Tuesday 11 July 2017

เคชौเคฐाเคฃिเค• เค•เคฅाเคँ : เคœเคฏ เคตिเคœเคฏ เค•ा เคช्เคฐเคธंเค—

                   पौराणिक कथाएँ

                जय विजय का प्रसंग

एक बार सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने वैकुंठ आए। उस समय वैकुंठ के द्वार पर जय-विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दे रहे थे। जब सनकादि मुनि द्वार से होकर जाने लगे तो जय-विजय ने हंसी उड़ाते हुए उन्हें बेंत अड़ाकर रोक लिया। क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। क्षमा मांगने पर सनकादि मुनि ने कहा कि तीनों ही जन्म में तुम्हारा अंत स्वयं भगवान श्रीहरि करेंगे।

इस प्रकार तीन जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। पहले जन्म में जय-विजय ने हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का तथा नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया। इनका वध करने के लिए भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे। इस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने इनका वध किया।

No comments: