीं उग सकता | अनाज तो खेतों में ही उगता है | इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि इधर से जाने वाले जानवर की पीठ पर कोई अनाज लदा था |"
राहगीर की बात सुनकर नजूमी अपने व्यवहार पर बहुत लज्जित होते हुए उससे माफी मांगने लगा | काजी ने भी राहगीर की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की और उसे छोड़ दिया |
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