Tuesday 11 April 2017

เคšाเคฏเคจीเฅ› เคฒोเค•เค•เคฅा : เคšिเคคเค•เคฌเคฐा เคœूเคคा

                    चायनीज़ लोककथा

                      चितकबरा जूता

चांग ची बहुत रईस आदमी था | उसने अपने लिए अपार दौलत जमा कर रखी थी | उसकी पत्नी उसे लाख समझाती थी कि इतनी कंजूसी अच्छी बात नहीं, परंतु वह मानता ही नहीं था |

चांग ची इतना कंजूस था कि कपड़े फट जाने पर उन्हीं पर पैबंद लगवा कर पहनता रहता था | यही हाल उसके जूतों का था | उसने वर्षों से अपने लिए जूते नहीं खरीदे थे | उनमें जगह-जगह छेद होकर पैबंद लग चुके थे | सर्दियों में वह गर्मी पाने के लिए गोबर की भांप से सेंकता था | 

घर में यूं तो नौकर-चाकर भी थे, परंतु वे भी उसकी कंजूसी से परेशान होकर जल्दी ही भाग जाते थे |

एक दिन चांग ची एक गली से गुजर रहा था | वहां बच्चे गली में खेल रहे थे | चांग ची जब उधर से निकला तो उसका एक पैर नाली में चला गया | उसने पैर निकाला तो देखा कि उसका जूता फट गया था | पंजे के पास से तला अलग होकर उसका पैर दिखाई दे रहा था | बच्चों ने चांग ची को उसके घर पहुंचने में सहायता की और वह अपने घर पहुंच गया |

अगले दिन चांग ची मोची के पास जूते ठीक करवाने पहुंचा तो मोची ने बताया - "सेठ जी, ये जूते बहुत पुराने हो चुके हैं अत: इन्हें जोड़ने का कोई लाभ नहीं है |"

परंतु चांग ची ने जिद करके उन्हीं जूतों को ठीक करवा लिया | एक सप्ताह बाद वह फिर उसी गली से गुजरा, जहां बच्चे खेल रहे थे | एक बच्चे की निगाह चांग ची के जूतों पर पड़ी | वह एक बच्चे के कान में फुसफुसाया - "जरा इसके जूते तो देख |"

सभी बच्चे हंसकर चांग ची के जूते देखने लगे | चांग ची चिढ़ गया और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगा | बच्चों को इसमें बहुत आनन्द आया | शुई बड़ी नटखट लड़की थी वह चिल्लाकर बोली - "वाह, क्या चितकबरे जूते हैं |"

सारे बच्चे एक स्वर में बोले - "क्या चितकबरे जूते हैं ?"

चांग ची सुन कर चिढ़ते हुए आगे बढ़ गया | इसके बाद जब भी चांग ची उधर से गुजरता बच्चे चिल्लाकर कहते - "चितकबरे जूते |"

धीरे-धीरे चांग ची की चिढ़ बन गई - "चितकबरे जूते |" वह जहां कहीं भी जाता, कोई न कोई जरूर आवाज लगा कर कहता - "चितकबरे जूते |" और चांग ची चिढ़ जाता |

घर पर उसकी पत्नी ने बहुत समझाया कि अब इन जूतों को फेंककर नए जूते खरीद लो, परंतु चांग ची ने उसकी बात नहीं मानी, लेकिन जब धीरे-धीरे बात पूरे शहर में फैल गई तो वह अपने जूतों से सचमुच परेशान हो गया | उसने निश्चय किया, वह इन जूतों को किसी भिखारी को दान में दे देगा | अत: वह सुबह उठकर सैर को गया और लौटते वक्त एक भिखारी को अपने जूते दे आया |

भिखारी जूते पाकर बहुत खुश हुआ क्योंकि सर्दी का मौसम था | परंतु सेठ के जाने के बाद जब उसने जूतों को देखा तो उन पर बहुत सारे पैबंद देखकर उन्हें हैरानी से देखने लगा | फिर सड़क के किनारे बैठकर वह उन जूतों को पहनने का प्रयास करने लगा ||

उसी समय उधर से पुलिस का एक सिपाही निकला | उसने भिखारी को जूतों को उलटते-पलटते देखा तो उसे शक हुआ कि भिखारी कहीं से जूते चुरा कर लाया है | उसने भिखारी को अपने पास बुलाया तो जूतों को देखते ही पहचान गया कि ये जूते चांग ची के हैं | वह भिखारी से बोला - "तूने जूते चोरी किए हैं, अत: तुझे थाने चलना पड़ेगा |"

भिखारी बोला - "साहब, मैं यह जूते चुरा कर नहीं लाया | एक सेठ जी मुझे अभी देकर गए हैं |"

परंतु सिपाही बोला - "जिस सेठ के यह जूते हैं, वह कंजूस सेठ तुझे जूते दे ही नहीं सकता | उसे ये जूते बहुत प्रिय हैं | तू झूठ बोलता है | मैं थाने में चल कर ही तय करूंगा कि तुझे क्या सजा दी जाए |"

सिपाही भिखारी को लेकर थाने में चला गया और चांग ची को बुलवा भेजा | चांग जी थाने के बुलावे को सुनकर भौचक्का रह गया और सोचने लगा कि मेरा वहां क्या काम हो सकता है ? चांग ची थाने पहुंच गया तो अपने पुराने जूतों को वहां रखे देखकर उसे बहुत हैरानी हुई | भिखारी को जेल में डाल दिया गया था |

चांग ची ने यह कहने की कोशिश की कि भिखारी ने चोरी नहीं की है परंतु सिपाहियों ने बिना सुने सेठ को उसके चितकबरे जूते वापस दे दिए | चांग ची बहुत दुखी मन से जूते वापस ले लाया और उनसे छुटकारा पाने का उपाय सोचने लगा |

उसकी पत्नी ने कहा - "मेरी बात मानो तो जूतों को कूड़ेदान में फेंक दो |"

चांग ची को यह विचार जंच गया और उसने अपने घर के कूड़े के साथ जूते कूड़ेदान में फेंक दिए | दो दिन तक जब जूतों की कोई खबर नहीं मिली तो चांग ची जूतों की तरफ से निश्चिंत हो गया |

परंतु तीसरे दिन सुबह घर की घंटी बजी | दरवाजे पर एक सफाई कर्मचारी खड़ा था, वह बोला - "सेठ जी, मैं आपसे इनाम लेने आया हूं |"

सेठ ने खुश होकर कहा - "किस बात का इनाम मांग रहे हो, पहले यह तो बताओ ?"

सफाई कर्मचारी ने पीछे से जूते निकालते हुए कहा - "किसी नौकर या चोर ने आपके चितकबरे जूते कूड़ेदान में छिपा दिए थे | आज मैंने सफाई की तो सोचा आपके जूते आपको वापस कर दूं तो मुझे इनाम मिलेगा, इसलिए आपके घर चला आया |"

चांग ची की इच्छा हुई कि वह बहुत जोर से चीखे और क्रोध से डांट कर भगा दे | परंतु वह बड़ा सेठ होने के नाते ऐसा न कर सका | चुपचाप जूते रखकर कर्मचारी को वहां से भगा दिया |

अब चांग ची का किसी काम में मन नहीं लगता था | वह हरदम उन जूतों से पीछा छुड़ाने का उपाय सोचता रहता था | एक दिन उसके मन में विचार आया कि क्यों न मैं इन जूतों को नदी में फेंक दूं, पानी के बहाव के साथ ये जूते कहीं दूर चले जाएंगे, फिर उसने एक पुल पर खड़े होकर उन जूतों को नदी में फेंक दिया और चुपचाप घर की ओर चल दिया |

थोड़ी ही देर में कुछ बच्चे उसके पास भागते हुए आए और बोले - "अंकल आपके चितकबरे जूते किसी ने नदी में फेंक दिए | हम नदी में नहा रहे थे तभी हमने इन जूतों को किसी को ऊपर से फेंकते देखा | हमने पानी में तुरंत आपके चितकबरे जूते पहचान लिए | यह लीजिए अपने जूते |"

अब चांग ची क्रोध से पागल हुआ जा रहा था | उसे जूतों से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था | वह सारा दिन घर में ही बिताने लगा | उसका व्यापार में मन नहीं लगता था | इस कारण उसका व्यापार मंदा होता जा रहा था |

एक दिन सबुह वह नगर की सीमा पर पहुंच गया और नगर से बाहर जाने वाले एक यात्री से प्रार्थना की - "भाई, यह जूते चाहें तो आप ले लें | अन्यथा आप नगर से बाहर जा रहे हैं तो इन्हें अपने साथ ले जाएं, वहां किसी जरूरतमंद को दे दें |"

अजनबी व्यक्ति सेठ की तरफ हैरानी से देख रहा था कि कोई व्यक्ति अपने जूते शहर से बाहर क्यों भेजना चाहता है | फिर उसने सेठ की परेशानी समझकर जूतों को एक थैले में डाल लिया |

सेठ वापस आ गया, परंतु अगले दिन नगर के राजा ने चांग ची को बुलाने भेजा तो चांग ची बहुत हैरान-परेशान हो गया | वह वहां पहुंचा तो उसे बताया गया कि एक परदेशी उसके चितकबरे जूते चुराकर नगर की सीमा के बाहर ले जा रहा था, अत: उसे गिरफ्तार कर लिया गया है |

चांग ची रोने और गिड़गिड़ाने लगा | राजा को कुछ समझ में न आया कि जूते मिल जाने पर वह रो क्यों रहा है | राजा ने पूछा - "चांग ची, तुम इतने धनी सेठ हो और तुम्हारे ये प्रसिद्ध चितकबरे जूते तुम्हें मिल गए फिर भी तुम रो क्यों रहे हो ?"

चांग ची ने रोते-रोते राजा को जूतों और कंजूसी की सारी कहानी सुना दी | साथ ही यह भी बता दिया कि लोगों ने उसकी चिढ़ 'चितकबरे जूते' बना दी है |

राजा ने कहा - "ठीक है, हम इन चितकबरे जूतों को शाही संग्रहालय में रख देते हैं ताकि जब लोग तुम्हारे जूते देखें तो तुम्हारी कंजूसी को याद करें | तुम्हें इन चितकबरे जूतों से मुक्ति मिल चुकी है, तुम यहां से खुशी से जा सकते हो |"

चांग ची को इतनी राहत तो अवश्य मिल गई कि अब वे चितकबरे जूते उसके पास वापस नहीं आएंगे | परंतु अब वह यह सोचकर परेशान था कि शाही संग्रहालय में जूतों को रखने से लोग उन जूतों को कभी नहीं भूल सकेंगे | 

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