Friday 4 August 2017

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                  पौराणिक कथाएँ

                पंचकेदार की कथा

समुद्रतल से १३,०७२ फीट की ऊंचाई पर बसा तुंगनाथ धाम पर्वतीय क्षेत्र का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। पचास फीट ऊंचे इस इंदिर की बनावट और कला देखते ही बनती है। देखनेवाली बात यह है कि यह धाम जितनी अधिक ऊंचाई पर बसा है यहां पहुंचना उतना ही आसान और कम समय लगता है। चमोली के ठीक बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच गोपेश्वर-ऊखीमठ मोटर मार्ग पर चोपता नामक चट्टी से पैदल तीन किलोमीटर चढ़ाई के बाद तुंगनाथ धाम पहुंच जाते हैं। 

यह मंदिर किस काल का है और किसने बनाया इसकी प्रामाणिक जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है। क्षेत्रीय लोग पाण्डवॊं द्वारा निर्मित बताते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने उत्तराखंड यात्रा के दौरान इस मंदिर को बनाया था। मंदिर के गर्भगृह में शंकराचार्य की भव्य मूर्ति है, तो पाण्डवॊं की भी प्रतिमायें हैं। वेदव्यास और काल भैरॊ की दो अष्टधातु की मूर्तियों सहित गर्भगृह में दुर्लभ मूर्तियों की भरमार है। लगभग सभी प्रमुख देवी-देवता यहां आसीन हैं। एक फुट ऊंचा उत्तर की ओर झुका श्यामवर्णी शिवलिंग विशेष दर्शनीय है। स्थानीय लोग इसे शिवजी की बांह कहते हैं। इसकी भी दिलचस्प लोककथा है।

एक बार पाण्डव श्राप मुक्ति के लिए बाबा भोलेनाथ को खुश करने के लिए घूमते-घूमते केदारनाथ पहुंचे। शिवजी कुपित थे और पांडवॊं को दर्शन देना नहीं चाहते थे। केदारनाथ में जहां स्थानीय लोगों की भैंसें चर रही थी, वहीं शिवाजी ने एक भैंसे का रूप धारण कर लिया और भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। अचानक ही एक असाधारण और नये भैंस को टपका देखकर भीम को बेहद आश्चर्य हुआ। उन्हें शक हुआ कि कहीं शिवजी की करामात तो नहीं है। 

भीम ने सोचा एक संकरी घाटी से सभी भैंसे गुजरेंगी, वहीं भीम पांव जमाकर खड़े हो गए। कुछ देर में सभी भैंसें गुजर गईं लेकिन भैंस बने शिव ही पीछे रह गये और धर्मसंकट में पड़ गये। वे कैसे भीम की टांगों के नीचे से गुजरें? भीम माजरा समझ गये। उन्होंने उस असाधारण भैंस को पकड़ना चाहा तो भैंस जमीन के अन्दर धंसने लगी भीम केवल पृष्ठभाग ही पकड़ पाये। कहा जाता है कि शिवजी के ये अंग विग्रह के रूप में पांच जगहों पर निकले। पृष्ठभाग केदारनाथ में निकला। जहां आज भी मुख्यत: इसकी पूजा होती है। मध्य भाग मदमहेश्वर में निकला, बाहें तुंगनाथ, मुंह रुद्रनाथ और जटायें कल्पनाथ में प्रकट हुईं। ये पांचों पांच धाम पंचकेदार के नाम से जाने जाते हैं।

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